Monday, June 23, 2014

'बुधि विवेक बिग्यान निधाना'

सूबे की सरकार शहर में है। लगता है मुखिया वसुंधरा राजे की मंशा है कि संभाग के आधारभूत काम हो ही जाएं। और ऐसे भी छोटे-बड़े काम जो या तो बीच में अटके हुए हैं, जिनकी कार्ययोजना सिरे नहीं चढ़ रही है उन्हें भी राजे पूरा करवाना चाहती लगीं। मीडिया के उठाए ऐसे सब मुद्दों पर राजे ने तुरन्त संज्ञान लिया, विशेषज्ञों को तत्काल बुलवाया और कल शाम ही अधिकारियों की उच्चस्तरीय बैठक बुला कर क्रियान्वयन की मंशा जता दी।
कोटगेट सांखला रेलफाटक की समस्या का एलिवेटेड रोड समाधान, सूरसागर का रेगिस्तानी वनस्पति पार्क के रूप में वैकल्पिक सौन्दर्यकरण, रिंगरोड का छूटा हुआ हिस्सा, दो दशकों से अधूरा पड़ा रवीन्द्र रंगमंच, नगर विकास न्यास की वर्षों से विवादों में अटकी जोहड़बीड़ आवासीय योजना, लालगढ़ रेलवे स्टेशन के लिए वैकल्पिक मार्ग का दुरुस्तीकरण, जैन स्कूल के पास की निर्माणाधीन लिंकरोड को समयबद्ध पूरा किया जाना, एमएम ग्राउण्ड को उपयोग योग्य बनवाना सहित शहर के अन्दरूनी हिस्से में ड्रेनेज-सीवरेज जैसे जरूरी कामों को यहां के मीडिया ने ही उठाया है। मीडिया के स्थानीय नुमाईन्दों ने जब मुख्यमंत्री को शहर की इन सब जरूरतों से अवगत करवाया और व्यावहारिक समाधान भी सुझाए तो राजे ने त्वरित सक्रियता दिखा कर एकबारगी तो एहसास करवा दिया कि मान लो कि इन सबका समाधान हो ही रहा है।
पौराणिक चरित्र हनुमान के संबंध में रामचरितमानस में कई आख्यान मिलते हैं। बाल हनुमान की 'कुचमादियों' से साधना में लीन ऋषि परेशान हुए तो उन्होंने बाल हनुमान को उनके बल के भान से विस्मृत होने का शाप दे दिया, पर तत्काल ही एहसास हुआ कि यह तो बालक के साथ ज्यादती है, सो साथ ही यह वरदान भी कि कोई तुम्हें बल की याद दिलवाएगा तो बल की स्मृति लौट भी आएगी। मानस में इस प्रसंग की जाम्बवान के हवाले से एक सुन्दर पंक्ति मिलती है- 'बुधि विवेक बिग्यान निधाना' यानी जाम्बवान बल याद दिलाने के लिए हनुमान से कहते हैं कि 'तुम बल, विवेक और विज्ञान से समृद्ध हो।'
यह पंक्ति रामचरितमानस के किष्किन्धा काण्ड की है और इसके बाद ही हनुमान की सभी लीलाओं का उल्लेख वाला सुन्दरकाण्ड आता है।
विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया लोकतंत्र के आधार स्तम्भ माने गए हैं। धारणा के आधार पर मीडिया को चौथे खम्भे की प्रतिष्ठा हासिल है। तुलसीदास की उक्त चौपाई का उल्लेख मीडिया के सन्दर्भ में करना इसलिए भी प्रासंगिक है कि जाम्बवान के हवाले तुलसीदास जिन तीन गुणों- बल, विवेक और विज्ञान का उल्लेख हनुमान के लिए करते हैं वैसे ही इन तीनों गुणों का भान पत्रकार यदि कर लें तो असल धर्म को ही निभा रहें होंगे। स्मरण रहे कि बल और विज्ञान का उल्लेख बिना विवेक के मानस में भी नहीं किया गया।
पिछले एक अरसे से मीडिया की आलोचना जिन बातों को लेकर हो रही हैं उनके कारणों में विवेक के स्थान पर लालच का जाना ही है। हालांकि इसमें दोष पत्रकारों का कम मीडिया समूहों का ज्यादा है लेकिन पत्रकारों को भी इसे नहीं भूलना चाहिए कि यदि अपने बल और ज्ञान का उपयोग विवेक से करें तो वे लोकहितकारी बहुत कुछ संभव करवा सकते हैं।

23 जून, 2014

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