धर्म का धन्धा
करने वाले आशाराम की करतूतों के एक अहम गवाह अमृत प्रजापति का कल देहान्त हो गया। गुजरात के राजकोट में 23 मई को
दो लोगों ने उन्हें गोलियां मारी थी। अमृत का आरोप था कि ये लोग आशाराम के अन्ध-अनुयायी थे। जोधपुर पुलिस की चार्जशीट
में अमृत प्रजापति अहम गवाह के रूप में शामिल थे। आशाराम नाबालिग किशोरी के साथ दुष्कर्म के मामले में जेल में कई महीनों से बन्द हैं और जब से बन्द हैं तब से ही वे यहां से निकलने के लिए हर संभव हाथ-पांव मार रहे हैं। आशाराम के वे
भक्त जो उन्हें अब भी निर्दोष मान रहे हैं, उनमें से कई
ऐसे भी हैं जो उनके लिए कुछ भी करने को तैयार हैं।
हमारे देश में न्याय से भरोसा
उठते चले जाने का एक कारण यह भी कि मामले इतने लम्बे खिंचते हैं कि उसमें गवाहों को किसी भी तरीके से प्रभावित करने की गुंजाइश पूरी तरह बनी रहती है। यहां तक कि खुद आरोपी के लिए भी हिम्मत बनाए रखना आसान नहीं रहता।
आशाराम के इसी
मामले में पीडि़ता किशोरी ने और उसके अभिभावकों ने सभी तरह की धमकियों और प्रलोभनों के बावजूद अभी तक जो हिम्मत बनाए रखी है वह काबिले तारीफ है अन्यथा आशाराम के भक्तों ने कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। पीडि़ता अपने अभिभावकों के साथ पिछले लगभग दो माह से जिरह और बयानों के लिए अपने घर-बार से दूर
जोधपुर में है। न्याय की प्रतिष्ठा चाहने वालों को इस तरह भी विचारना चाहिए कि वह पीडि़ता और उसके अभिभावक यह सब किस तरह संभव कर पा रहे होंगे? हम भारतीय
धर्म, श्रद्धा और भक्ति के नाम पर कुछ ज्यादा ही समर्पण करने को क्षणिक तार्किक और तथ्यगत हुए बिना भी तैयार रहते हैं। इसी के दुष्परिणाम हैं कि आशारामों जैसों को गुंजाइश मिल जाती है। ऐसे लोग इतने प्रभावी होते हैं कि अधिकांशत: अंत-पंत छूट ही जाते हैं। आशाराम को भी इतना भरोसा है कि केन्द्र में नई सरकार के शपथ से दो दिन पहले कोर्ट जाते हुए कहने से नहीं चूकते कि अब तो बस दो ही दिन की बात है। 11 जून, 2014
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