Tuesday, May 6, 2014

स्वास्थ्य सेवाओं की बानगी

कल जब सरकारी शैक्षणिक सेवाओं पर बात की तब सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं के लिए भी आमजन से जागरूकता की वैसी उम्मीदें की जैसी शैक्षणिक सेवाओं के लिए की थी। बीकानेर के सन्दर्भ में स्वास्थ्य सेवाओं की बात की जाए तो लक्ष्य हमेशा संभाग का सबसे बड़ा अस्पताल पीबीएम ही होता है। क्योंकि इसकी प्रतिष्ठा तीस-चालीस साल पहले तक रोगियों के लिए किसी तीर्थ से कम नहीं होती थी। इसी के चलते शहर के जिला चिकित्सालय और अन्य डिस्पेंसरियों की कमियों-खामियों को मीडिया भी नजरअन्दाज कर देता है, नेताओं, समर्थों और सबलों की तो इन सभी पर नजर ही नहीं ठहरती। जिला अस्पताल और डिस्पेंसरियों की सेवाओं को यदि दुरुस्त रखा जाए तो पीबीएम अस्पताल पर रोगियों का भार लगभग आधा हो जायेगा। लेकिन पीबीएम के अधिकांश डॉक्टर मन से ऐसा चाहते ही नहीं होंगे। क्योंकि यदि ऐसा हो गया तो उनकी प्राइवेट प्रैक्टिस पर खासा असर हो सकता है।
पीबीएम अस्पताल की गत ऐसी हो गई है कि नेता, जनप्रतिनिधि और समर्थ-सबल के बीमार होने पर या उनके निकटस्थ परिजनों के बीमारी चाहे कोई सी हो, भरती उसे नये बने हृदय विंग 'हल्दीराम मूलचन्द' में ही कराया जाता है, क्योंकि पीबीएम के अन्य सभी विंग चाहे पोस्ट ऑपरेटिव वार्ड हो या सीसीयू या आइसीयू-सभी की स्थितियां ऐसी नहीं है कि वहां इन वीआइपियों और उनके परिजनों को रखा जा सके। सामान्य वार्डों का रखरखाव तो इतना खराब है कि वहां भर्ती होने वाले और उनकी तीमारदारी करने वाले धन्य हैं, जबकि अधिकांश सेवाएं ठेके पर दी हुई हैं। दानदाता बना हर व्यक्ति वहां प्याऊ बनवाकर वाटर कूलर लगा लाखों खर्च करता है और अपना प्रशस्ति पट्ट लगवाता है। लेकिन यह जहमत कोई नहीं उठाता कि जो आठ-नौ प्याऊएं बन्द पड़ी हैं उन्हें सुचारु किया जाय। उन्हें लगता है कि संचालन के लिए कोई प्रशस्ति नहीं मिलनी उन्हें। आश्चर्य तो इस बात का है कि जिन्होंने लाखों खर्च किए उनको भी इस बात की चिन्ता नहीं है कि प्याऊओं पर लगे प्रशस्ति-पत्र रोशन रहें।
ठेके पर चलते वाहन स्टैंडों की कथा और भी निराली है। आजकल तो टोकन पर दरें और दरों का समय स्पष्ट लिखा होता है और ही स्टैंड पर सूचनापट्ट होते हैं। तीमारदार और साता पूछने आने वालों से हमेशा दुगुनी वसूली होती है-सब चुपचाप भुगत कर चल देते हैं। अखबारों में भी इस सम्बन्ध में कई बार लिखा जा चुका है, लेकिन अस्पताल प्रशासन से लेकर ठेकेदार और उनके कारिन्दे बेधड़क वसूली करते संकोच नहीं करते।
कल अस्पताल में नजारा जोरदार बना डॉक्टर, उनके अधीनस्थ, नर्सिंगकर्मियों और अन्य कर्मचारियों के ड्यूटी पर समय से आने की शिकायत आम है। कल जब सामान्य प्रशासन विभाग का अमला सुबह अचानक अस्पताल  पहुंचा तो हड़कम्प मच गया। अधिकांश लोग साढ़े आठ तक भी नहीं पहुंचे। मोबाइल खडख़ड़ाये तो डॉक्टर अपनी घरेलू प्रैक्टिस छोड़कर तो अन्य कई तो सीधे बिस्तर से उठकर पहुंचे, ऊपर से दादागिरी यह कि हाजिरी रजिस्टर में क्रास के ऊपर ही हस्ताक्षर कर दिए। अस्पताल अधीक्षक ने लीपापोती के बयान दिये हैं। आशंका यही है कि सामान्य प्रशासन विभाग ने जो आईंदा ऐसी हरकत दिखलाई तो हो सकता है थापामुक्की भी हो जाए।
नेता-जनप्रतिनिधि की हाजिरी डॉक्टरों से लेकर सभी कार्मिक बजाते हैं, वे बोलेंगे नहीं। बोलना जनता को ही पड़ेगा। नहीं बोलोगे तो भुगतोगे भी। इसलिए गलत को गलत कहना जरूरी है-नहीं तो जरूरत होने पर निजी अस्पतालों में जाकर अपनी जेबें हलकी करवाएं।

6 मई, 2014

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