Thursday, April 17, 2014

हम अल्पविकसित लोकतंत्र के नागरिक हैं

अपने बीकानेर क्षेत्र में आज मतदान है। 'विनायक' का यह अंक शाम को जब आपके हाथों में होगा, तब तक मतदान अन्तिम दौर में होगा। जिन्हें जिसे भी वोट देना है, दे चुके होंगे या देने जा रहे होंगे। देश के 121 लोकसभा क्षेत्रों के मतदान के इस पांचवें दौर में राजस्थान के पहले चरण के 20 क्षेत्रों में आज वोट डाल दिए जायेंगे। 542 सीटों की लोकसभा में मोटा मोटी तीन समूहों की हिस्सेदारी होनी है-कांग्रेस प्रभावी संप्रग (संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन), भाजपा प्रभावी राजग (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) और शेष सभी राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और कुछेक निर्दलीय सांसदों को मिलाकर 17 मई के बाद नई लोकसभा का गठन हो जायेगा।
वोट डालने की उत्सुकता, हड़बड़ी, स्वार्थ और पीछा छुड़ाने की तर्ज पर हम अधिकांश वोट डालने वाले भारतीय क्या कभी ठिठक कर सोचते भी हैं कि हमारे इस वोट का महत्त्व कितना है? सच में नहीं सोचते। अधिकांशत: नहीं सोचते। या तो हम हवा या लहर में बहकर वोट कर आते हैं, या किसी से किसी के लिए हां भर ली इसलिए वोट दे आते हैं या जिनसे हमें व्यक्तिगत और व्यापारिक लाभ की संभावनाएं हो सकती हैं उसे वोट दे देते हैं। और यह भी कि किसी ने हमें इसके लिए पैसा या कोई अन्य प्रलोभन दिया है इसलिए और किसी ने धौंस दे दी, इसलिए भी।
कहने को तो हम देश के लिए वोट करते हैं, पर उपरोक्त सभी कारणों में देश नदारद है। देश आजाद हुए छासठ साल हो गये। पहला आम चुनाव 1951-52 में हुआ उसे भी बासठ साल हो गये। कुछ ऐसे भी होंगे जो पहले चुनाव से ही वोट देते आएं हैं। कहने को हम आजाद हैं और एक लोकतांत्रिक देश के नागरिक हैं। सरकार हम चुनते हैं और यह सरकार जो कुछ करेगी उसमें हम सभी भारतीयों के हित समान रूप से प्रतिबिम्बित होंगे। क्या सचमुच ऐसा हो रहा है? हम में से कितने इस तरह विचार कर वोट करते हैं कि राज और शासन व्यवस्था ऐसी हो जो सचमुच यह लक्ष्य बनाकर काम करे कि प्रत्येक नागरिक का आर्थिक और सामाजिक स्तर लगभग समान हो। ऐसा करने के लिए जितनी भी युक्तियां और योजनाएं बनाई जाती रही हैं वे सभी अच्छी होते हुए भी कुछ खामियों के कारण बेअसर और भ्रष्टाचार के चलते कुछेक प्रभावी, चापलूस और स्वार्थी लोगों का ही हित साधती है। कांग्रेस के हाथ सबसे ज्यादा समय हमने शासन दिया लेकिन अच्छी मंशा और नीयत से कुछ भी क्रियान्वित नहीं किया गया। जो राज में रहे और हैं, जो शासन में रहे और हैं-ऐसे सभी लोग या तो खुद के स्वार्थों को साधने में लगे रहे या अपने चापलूसों के। ऐसा करवाने के लिए या ऐसा करने देने की गलियां बताने वाले शासन-प्रशासन के कारिन्दे अपना और अपनों का हित साधने से भला कब चूकते? इस तरह देश प्रभावी स्वार्थियों के विभिन्न गिरोहों के हाथ में चला गया।
भारतीय जनता पार्टी पहले तो अपने को अलग दिखाने की कोशिश करती रही, लेकिन लगा कि इस तरह आसानी से पार नहीं पडऩी है। सो, वह कांग्रेस को मात देने के लिए उनसे ज्यादा गिरे हुए और अमानवीय हथकंडों पर उतर आई। तमाम स्वार्थी लोगों को आते जाते राज के साथ पक्ष बदलते आसानी से देख सकते हैं। जो केवल और केवल अपना स्वार्थ साधने में लगे हैं। यह पशुता नहीं तो क्या है कि प्रत्येक सबल और समर्थ केवल अपना और अपनों का हित साधने में लगा देखा जाता है। समय रहते इस बुराई पर हमने सोचना शुरू नहीं किया तो हमें या तो सबसे सबल और समर्थ होना होगा या खुद को बड़ी मछली के हवाले होने देना होगा। तब क्या हम मनुष्य होते हुए भी मनुष्य कहला पाएंगे? यह नहीं तो अगले चुनाव का इन्तजार करें और जो मानवीय मानकों पर खरा नहीं है उसे नकारने का मन बनाएं। कम बुरे को चुनना समझौते में और वोट के खराब होने से बचाने का पक्ष कुतर्क में आता है। लोकतंत्र का विकास ऐसे ही होता है। हम फिलहाल अल्पविकसित लोकतंत्र के नागरिक हैं।

17 अप्रेल, 2014

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