Thursday, March 6, 2014

जुगनू से खली तक

कहते हैं शहर में कल का दिन खली के नाम था। यह खली डब्ल्यूडब्ल्यूएफ वाले दलीपसिंह राणा नहीं, स्थानीय मोहता चौक का गोधा है। गोधा यानी सूरज का दड़ूकने वाला सांड, चूंकि गाय का जाया है सो कई गोसुत भिडऩे को गये। दरअसल यह गड़बड़ी हम मीडिया या कहें टीवी, अखबार वालों की है, आए दिन अंटशंट खबरें बना कर इन गोधों की खलनायक की छवि बनाने से बाज नहीं आते। अपुष्टों की मानें तो शहर में तकरीबन साढ़े चार हजार गोधे हैं, पर यह बात हाजमोला से भी हजम नहीं होती। खैर-जितने भी हों, सूरज के हैं सो हीकछडि़दाई भी करेंगे। खाने को चाहिए तो मुंह भी मारेंगे। मुंह मारने से कुछ नहीं मिलेगा तो इसका दोषी किसी को भी मानकर भेटी भी मारेंगे। सींग हुए तो अच्छा खासा घायल कर देंगे। हो सकता है लक्षित की जान भी चली जाए। गई ही थी एक की। पिछले दिनों ही स्थानीय कोर्ट ने फैसला सुनाकर ग्यारह लाख रुपये का क्लेम नगर निगम को उस मृतक के वारिसों को देने का फैसला सुनाया है जिसकी मृत्यु का कारण कोई गोधा ही बना था।
नगर निगम वालों के लिए ऐसे काम वैसे तो प्राथमिकता में नहीं होते पर इन मीडिया वालों के हाकों के चलते सक्रिय होते हैं, ठेका देते हैं और कहां छुड़वाना इसकी व्यवस्था करते हैं। मीडिया वालों की परेशानी भी अपनी जगह कायम है, ब्रॉडशीट आठ से चौदह या सोलह पृष्ठों के अखबार को भरने या खबर को फ्लैश करने से पीछे रह जाने के उलाहने से बचने के लिए कुछ भी छापने से नहीं चूकते। टीवी समाचारों में भी कम से कम पन्द्रह-बीस मिनट की भरपाई यहां के प्रतिनिधियों को करनी होती है। सब अपनी-अपनी ढकने में लगे हैं। उनकी कोई नहीं सोचता जिन्हें कोई पंडित-ज्योतिषी ग्रह-जोग के उपायों के रूप में गाय-गोधे को गुड़ देना बता रखा है। शहर के सभी गोधों को बाहर कर दिया गया तो ऐसे उपाय-औषध वाले क्या शहर से बाहर जाएंगे? गोधों की वजह से कोई मर गया, घायल हो गया या ताउम्र के लिए कोई अपंगता से ग्रसित हो जाए तो ये उसके जोग थे! जोग को टालना होता तो किसी ज्योतिषी से उपाय पूछ कर कुत्ते को रोटी, गोधे को गुड़ और चींटियों का कीड़ीनगरा सींचना चाहिए था। एक बात समझनी रह गई कि बिल्ली को दूध पिलाने का उपाय कोई क्यों नहीं बताता है? वैसे शहर में कुत्ते भी कम नहीं हैं। 'खली' जैसे किस्से शहर के कुत्तों के भी रहे हैं। कई बार ऐसा हुआ कि किसी के प्रिय कुत्ते के पकड़े जाने पर पिंजरे में बन्द अन्य कुत्तों को भी छुड़ा लिया गया। ठेकेदार का आदमी बेचारा आइंदे ध्यान रखते हुए उस कुत्ते को अगले फेरे में पकड़ता ही नहीं।
पैंतीसेक साल पहले के कोटगेट क्षेत्र के एक गोधे जुगनू के प्रसंग का उल्लेख कई महीने पहले इसी कालम में किया था। तब जुगनू बड़े पर्दें का नायक था। जुगनू से लगभग ड्योढ़े डीलडौल वाले खली पिछले वर्षों में छोटे पर्दे यानी टीवी का नायक रहे हैं। धर्मेन्द्र यहां से सांसद रह चुके हैं पर शायद ही किसी ने उन्हें जुगनू गोधे का प्रसंग सुनाया होगा। ऐसे ही धन लेकर हारने-जीतने वाले खली को भी शायद ही पता हो कि उसके नाम का गोधा कहीं चर्चा में है। शहर का 'खली' अब आजाद है। किसी के सामान में मुंह मारने और किसी की भी फींच में भेटी मारने को!!

6 मार्च, 2014

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