पिछले विधानसभा चुनावों में केन्द्र की कांग्रेसनीत
सरकार की बट्टे खाते जा चुकी साख के चलते ही सही बीकानेर शहर के दोनों विधानसभाई क्षेत्रों के मतदाताओं ने भाजपा के दोनों विधायकों को ठीक-ठाक वोटों से जिताकर
पुन: नुमाइंदगी दे दी। बात आज बीकानेर पश्चिम से विधायक गोपाल जोशी और बीकानेर पूर्व की विधायक सिद्धीकुमारी की करेंगे। इन दोनों की पिछली विधायकी कुछ खास उल्लेखनीय नहीं रही थी, जिसमें सिद्धीकुमारी तो अपनी
नेता वसुन्धरा राजे की तर्ज पर पांच वर्षों में क्षेत्र से गायब ही रहीं। कुछ न करवा पाने से छूट इस बिना पर तो दी जा सकती है कि पिछली सरकार में इनकी कोई हिस्सेदारी नहीं थी। क्योंकि इसे किनारे से ही निकल जाना कहा जायेगा। शहर को लेकर कोई दृष्टि होती और सक्रिय रहते तो ये दोनों यहां के लिए कुछ न कुछ ले ही पड़ते।
खैर,
गई बात तक घोड़े भी नहीं पहुंच पाते हैं, सो बात
अब-की कर लेते हैं। चुनाव हुए तीन माह हो गए और सूबे की सरकार भी अभूतपूर्व बहुमत के साथ शहर के दोनों विधायकों की पार्टी की न केवल बन गई बल्कि धड़ल्ले से चल रही है। जो-जो मंत्री
और विधायक अपने-अपने क्षेत्रों से प्यार
करते हैं या कहें परवाह करते हैं, वह-वह इन तीन महीनों में ही कुछ न कुछ ले पड़े और करवा पाने में सफल हो रहे हैं। इस तरह की सूचनाएं जब-तब टीवी
अखबारों के माध्यम से आ ही जाती है। कल की ही सूचना है कि चिकित्सा मंत्री राजेन्द्रसिंह ने चूरू में संभाग के तीसरे मेडिकल कॉलेज की संभावनाएं जता कर अपने जिले की महत्त्वाकांक्षाओं को हरा कर दिया।
वहीं पिछली सरकार द्वारा जाते-जाते
घोषित तकनीकी विश्वविद्यालय का धुंधलका न तो हटने का नाम ले रहा है और न ही जिले के चारों भाजपा विधायकों में इसे लेकर कोई उद्वेलन दिख रहा है। पिछली विधानसभा में भी जिले से भाजपा के चार विधायकों के होते भी बीकानेर तकनीकी विश्वविद्यालय का विधेयक सदन में भाजपा के नेता गुलाबचन्द कटारिया के विरोध के चलते पेश नहीं हो पाया। जिले से तब के चारों भाजपाई विधायकों को सांप सूंघ गया। कांग्रेस को अपनी निष्क्रियता का जब तक एहसास होता तब तक विधानसभा का अन्तिम सत्र समाप्त हो गया था। पिछली गहलोत सरकार ने गलती की भरपाई में ही सही अध्यादेश लाकर बीकानेर के तकनीकी विश्वविद्यालय की घोषणा को वैधानिक जामा पहनाने की कोशिश जरूर की लेकिन चेपा आखिर चेपा ही होता है, रफू का काम
नहीं काढ़ता।
नई सरकार
आयी तो अज्ञात कारणों के चलते बीकानेर का यह तकनीकी विश्वविद्यालय उससे गिटका नहीं गया और तीन महीनों से गले में अटकाए बैठी है। शहर के दोनों सहित जिले के चारों भाजपाई विधायकों को इस बात की कोई चिन्ता-फिक्र नहीं है कि
वह इस विश्वविद्यालय की बात को सरकार के गले उतार सकें। उलटा इस विश्वविद्यालय के मनोनीत कुलपति डॉ. एच.पी. व्यास को लगातार
साख खोते जा रहे बीकानेर के सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज के डीन का चार्ज दे दिया ताकि वह वहां व्यस्त हो जाएं। आजकल में लोकसभा चुनावों की आचार संहिता लागू हो जानी है। हमारे इन विधायकों ने साठ माह की अपनी विधायकी के तीन महीने हाथ मलते चुटकियों में निकाल दिए। दो माह का समय लोकसभा चुनाव ले बैठेगा। वे कुछ कर पाएं या नहीं, लोकसभा चुनाव के खत्म
होते-होते नगर निगम चुनावों की सुगबुगाहट शुरू हो जानी है और साल के अन्त तक रिमझिम में बदलते देर नहीं लगेगी...दिन-महीने-साल यूं ही गुजरते
जाएंगे।...
4 मार्च,
2014
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