Saturday, March 29, 2014

आतंकी या गुमराह

मालेगांव, हैदराबाद और अजमेर में हुए बम विस्फोटों के खुलासे से पहले तक विचारविशेष के लोग ओढ़ी हुई शालीनता के साथ कहते नहीं थकते थे कि देश के सभी मुसलमान आतंकवादी नहीं हैं, लेकिन आतंकवादी गतिविधियों या आशंकाओं में पकड़े जाने वाले सभी मुसलमान क्यों होते हैं-यह प्रश्न केवल सोचने को मजबूर करता है बल्कि सामान्यजन तात्कालिक तौर पर इस तथ्य से सहमत भी हो जाता है।
ऐसा कहने वाले यह भूल जाते हैं कि भारत में आतंकवाद की शुरुआत पंजाब और असम से हुई थी और यह भी कि इन दोनों ही स्थानों के 'आतंकवादी' किन समुदायों से थे। वैसे ऐसे युवकों को जो भारतीय ही हैं, आतंकी कहना कितना उचित है, यह बहस का अलग मुद्दा हो सकता है, क्यों इनके लिए 'गुमराह' जैसा कोई सम्बोधन काम में लिया जाए। असम और पंजाब के युवकों ने यह साबित कर दिया कि वे गुमराह जरूर थे पर आतंकी नहीं।
इंडियन मुहाहिद्दीन के लेबल के साथ राजस्थान और उसके अनुसरण में हाल ही पकड़े जाने वाले सभी युवक समुदाय विशेष से ही हैं, तीन तो अभियान्त्रिकी विषय के स्नातक छात्र हैं। सेकेंडरी से लेकर स्नातक के विद्यार्थियों की किशोरवय में विचलन की सर्वाधिक आशंकाएं रहती हैं। छात्रावासों में रहने वाले किशोर-किशोरी ड्रग, नशा और व्यभिचार के 'साफ्ट टारगेट' होते हैं, ऐसे कुकर्मों में लगे लोग अपने देश में ही प्रतिवर्ष हजारों युवक-युवतियों की जिन्दगी बरबाद करने से बाज नहीं आते हैं।
पाकिस्तान जिसे भारत का सहोदर कहना भी अनुचित नहीं होगा, वह अपने निर्माण के समय से ही गुमराह है और लगातार बद से बदतर परिस्थितियों में घिरता जा रहा है। साधन या ध्येय शुद्ध नहीं हो तो शुद्ध साध्य हासिल हो ही नहीं सकता। गांधी के इस वाक्य की रोशनी में देखें तो भारत के टुकड़े कर अलग पाकिस्तान बनाने का उद्देश्य उसके कल्पनाकारों का शुद्ध नहीं था, अलग मुसलिम राष्ट्र की अपरिपक्व धारणा को मोहम्मद अली जिन्ना ने अपनी हेकड़ी से पुष्ट किया था। अन्य कोई मकसद उनका था भी नहीं। वे कहते थे कि भारत में मुसलमान आत्मसम्मान  के साथ नहीं रह सकते, समय ने इसे लगभग झूठ साबित किया है। मनोविज्ञान कहता है कि जो व्यक्ति खुद सुख-चैन से नहीं रहता वह अपने इर्द-गिर्द को भी सुख चैन से बैठने नहीं देता। कुछ ऐसी ही उसकी फितरत हो जाती है। पाकिस्तान इसी फितरत का शिकार है।
बांग्लादेश के निर्माण के बाद अपने टुकड़े होने का गुस्सा और टीस आम पाकिस्तानियों में रही है और वे इसके लिए बाहरी ताकतों में बड़ा जिम्मेदार भारत को मानते हैं जो सच भी है, लेकिन तब वे भूल जाते हैं कि तब के पूर्वी पाकिस्तान की पश्चिमी पाकिस्तान की ओर से सभी तरह से घोर उपेक्षा वहां के असंतोष की मुख्य वजह थी। बांग्लादेश बनने के बाद से ही वहां के बदले की मानसिकता वाले शासकीय और समर्थ लोग इस फिराक में रहते हैं कि चुकारा कैसे करें।
भारतीय मुसलमानों की साख ही थी कि पिछले सदी के आठवें दशक में बांग्लादेश के निर्माण का बदला लेने के लिए भी भारतीय मुसलमानों को बरगलाने का साहस पाकिस्तान ने नहीं किया। पंजाब में पूरी तरह असफल होने के बाद भी देश की अन्य जगह के मुसलमानों को गुमराह करने का उनका साहस नहीं हुआ। ऐतिहासिक भूलों के चलते बाद में असंतुष्ट कश्मीरियों को गुमराह करना शुरू किया और वह सफल भी हुआ। भारतीय राजनीतिज्ञ और शासक गहरे होते तो पाकिस्तान वहां भी ज्यादा सफल नहीं होता। अफसोस कि बहुत सी कही और घटी घटनाओं को अनकहा और अनकिया नहीं किया जा सकता।
अन्यत्र पढऩे को भेजने वाले सावचेत अभिभावक अपने बच्चों को उक्त उल्लेखित कुकर्मियों से बचाने की जिस तरह चौकसी बरतते हैं वैसी चौकसी बरतने की महती जिम्मेदारी भारतीय मुसलमानों की भी है कि वे अपने युवकों को गुमराह होने से रोकने में अतिरिक्त सावचेती बरतें, और बहुसंख्यक भारतीयों से भी यह उम्मीद की जाती है कि वे किसी समूहविशेष के बारे में सामान्यकृत तौर पर कुछ भी कहने से परहेज करें और उन्हें हिकारत से देखना छोड़ें।
'हम सब भारतीय हैं' कहना आसान है, इसे आत्मसात् करना थोड़ा मुश्किल है, पर अभ्यास से सब कुछ संभव है। अपने किसी गुमराह पारिवारिक को जिस तरह परोटते हैं, वैसी ही चेष्टा की जरूरत ऐसे भारतीयों युवकों के प्रति भी है।

29 मार्च, 2014

1 comment:

maitreyee said...

बिल्कुल सच