Tuesday, March 25, 2014

लॉलीपॉप या अंगूठा चूसना नहीं, हड्डी चूसना है बाइपास राग

पिछले ढाई साल में विनायक बाइपास की उपमा को तीसरी बार बदल रहा है, इसके लिए वह पाठकों के सम्मुख क्षमायाचक है। राहुल फार्मूले से घोषित कांग्रेस के लोकसभा उम्मीदवार शंकर पन्नू ने कल व्यक्तिगत घोषणा पत्र में शहरवासियों के मुंह में लॉलीपॉप या अंगूठा नहीं सू_खी हड्डी थमा दी है। कुत्ते के बहाने लोक में एक हिदायत इस कथारूप में प्रचलित है-कुत्ता कहीं से हड्डी उठा लाता है, मांस की सौरम कई दिन रहती ही है हड्डी में, वह चूसने और चबाने लगता है उसे। रस की लालसा में इतना चबाता है कि खुद का मुंह ही घायल करके अपने खून का सुख लेने में तब तक लगा रहता है जब तक उसका मुंह पूरी तरह घायल न हो जाए।
बीकानेर रेल बाइपास शहर के लिए उस हड्डी की तरह ही दुखदायी हो रहा है। जिस तरह कुत्ते के लिए हड्डी रस का कारक नहीं होती उसी तरह इस शहर के लिए छद्म सुख का हेतु है यह बाइपास। शंकर पन्नू पैराशूट से उतरे हैं, उन्हें क्या पता कि बीकानेर की असल समस्याएं और इनके समाधान क्या हैं। स्वहित साधक कुछ गिरोह हैं, जो बड़ी चतुराई से सभी पार्टियों के नेताओं को ‘फीडबैक’ देने पहुंच जाते हैं। इन नेताओं को भी असल में कुछ करना तो होता नहीं है सो उक्त गिरोहों से जानते-बूझते भी गुमराह इसलिए होते हैं कि आम-आवाम को गुमराह कर सकें। डॉ. बी.डी. कल्ला, गोपाल जोशी से लेकर अर्जुनराम मेघवाल शहर के साथ यही सब तो करते आ रहे हैं अरसे से। सिद्धीकुमारी को इस शहर से मतलब वोट लेने से ज्यादा है भी नहीं। इसलिए सभी बाइपास के बेसुरे राग को अलाप देते रहते हैं।
अब इनसे गर कोई पूछे कि इस देश में किसी शहर का कोई उदाहरण है कि ट्रैफिक समस्या की बिना पर कहीं रेल लाइन शहर बदर हुई हो, ज्यादा आगे क्यों जाएं, इर्द-गिर्द के चार बड़े शहरों की बात कर लेते हैं। बठिंडा, दिल्ली और अपने जयपुर-जोधपुर। ये ऐसे शहर हैं जहां की प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष वाकिफीयत शहर के तथाकथित मौजिजों को होगी ही। इन चारों ही शहरों में बीच से गुजरने वाली रेललाइन से होने वाली समस्या का क्या समाधान किया गया है? बठिंडा में बीच शहर से रेललाइन गुजरती है, उन्होंने अण्डरब्रिज, ओवरब्रिज और एलिवेटेड रोड से ही समाधान पाया। दिल्ली में तो ठीक चांदनी चौक के सामने से रेललाइन गुजरती है। जयपुर के नगर नियोजक वास्तुप्रेमी थे सो कुछ तो इस कारण और कुछ नाहरगढ़ पहाड़ की ओट में इसके बसे होने के कारण रेललाइन पुराने शहर से पर्याप्त दूरी पर डाली जा सकी। लेकिन अब तो शहर की नई और बड़ी बसावट रेललाइनों के पार तक है। जयपुर वाले यदि दीना के लाल की तरह जिद कर ले कि मैं तो वही बाइपास लूंगा तो जयपुर रेलवे स्टेशन को चक कर दूदू ले जाना होगा। गाहे बगाहे हर बात के लिए हम बीकानेरी जोधपुरियों से ईसका करते रहते हैं। वहां का स्टेशन कहां है और रेललाइनें जालोरी और सोजती गेट से कितनी दूर हैं। बीकानेरी मानते हैं कि जोधपुर वाले न केवल चतुर हैं बल्कि सक्षम भी हैं, वे कुछ भी करवा लेते हैं, वहां से तीन-तीन मुख्यमंत्री भी हुए हैं पर क्या जोधपुरी कभी सुगबुगाते भी हैं कि रेल बाइपास हो? वहां के नेता जानते हैं कि हम अपनी जनता को बुद्धू नहीं बना सकते सो काम करते और करवा लेते हैं।
हमारे किसी भी नेता की शहर को लेकर न दृष्टि है और न कोई योजना। अपनी इस अक्षमता को छुपाने के लिए शहर की भोली-भाली जनता को बेवकूफ बनाना इन्हें ज्यादा आसान लगता है, सो लगे रहते हैं। अर्जुन मेघवाल ने पांच साल यूं ही निकाल लिए और शंकर पन्नू ने भी कल अपना यही एजेन्डा दिया है, बाइपास की बात करके कि मुझे जितवाओं। अब तक उनसे पहलों ने जनता को जैसे बेवकूफ बनाया वैसे ही वे भी बनाते रहेंगे। जनता इस रेललाइन समस्या से तकलीफ भोगे तो भोगती रहे-कुत्ता भी हड्डी के बहाने अपने खून का ही तो रस लेता है। समाधान कर दिया तो ये नेता आगे भला किन मुद्दों पर जनता को बुद्धू बनाएंगे?

25 अप्रैल, 2014

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