Saturday, March 22, 2014

अशोक गहलोत से खरी-खरी

प्रदेश में हुए विधानसभा चुनावों के बाद पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपनी पहली बीकानेर यात्रा पर पूर्व विधायक और शहर में एक समय के बड़े कांग्रेसी नेता रामरतन कोचर स्मृति कार्यक्रम के लिए आए हैं। रात नौ बजे के बाद बीकानेर पहुंचे गहलोत को बड़े टीवी, अखबारों ने कोई खास भाव नहीं दिया। बावजूद इसके गहलोत राजस्थान के शीर्ष लोकप्रिय नेताओं में गिने जाते हैं। वे प्रत्येक जिले यहां तक कि तहसील कार्यकर्ता को उनके नाम से जानते हैं। कांग्रेस के अब तक सर्वाधिक विपरीत समय में भी गहलोत के प्रति कार्यकर्ताओं में लिहाज और सम्मान बाकी है।
बीकानेर जिले से 2008 के चुनावों में सात में से दो कांग्रेस के विधायक थे और पार्टी की केन्द्रीय स्तर पर साख लगभग खत्म होने के बावजूद 2013 के चुनावों से दो ही विधायक जीते हैं। समग्रता से देखें तो जिले में कांग्रेस ने यथास्थिति बनाए रखी। रही बात दोनों शहरी सीटों की तो ये दोनों ही सीटें पहले भी भाजपा के पास थीं। देखा जाए तो इन दोनों सीटों पर जीत-हार का अन्तर कम हुआ है यह अन्तर और भी कम या कहें पासा पलटू हो सकता था यदि नगर विकास न्यास के पूर्व अध्यक्ष मकसूद अहमद कल्ला बन्धुओं के कर्जे से मुक्त होने में न लगे होकर आम-आवाम की असल जरूरतों को पूरा करते और भानीभाई महापौरी भोगने से मुक्ति पाते। गहलोत का नजदीकी, होने की छाप के बावजूद स्थानीय निकायों के इन दोनों सर्वेसर्वाओं ने जनाकांक्षाओं पर खरे उतरने का कोई जतन नहीं किया। खैर लोक में कहा जाता है न कि 'गई बात ने घोड़ा ही कौनी नावड़े' यानी जो बीत चुका उसे बदला नहीं जा सकता।
उक्त सब उल्लेख आज गहलोत के बीकानेर प्रवास पर यह बताने के लिए किया कि जिले में उनकी पार्टी की जड़ें पुख्ता हैं। इस विपरीत माहौल और भानीभाई और हाजी मकसूद की अकर्मण्यताओं के बावजूद कांग्रेस की जड़ें कमजोर नहीं हुई हैं। खुद गहलोत के अपने दोनों मुख्यमंत्रित्वकाल में बीकानेर की सामान्य जरूरतों पर ध्यान नहीं देने का कारण यह हो सकता है कि उन्होंने इसकी जिम्मेदारी अपने समकक्षी डॉ. बी.डी. कल्ला की मान ली हो। लेकिन सरकार के मुखिया होने के नाते उन्हें कम से कम यह तो देखना ही चाहिए था कि क्षेत्रविशेष की जिम्मेदारियां जिनके जिम्मे हैं या जिन्होंने मानली वे खुद अपनी जिम्मेदारी निभाने की कूवत रखते हैं कि नहीं? गहलोत से यह उलाहना इसलिए भी बनता है कि जयपुर-जोधपुर जैसे जिन दो जिलों के शहरी विकास पर गहलोत अपने दोनों ही कार्यकाल में सर्वाधिक या कहें दूसरे जिलों के शहरी विकास की कीमत पर ध्यान दिया, उन जिलों के मतदाताओं ने कांग्रेस और गहलोत सरकार में कितना भरोसा जताया? पिछले विधानसभा चुनावों में जयपुर जिले से कांग्रेस का एक भी उम्मीदवार नहीं जीता और जोधपुर जिले से कांग्रेस के जीतने वाले एकमात्र खुद गहलोत हैं। जाहिर है कि महामन्दिर, जोधपुर से कांग्रेसी उम्मीदवार गहलोत नहीं होते तो यह सीट भी भाजपा जीतती। इन दोनों ही शहरों के विकास में गहलोत ने धन खरचने में विभिन्न जिलों पर बराबर खर्च की धारणा को नजरअन्दाज कर न्यायप्रियता नहीं दिखाई थी। गहलोत को अब तो यह समझ लेना चाहिए कि उनकी पार्टी की जड़ें बीकानेर में गहरी हैं। वे यदि यहां के हकों का ध्यान रखकर इन जड़ों को सींचते तो कम से कम यहां के परिणाम भिन्न होते।
मोदी के विकास की बात करने वालों को यह समझ लेना चाहिए कि अगर असल विकास यही है तो जयपुर और जोधपुर में पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की गत यह नहीं होती और यह भी कि विकास पर मोदी के खोखले दावों की हकीकत को भी समझने की जरूरत है। दरअस्ल लोकसभा का यह चुनाव नकारात्मक वोट का चुनाव है, क्योंकि केन्द्र की कांग्रेसनीत सरकार ने भरोसा खो दिया है और उसे लपकने में मोदी सफल होते दीख रहे हैं।

22 मार्च, 2014

No comments: