Monday, March 10, 2014

राहुल और मोदी के बहाने

कोई आकस्मिक कारण नहीं बना तो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी आज की शाम बीकानेर की कोलायत तहसील में होंगे। लगभग दो घण्टे का यह संक्षिप्त प्रवास जनता से उनके सीधे जुड़ाव अभियान का हिस्सा है जिसे राहुल और उनकी पार्टी पिछले दिनों से अंजाम दे रहे हैं। कोलायत क्षेत्र में एक निजी खान पर आयोजित इस कार्यक्रम में कहने को तो राहुल लगभग पांच सौ खान श्रमिकों से संवाद करेंगे, उनकी समस्याओं को जानने-समझने का प्रयास करेंगे पर अब तक हुए ऐसे आयोजनों से ऐसा खास कुछ होता देखा नहीं गया। इन कार्यक्रमों से सभी तरह के मीडिया को दूर रखा जाता है और तय एजेंसी द्वारा रिकार्डेड और सम्पादित क्लिप ही टीवी, अखबार वालों को उपलब्ध करवाई जाती है। जिन तरह के समूहों से राहुल मुखातिब होते हैं उनकी जरूरतों और समस्याओं से सम्बन्धित फीडबैक के आधार पर अपनी समझ के अनुसार मासूमियत भरा ज्ञान बघारते हैं। कोई कुछ पूछना भी चाहे तो जयराम रमेश जैसे चतुर दरबारी तत्काल बीच में आकर टोक देते हैं कि ऐसे नहीं, आप नहीं आपकी ओर से मैं ही पूछ लेता हूँ, हरियाणा में हुए एक कार्यक्रम का हश्र ऐसे ही होता देखा है।
राहुल को जो तरीका पांच साल पहले से अपनाना था, उसे वह अब अपना रहे हैं जब चुनाव सिर पर हैं। इस तरह के तरीके को टीवी में रहे लिक्विड शॉप के विज्ञापन के संवाद से जाना जा सकता है जिसमें एक बालक द्वारा साबुन से हाथ धोने पर किशोरी कहती है 'तेरा साबुन स्लो है क्या' ठीक इसी तरह राहुल के इस 'स्लो' अभियान को 2019 के संभावित चुनावों की तैयारी के रूप में समझा जा सकता है।
कहते हैं भाजपा और उनके घोषित 'पीएम इन वेटिंग' नरेन्द्र मोदी और कांग्रेस उसके अघोषित पीएम इन वेटिंग, दोनों के इन अखाड़ों को सजाने का काम कई सौ करोड़ रुपये में विदेशी एजेन्सियों को दिया गया है। इस में भी मोदी बाजी  मार ले गये। उन्होंने केवल मतदाताओं को प्रभावित करने का परम्परागत और आजमाये तरीके को बारम्बार अपनाया बल्कि वीडियोग्राफी की उस तकनीक का सहारा भी लिया जिसमें भीड़ को इस तरह दिखाया जाता है कि रिकार्डिंग देखने पर वह असल से पांच गुना लगे। मोदी के चुनाव प्रबन्धक उनके स्थाई आलोचक टीवी अखबारों को भी मैनेज करते दिखने लगे हैं और उनके द्वारा मैनेज साक्षात्कार भी अब छोटे पर्दे पर आने लगे हैं। ठीक ऐसे ही सीधे संवाद की चौपालों में यह खास ध्यान रखा जाता है कि मोदी से कोई ऐसा सवाल पूछा जाए जिसके चलते उन्हें पसीना आने लगे और पानी के दो घूंट की जरूरत हो।
दरअसल कांग्रेस के अघोषित पीएम इन वेटिंग राहुल गांधी और भाजपा के घोषित पीएम इन वेटिंग नरेन्द्र मोदी, दोनों ही के प्रबन्धक इस जुगत में लगे रहते हैं कि उनके आकाओं को 'छुट्टे' सवालों का सामना करना पड़े। मोदी अपने ज्ञात इतिहास के आईने के मुखातिब होने से डरते हैं तो राहुल अपने अज्ञान के चलते 'छुट्टे' प्रश्नों से इसलिए कतराते हैं कि उनकी पोल कहीं चौड़े ना जाए। यह दोनों ही चुनाव जीतने के एक ही लक्ष्य से भिन्न-भिन्न तरीकों से आम-आवाम को बरगलाने में लगे हैं। समस्या यही है कि देश के अधिकांश मतदाता आज के इन राजनेताओं और उनकी पार्टियों के धोखे को समझ और भ्रमित होकर इन्हें चुन लेते हैं। हर व्यवस्था की सीमाएं होती हैं, शासन की श्रेष्ठतम मानी गई इस लोकतान्त्रिक व्यवस्था की भी यह सीमाएं हैं जिनका विस्तार मतदाता अपने वोट की ताकत को समझ कर ही कर सकता है, उपाय भी यही है। आजादी बाद इस तरह का जतन किसी पार्टी-व्यक्ति ने नहीं किया। आजादी के तुरन्त बाद गांधी ने जरूर इशारा किया और कांग्रेस का आह्वान किया था कि उन्हें इस काम में लग जाना चाहिए लेकिन कांग्रेस शासक पार्टी हो गई। गांधी को इस महती लोकतान्त्रिक उद्देश्य के लिए जिन्दा नहीं रहने दिया गया, अगर गांधी कुछ वर्ष और जीते तो शायद ऐसे किसी अभियान की रूपरेखा देकर आगाज तो कर ही देते।

10 मार्च, 2014

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