Friday, February 7, 2014

विधेयक विरोध के मानी

जमाखोरी और कालाबाजारी पर अंकुश लगाने के मकसद से लाये गये विधेयक को कल विधानसभा में राज्य सरकार ने पारित तो करवा लिया लेकिन उनकी पार्टी के कुछ विधायकों ने इसका समर्थन पुरजोर असहमति जताते हुए किया। इनमें गुलाबचन्द कटारिया (जो मंत्री भी हैं) और घनश्याम तिवाड़ी जैसे मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे के समकक्षी विधायक भी शामिल हैं। भाजपा को मिली सफलता के दो बड़े कारणों में खुलते घोटाले और लगातार बढ़ती महंगाई के चलते केन्द्र सरकार की खत्म हुई साख है। शीघ्र ही होने वाले लोकसभा चुनावों में भाजपा को यदि ठीक-ठाक सफलता हासिल करनी है तो ऐसे कुछ निर्णय जरूरी हैं जिसे दिखाकर कह सकें कि हम कुछ अलग करने के लिए आये हैं, अन्यथा इन राजनेताओं को हम गिरोह के रूप में काम करते देखते आए हैं। प्राकृतिक सम्पदाओं का राक्षसी दोहन हो या व्यापार में सैकड़ों प्रतिशत तक की मुनाफाखोरी, मिलावट और जमाखोरी राजनेताओं भ्रष्ट अफसरों और सरकारी मुलाजिमों को मिलीभगत के साथ गिरोह के रूप में काम करते देखते हैं।
राज करने का चरित्र भाजपा और कांग्रेस दोनों का एक-सा है, मात्रा का अन्तर उन्हें मिले अवसरों के अन्तर जितना भर है। खबरों पर नजर डालें तो यूं लगने लगा है कि देश कुछ उन अफ्रीकी देशों की सी स्थितियों की ओर बढ़ने को तत्पर दिखता है जहां सिर्फ और सिर्फ डण्डे का राज है और डण्डा उठाते वही हैं जो संवेदनहीन होते हैं और ताकत की भाषा जानते हैं। इसे अराजकता कह सकते हैं। तैश में आकर आम आदमी पार्टी नेता अरविन्द केजरीवाल ने खुद के अराजक होने की एक बार पुष्टि की और मोहनदास करमचन्द गांधी ने भी अराजक कल्पना को आदर्श राज बताया है। अराजक शब्द के तीनों प्रयोगों के उद्देश्य और मानी भिन्न हैं। गांधी की अराजकता आत्मानुशासन की अराजकता है जिसमें प्रत्येक नागरिक ऐसा हो जाये कि किसी भी तरह की शासन व्यवस्था की जरूरत ही रहे। केजरीवाल के अराजक होेने का सन्दर्भ राज पर भरोसा उठने से उपजी प्रतिक्रिया से है और कुछ अफ्रीकी देशों के सन्दर्भ से बात करें तो वहां राज का भय है और ही भान, जिसकी लाठी उसकी भैंस भी अराजकता की नकारात्मक पराकाष्ठा ही है।
बात जमाखोरी और कालाबाजारी के विधेयक से शुरू की और बताया कि खुद शासक पार्टी के मंत्री और मोजिज विधायक इसके विरोध में खड़े हो गये। इनमें से कुछ विधायक तीस-तीस, चालीस-चालीस वर्षों से राजनीति कर रहे हैं और प्रभावी हैसियत में भी हैं। राज में रहते और राज से बाहर रहते कभी इनसे नहीं सुना कि इन्होंने मिलावट मुनाफाखोरी, कालाबाजारी के विरोध में सक्रियता दिखाई। कभी इनसे यह भी नहीं सुना कि इन्होंने टैक्सचोरी की चाहे वह इनकमटैक्स की हो या एक्साइज ड्यूटी की। सेल्स टैक्स था तब भी और अब वेट है तब भी इनने ईमानदारी से भरवाने की बात भी की हो। अब तो इस धारणा को लगभग स्थापित ही कर दिया गया है कि व्यापार और उद्योग बिना बेईमानी के चल ही नहीं सकते। एक पहले दिन खाद्य लाइसेंस की अनिवार्यता में छह माह की ढील देकर दूसरे दिन इस विधेयक से रास खींचने के मकसद को समझना भी जरूरी है।

7 फरवरी, 2014

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