Tuesday, February 18, 2014

जनहित याचिका जैसी सकारात्मक पहल

बीकानेर में आम सुविधाओं को लेकर उच्च न्यायालय में लगी जनहित याचिका एक कारगर पहल है। जयपुर और जोधपुर जहां उच्च न्यायालय है, वहां जब तब इस तरह की याचिकाएं लगने की खबरें आती रही हैं। यहां के कुछ सजग लोग जनहित को लेकर अकसर याचिका लगाना चाहते हैं पर जोधपुर जाने के नाम पर ठिठक जाते हैं। कहा जाता है कि जनहित याचिकाएं केवल उच्च न्यायालय ही स्वीकार करता है। राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय जोधपुर के मुकुल कृष्ण व्यास और रामकिशोर पूनिया नाम के दो छात्रों ने एक याचिका लगाई है जिसमें शहर के बीच से गुजरती रेल फाटकों की समस्या, फड़ बाजार की अव्यवस्थाएं और यातायात पुलिस की निष्क्रियता को रेखांकित किया गया है। कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए सम्बन्धित विभागों को नोटिस भेज कर जवाब मांगा है।
उक्त दोनों छात्रों द्वारा उठाये मुद्दों पर जब तब चर्चा होती रही है--सजग लोगों की बातचीत में भी और स्थानीय अखबारों में भी, लेकिन बद से बदतर होती इन व्यवस्थाओं पर ध्यान जनप्रतिनिधियों का जाता है, राजनेताओं का और ही सम्बन्धित अधिकारियों का। यह ऐसी समस्याएं हैं जिनके समाधान के लिए किसी बड़ी मशक्कत की जरूरत नहीं है केवल जनप्रतिनिधियों और राजनेताओं की इच्छाशक्ति की जरूरत है, यदि ऐसा सम्भव हो जाय तो सम्बन्धित अधिकारी इन्हें हल करने को तत्पर हो सकते हैं। रेल फाटकों की समस्या 2008 में स्थानीय नेताओं की उदासीनता के चलते हल होते-होेते रह गई। यदि उस समय ये नेता समझदारी दिखाते तो ऐलिवेटेड रोड आज कब का बन चुका होता। फड़ बाजार की समस्या तो प्रशासनिक स्तर पर निबटाई जा सकती है। प्रशासन जब तब कोशिश भी करता है लेकिन हमारे यहां के नेता ही इनका हाथ रोक लेते हैं। कुछ निहित स्वार्थी गाड़ेवाले और व्यापारी इन नेताओं के पास पहुंच जाते हैं और यथास्थिति को कायम रखवा लेते हैं।
ठीक यही मामला यातायात व्यवस्था का भी है। जो नेता किसी परिचित को हेलमेट पहनने पर चालान हेतु रोकने मात्र के लिए यातायात सिपाही को फोन कर देते हैं उनसे क्या उम्मीद की जा सकती है? वहीं अनधिकृत ऑटोरिक्शाओं को धड़ल्ले से चलने देने और बिना लाइसेंसधारी वाहन चालकों को यातायात का हिस्सा बनाये रखने के लिए यूनियन नेताओं ने बीकानेर की यातायात पुलिस को पंगु बना दिया। पंगु भी ऐसा कि इस विभाग को उप अधीक्षक स्तर का अधिकारी अलग से मिल जाने पर भी उसकी उपस्थिति का एहसास यातायात व्यवस्था नहीं करवा पा रही है। कुछ दिन कोई व्यवस्था बनायी और लागू भी की जाती है तो लागू करते ही कुछ मनचले उस व्यवस्था के दिन तय करके शर्तें लगा लेते हैं और जीत-हार कर पार्टी भी, और यातायात धड़ल्ले से अपने ढर्रे पर लौट आता है।

18 फरवरी, 2014

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