तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अधिष्ठाता आचार्य महाश्रमण का नगर प्रवेश आज हो गया है। तेरापंथ जैन (श्वेताम्बर) धर्मावलम्बियों की एक शाखा है। इस संघ की व्यापक पहचान नवें गुरु आचार्य तुलसी के समय बनी और बौद्धिक प्रतिष्ठा मनीषी आचार्य महाप्रज्ञ (मुनि नथमल) से बनी। आचार्य तुलसी ने जब-तब अध्यात्मेत्तर मुद्दों में रुचि दिखाई और भूमिकाएं भी अदा कीं। आचार्य महाप्रज्ञ अपनी बौद्धिक मनीषा के साथ आचार्य तुलसी की तरह अन्य मुद्दों पर अपनी राय खुलकर प्रकट करते रहे थे। तेरापंथ धर्मसंघ में बीकानेर का अच्छा-खासा महत्त्व है। इस पंथ में आस्थावानों की अच्छी-खासी और अधिकांशत: वणिक समुदायी होने के चलते यहां प्रभावी उपस्थिति है। अलावा इसके आचार्य तुलसी ने अपनी देह यहीं त्यागी सो उनके अन्तिम संस्कारोपरांत बनी प्रतीकात्मक प्रेरक स्मृति भी यहीं है।
आचार्य महाश्रमण की इस यात्रा विशेष का महत्त्व दो कारणों से माना जा रहा है। एक तो उनके आचार्य पद ग्रहण करने के बाद बीकानेर क्षेत्र की उनकी पहली यात्रा है, दूसरा इसके बाद महाश्रमण पंजाब-दिल्ली होते हुए कई वर्षों के लिए नेपाल व पूर्वोत्तर प्रदेशों की यात्रा पर जाएंगे। उनके अनुयायियों को ऐसे में लगता है कि फिर कई वर्षों तक उन्हें ऐसा अवसर हासिल नहीं होगा। आचार्य महाश्रमण बीकानेर प्रवास के दौरान भीनासर, बीकानेर शहर, नाल और गंगाशहर में रहेंगे। गंगाशहर में ही तेरापंथ धर्मसंघ की सालाना योजनाएं और सन्त-सतियों के प्रवास तय होंगे, इस आयोजन को मर्यादा महोत्सव के नाम से सम्बोधित किया जाता है। चूंकि गंगाशहर का यह मर्यादा महोत्सव एक सौ पचासवां भी है सो एक इस वजह से भी इसे विशेष महत्त्व दिया जा रहा है।
आचार्य महाश्रमण के इस प्रवेश से सम्बन्धित खबरों और वक्तव्यों में ‘अहिंसक जैन भाव’ के प्रतिकूल शब्दों यथा सेना-शक्ति आदि शब्दों का प्रयोग अखरता है। जिस जैन आचार-व्यवहार में अहिंसा के प्रति आग्रह कई दफा अतिरेक की हद तक देखे जाते हैं उनके सन्दर्भ से हिंसा मिश्रित शब्दावली का प्रयोग अखरता है। इस तरह के शब्दों के प्रयोग की सफाई में तर्कों की गलियां-रास्ते तो ढूंढ़े जा सकते हैं पर निर्मल प्रज्ञा में खरेपन की कमी रड़केगी ही। सम्प्रेषणीयता
के लोभ में भी इस तरह की शब्दावली से बचना उस लोक प्रचलित अखाणे के हिसाब से भी जरूरी है जिसमें कलाई पकड़वाने से बचने को अंगुली ना पकड़वाने की हिदायत दी जाती है।
आचार्य महाश्रमण के इस नगर प्रवास को ‘विनायक’ प्रणम्य इस उम्मीद के साथ मानता है कि बहुत थोड़ी ही सही उनकी इस उपस्थिति से यहां के जन जीवन में सकारात्मकता
का संचार होगा।
07
जनवरी, 2014
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