Tuesday, December 3, 2013

सट्टा बाजार मीडिया और समाज

रविवार को प्रदेश की 14वीं विधानसभा के लिए मतदान सम्पन्न हो गया है। मान्यता प्राप्त दल के प्रत्याशी की मृत्यु होने के कारण चूरू में मतदान 13 दिसम्बर को होना है। शेष 199 क्षेत्रों की मतगणना इसी आठ को होनी है। चूंकि इस दौर की पांच विधानसभाओं में से दिल्ली में मतदान चार दिसम्बर को होना है सो मतदान बाद के सर्वे पर चर्चा दिल्ली में मतदान के बाद ही होगी। जब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया नहीं था और ना ही मतदान पूर्व और बाद के सर्वे का चलन शुरू हुआ था तब अधिकांश प्रदेशों में मतदान भी दो-तीन दौर में पूर्ण होता था। चुनाव आयोग को अब सभी तरह के संसाधन और सुरक्षा व्यवस्थाएं संपूर्ण प्रदेश के लिए एक साथ उपलब्ध होने लगी तो राजस्थान जैसे सबसे बड़े भू-भाग वाले प्रदेश में भी मतदान एक दिन में सम्पन्न होने लगे हैं।
ज्यों-ज्यों संचार के साधन बढ़ने लगे हैं त्यों-त्यों चुनाव परिणामों में रुचि और उत्सुकता रखने वालों में अमूझणी भी बढ़ने लगी है। पहले कभी पूरे प्रदेश की जीत हार के दावे-प्रतिदावे इस तरह से सम्भव नहीं थे। थोड़ी-बहुत जो बळत रखते थे वह या तो जुगाळी करके शान्त हो लेते थे और जिनको कुछ ज्यादा ही बायड़ होती वह सट्टा बाजार जाकर आफरा उतरवा लेते। सट्टा बाजार के बारे में यह आम धारणा है कि यह बाजार हमेशा चाकू की ही भूमिका में रहता है और आए-गए खरबूजे। बावजूद इस आम जानकारी के सट्टा बाजार लगातार ना केवल रोशन होता जा रहा है बल्कि हॉइटेक भी। अब इस अनधिकृत बाजार के कुल लेन-देन में कम और न्यूनतम मजदूरी वालों की हिस्सेदारी लगातार कम होती जा रही है और मोटी रकम का लेन-देन करने वाले दो नम्बरी कमाई वाले अपने धन को एडे ज्यादा लगाने लगे हैं। ये सारे काम अब कम्प्यूटर, टेलीफोन और मोबाइल से सम्पन्न होने लगे हैं। इसीलिए सट्टा बाजार के नाम से कुख्यात बाजारों की रौनकें दिन--दिन घटती जा रही है। रियासत काल में कोटगेट बाहर का सट्टा बाजार कभी ऐसे सौदों के लिए कुख्यात था लेकिन पिछले कुछ वर्षों से शायद ही कोई सौदे यहां भुगताए गए हों। धीरे-धीरे यह काम बड़ा बाजार क्षेत्र के सट्टा बाजार में शिफ्ट हो गया। वहां आज भी यह अवैध काम धड़ल्ले से होता है। यही बाजार छोटी-मोटी मजूरी करने वाले कई लोगों के घर-परिवार की न्यूनतम जरूरतों को पूरा करने में आज भी बाधक बने हुए हैं।
हमारा मीडिया भी इन्हें सुर्खियां और प्रतिष्ठा देने में पीछे नहीं रहता, कम से कम चुनावों के दौर में। हालांकि क्रिकेट आदि के सट्टे की खबरें अखबारों और टीवी में नहीं आती है लेकिन चुनाव कोई भी हो, घोषणा से लेकर परिणामों और सरकार बनने तक इन सटोरियों के वारे-न्यारे होते हैं और पूरा कारोबार अवैध होने के बावजूद मीडिया इन्हें सुर्खियां देने से नहीं चूकता। प्रशासन और पुलिस जहां इस तरह की खबरों से आंखें मूंद और कान बन्द कर लेती है वहींप्रेस कौंसिल ऑफ इण्डियापता नहीं क्यों इस तरह की खबरों का संज्ञान नहीं लेती? जीवन शैली का अधिकांश हम बाजार के हवाले कर चुके हैं और करते जा रहे हैं। लोकतंत्र का चौथा खम्भा कहलाने वाला मीडिया भी इस बाजार की लगभग कठपुतली बन चुका है। भ्रष्ट राजनेता और अफसरशाही पहले से अपना लाभ बाजार में ही देखने लगे हैं। जीवन शैली के बाद जीवन और सांसें भी लगता है जल्द ही बाजार के हवाले हो जायेंगी। बाजार बिना धन के संचालित नहीं होता। होगा यही कि जो आर्थिक रूप से सब से कमजोर हैं उनके जीवन का हक इसी तरह खत्म होता जायेगा और यह बाजार अपनी फितरत के अनुसार खत्म हुए वर्ग से ऊपर के वर्गों को शनै:-शनै: शिकार बनाता चला जायेगा।

3 दिसम्बर, 2013


1 comment:

Unknown said...

आपने भी तो एक संपादकीय इस पर कुर्बान कर दिया..... राज्य और शहर के परिणामों पर आपके विचार जानने की उत्सुकता थी.
....