Saturday, December 21, 2013

राज का भान करवाने की कुव्वत

विनायकने पिछले दिनों अपने इसी कॉलम में लिखा था कि राजनेताई व्यवसाय में प्रदर्शन कला का बड़ा महत्त्व है और कभी यह भी लिखा कि लोकतंत्र में राज का होते दिखना भी जरूरी है। इसी के मद्देनजर विनायक ने अपने इसी कॉलम में स्थानीय निकायों के दोनों कांग्रेसी नेताओं महापौर भवानीशंकर शर्मा और नगर विकास न्यास अध्यक्ष रहे मकसूद अहमद को एक से अधिक बार चेताया था कि वे अपने-अपने निकायों के आधारभूत कर्तव्यों के निर्वहन पर ध्यान दें अन्यथा बीकानेर शहर के दोनों विधानसभा क्षेत्रों (पूर्व पश्चिम) में उनकी पार्टी हारती है तो उसके जिम्मेदारों में आपका शुमार भी होगा।
आम सुविधाएं सुचारु नहीं होती है तो एंटी इनकम्बेंसी को मुखर होने से नहीं रोका जा सकता। यह एंटी इनकम्बेंसी, उन मतदाताओं पर ज्यादा असर करती हैं जो सीधे या व्यक्तिगत या किसी छोटे मोटे समूह के रूप में राज से सीधे लाभान्वित नहीं हुए होते हैं और ऐसे वोटर कम नहीं होते। भानीभाई और हाजी मकसूद को यह नहीं भूलना चाहिए कि पिछले विधानसभा चुनाव में शहर की दोनों सीटें उनकी पार्टी हार गई थी।
विनायक, 25  सितम्बर, 2013
हाजी मकसूद और भानीभाई दोनों ये भूल रहे हैं कि यदि कांग्रेस इन दोनों शहरी क्षेत्रों से फिर हारती है तो इन दोनों की जिम्मेदारी भी कम नहीं होगी।
विनायक,  24 सितम्बर,  2013
उक्त सब कही की प्रासंगिकता का खयाल यह देख-सुन कर आया कि वसुन्धरा राजे ने सत्ता संभालते ही सबसे पहले जो निर्देश दिए वह शहरी आम जरूरतों को लेकर दिए हैं और दिए भी तो स्थानीय निकायों के जनप्रतिनिधियों को नहीं, जिला प्रशासन को दिए। फिर वह स्थानीय निकाय चाहे भाजपा नेतृत्व वाले हों या कांग्रेस के नेतृत्व वाले। वसुन्धरा को इसका भान है कि इन जनप्रतिनिधि के मुंह में दांत नहीं है या काम लेने का ऐसा माद्दा नहीं जो अपने अधीनस्थों से काम ले सकें। सो, वसुन्धरा राजे ने अपने राज संभालने की दुंदुभि सुनाने के लिए उन्हीं स्थानीय निकायों के नाकारा मान लिए गये सरकारी कारकूनों को जिला कलक्टरों से हड़कवाया है जिनकी अकर्मण्यता के चलते आम शहरियों मेंराजके होने का उलाहना रहता है।
हाजी मकसूद के न्यास अध्यक्षी से त्यागपत्र के बाद यह जिम्मेदारी वैसे ही कलक्टर के पास गई तो नगर निगम में चुना महापौर होने के बावजूद प्रशासन ने निगम को जैसे हाइजैक कर लिया हो। दिशाहीन नेतृत्व और भय के अभाव में लगभग निकम्मी छवि की छाया में रहनेवाले निगम और न्यास के यही कर्मचारी इन दो-चार दिनों में केवल मुस्तैद दिखने लगे हैं बल्कि लाइन हाजिर से दिखाई देने लगे हैं।
समय रहते ऐसे बल का भान भानीभाई और हाजी मकसूद को हो जाता तो कम से कम इस शहर में कांग्रेस इस गत को तो प्राप्त नहीं होती। विनायक ने समय रहते इस बल को याद दिलाने की जिम्मेदारी बखूबी निभाई है। अपने असल कर्तव्यों को छोड़कर भानीभाई पद भोगने में लगे रहे और मकसूद कल्ला बंधुओं से कर्जमुक्त होने में। परिणाम हम सबके सामने है।

21 दिसम्बर, 2013

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