देश में व्याप्त भ्रष्टाचार के उपचार का एक उपाय लोकपाल विधेयक संसद ने पारित कर दिया है, राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होते ही इसे प्रभावी करने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। इससे पूर्व भी एक ऐसा ही उपाय ‘सूचना का अधिकार कानून’ (आरटीआई) इन्हीं मनमोहनसिंह की सरकार ने लागू किया था। आरटीआई के दुरुपयोग के उदाहरणों को छोड़ दें तो परिणाम सकारात्मक हैं, बशर्ते लोगबाग इसमें भरोसा जताएं और सतत तत्परता से इसका उपयोग करें। लोकपाल व्यवस्था लागू होने और इस पर भरोसा करके सदुपयोग के परिणाम भी कम असरकारक नहीं होंगे, ऐसी उम्मीदें हमें रखनी चाहिए। लोकतांत्रिक
प्रक्रियाओं में हमेशा ठीक वैसे ही होने की गुंजाइश नहीं होती जैसे आप चाह और सोच रहे होते हैं, जिससे अधिकांश सहमत हों और उचित लगे उसे स्वीकार किया जाता है, असहमत होने की संभावनाएं फिर भी बनी रहती है। वैसे भी कोई कानून और व्यवस्था लोकतंत्र में अन्तिम नहीं होती हां, इन सबकी निगरानी के लिए सावचेती की जरूरत हमेशा समझ्ानी चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता है तो किया-धरा अप्रभावी और समाप्त होते देर नहीं लगती। फिर यथास्थिति तक लौटाने में समाज और देश को भारी कीमत चुकानी होती है। ऐसा भुगतान कमोबेश जब तब हम करते रहे हैं, आपातकाल और सरकारी नजरअंदाजी में हुए दंगे इसके उदाहरण हैं।
सूचना का अधिकार कानून हो या लोकपाल यह हक हमें ऐसे ही हासिल नहीं हो गये हैं। इनके लिए विभिन्न तरीकों और विभिन्न स्तरों पर संगठित और असंगठित प्रयास लगातार किए जाते रहे हैं तभी इन्हें हम हासिल कर पाएं हैं। इस तरह के सब प्रयास उन शासक-प्रशासकों के साथ थे जिनके तथाकथित हित और सुविधाएं इन कानूनों से प्रभावित होने थे और हो सकता है। सूचना के अधिकार कानून से ये प्रभावित होते रहे हैं और लोकपाल से भी उसी तबके के निजी हित प्रभावित होंगे जिनसे यह व्यवस्थाएं वैधानिक रूप से लागू करवाई गई हैं।
सभी जानते हैं कि देश की आजादी के इन छियासठ वर्षों में प्रशासनिक अधिकारियों और शासक नेताओं की जुगलबन्दी के चलते भ्रष्ट आचरण को न केवल नजरअन्दाज किया जाता रहा बल्कि छूट और शह मिलती रही है। लोकपाल यदि प्रभावी तरीके से लागू होता है तो यही दो वर्ग इस लोकपाल व्यवस्था के चौखटे में सर्वाधिक आएंगे। शासन में देखा गया है कि ऊपरी तबके के चाल-चलन का अनुशरण नीचे तक किया जाता है, भ्रष्टाचार को प्रतिष्ठा दिलाने का निर्भय प्रवाह इसी तरह नीचे तक पहुंचा है। आम आदमी लोकपाल और सूचना के अधिकारों का प्रयोग धैर्य और भरोसे के साथ करें तो आश्चर्यजनक परिणाम हासिल हो सकते हैं।
गांधी के तरीकों को नाकारा या समय से बाहर माननेवालों को समझ लेना चाहिए कि लोकपाल जैसा कानून अन्ना हजारे ने गांधीवादी तरीकों से ही उन नियन्ताओं से पास करवा लिया जो इस कानून से सबसे ज्यादा प्रभावित होने हैं। अहिंसक तरीकों की ताकत को समझना चाहिए। आजादी बाद अहिंसक तरीकों में एक ताकत वोटों की भी जुड़ गई है जो 1947 से पहले आजादी की लड़ाई लड़ने वालों के पास नहीं थी। अन्ना ने हासिल करने के गांधीवादी तरीकों को फिर से प्रतिष्ठित किया है।
19
दिसम्बर, 2013
No comments:
Post a Comment