Wednesday, November 6, 2013

चुनावी चकारिये में बीकानेर

भाजपा ने कांग्रेस के घोषित तिरेसठ के मुकाबले दो सौ में से अपने एक सौ छियत्तर उम्मीदवारों के नाम घोषित कर इस मामले में बढ़त बना ली। कांग्रेस और भाजपा, दोनों की सूचियां सरसरी तौर से देखें तो लगता है कांग्रेस ज्यादा परिपक्व तरीके से इसे अंजाम देने में लगी है और भाजपा में इसका अभाव महसूस किया जा सकता है।
बीकानेर जिले की सात सीटों के सन्दर्भ से बात करें तो कांग्रेस की पहली सूची में कुल तीन नामों की घोषणा की गई है और निर्विवादित से एक नाम गृहराज्यमंत्री वीरेन्द्र बेनीवाल तक का रोक लिया, वहीं भाजपा ने सात में से छह उम्मीदवारों की घोषणा भले ही कर दी, पर इन छह में से दो पर ना केवल विरोध के स्वर सुनाई देने लगे हैं बल्कि प्रदेश के कद्दावर नेता मानिकचन्द सुराणा ने तो विद्रोही के रूप में अपनी उम्मीदवारी भी घोषित कर दी। शेष चार में से तीन देवीसिंह, विश्वनाथ और सिद्धीकुमारी विधायक हैं और श्रीडूंगरगढ़ से किशनराम नाई को टिकट नहीं दी जाती तो लूणकरणसर वाली भूल यहां भी हो जाती। बीकानेर (पश्चिम) से विधायक गोपाल जोशी का टिकट रोका नहीं हटाया गया लगता है। वसुन्धरा राजे को सिद्धीकुमारी को लड़ाना है और पार्टी के असन्तोष को भी बेअसर करना है सो गोपाल जोशी की टिकट की बलि लेना शायद जरूरी हो गया होगा। गोपाल जोशी को टिकट ना देने से एक गरज और भी सज सकती है। भाजपा के घोषित नामों में कर्मचारी राजनीति का प्रतिनिधित्व नहीं दिख रहा है, हो सकता है बीकानेर मूल के सचिवालयी नेता महेश व्यास को टिकट देने से यह खानापूर्ति भी हो जाए। महेश व्यास ने चुनावी राजनीति करने के वास्ते ही हाल ही में सेवानिवृत्ति ली है। बीकानेर (पश्चिम) से जो दो अन्य नाम घोषणा की फांस बने हैं वह विजय आचार्य और ओपी हर्ष के हैं। विजय आचार्य जहां संघी कोटे से हुड़ा लगाए हुए हैं तो ओपी हर्ष खुद वसुन्धरा की पसन्द तो हैं ही, कहा जा रहा है वे भैरोसिंह शेखावत की पत्नी द्वारा अनुशंसित भी हैं। भैरोसिंह की पत्नी ने दो ही नामों की अनुशंसा की बताते हैं, जिनमें पहला नाम खुद के दामाद नरपतसिंह राजवी का होना ही था। इससे यह जाहिर भी होता है कि नरपतसिंह अभी तक उस हैसियत को हासिल नहीं हुए हैं कि उनका टिकट अपने आप ही जाय।
नोखा से घोषित भाजपाई उम्मीदवार सहीराम बिश्नोई के बारे में कहा जाता है कि नोखा में वे भाजपा का झण्डा तब से लिए घूम रहे हैं जब नोखा क्षेत्र में पार्टी के नाम लेवा इक्का-दुक्का ही होते थे। केवल इस बिना पर सहीराम को टिकट मिलने की बात कानों में नहीं उतर रही है, अन्दर की बात चौड़े आना बाकी है। बिहारीलाल जैसे मेहनती युवा को टिकट रिपीट ना करके पार्टी ने उन नेताओं को हतोत्साहित किया है जो लगातार अपने क्षेत्र में ऐसी उम्मीदों से सक्रिय रहते आए हैं। इसी तरह का मामला लूनकरणसर का है, मानिक सुराणा जैसे आदर्श जनप्रतिनिधि को इस बार भी टिकट ना देने का खमियाजा पार्टी उठाएगी। सुराणा राजस्थान के उन गिने-चुने राजनेताओं में से हैं जो अपने मतदाताओं के सम्पर्क में निरन्तर रहते हैं। पिछले चुनाव में भी भाजपा ने बिना, सोचे-समझे श्रीडूंगरगढ़ के साथ लूणकरणसर क्षेत्र भी समझौते में इनलोद को दे दिया था अन्यथा इस जिले में कांग्रेस का शायद खाता भी ना खुलता? भाजपा ने लूणकरनसर से ग्रामीण इकाई के महामंत्री और थोक दवा विक्रेता सुमित गोदारा को उतारा है। देखना है कि वे अपने ही समुदाय में ठीक-ठाक हैसियत बना चुके वीरेन्द्र बेनीवाल के साथ कौन-सा दांव आजमाएंगे! मैदान में मानिकचन्द सुराणा तो होंगे ही, लगता है जिले की चुनावी जाजम कुछ ज्यादा ही रोचक रहेगी इस बार।
6 नवम्बर, 2013


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