Monday, November 25, 2013

चुनावी अटकलें-तीन

भारतीय जनता पार्टी या कहें वसुन्धरा राजे ने बीकानेर जिले की लूणकरनसर विधानसभाई सीट को मानो प्रायोगिक सीट मान रखा है। तभी इसे पिछली बार 2008 में इनलोद को दे दी और इस बार यह जानते हुए कि आदर्श जनप्रतिनिधि माने जाने वाले पार्टी के दिग्गज एवं क्षेत्र के चप्पे-चप्पे से वाकिफ और पूरे क्षेत्र से लगातार जीवन्त सम्पर्क रखने वाले--मानिकचन्द सुराना को पार्टी प्रत्याशी नहीं बनाया। बताया जाता है कि सुराना ने संदेश के माध्यम से अवगत करा दिया था कि पार्टी टिकट दे या ना दे वे लूणकरनसर से चुनाव लड़ेंगे।
कांग्रेस ने भी प्रयोग तो किये लेकिन भूल सुधार भी की। लगातार चार बार (1957, 1962, 1967 और 1972) विधायकी कर चुके और वर्तमान विधायक वीरेन्द्र बेनीवाल के पिता भीमसेन चौधरी को 1993 में पुनः उम्मीदवारी दी और वे फिर लगातार दो बार इस क्षेत्र से विधायक रहे। अब तक हुए चौदह चुनावों में भीमसेन चौधरी छह बार चुनाव जीते हैं।
जिले की तब की चारों सीटों (नोखा, श्रीकोलायत, लूणकरनसर और बीकानेर) से 14 बार चुनाव लड़कर विधानसभा में चार बार नुमाइंदगी कर चुके सुराना हारे भले ही ज्यादा बार हों पर उन्होंने हर चुनाव जीवट से लड़ा और उनकी हार भी वोट प्रतिशत के हिसाब से सम्मानजनक मानी जाती रही है। अस्सी पार के सुराना का 2013 का यह चुनाव एक तरह से अन्तिम चुनाव इसलिए भी है कि वे मतदाता से यह कह कर वोट मांग रहे हैं कि यह मेरा अन्तिम चुनाव है।
1931 में जन्मे सुराना ने छात्र राजनीति से अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया और 25 वर्ष के होते ही लूणकरनसर नाम से बने विधानसभा क्षेत्र का पहला चुनाव लड़ा जो उपचुनाव ही था। इस चुनाव में कांग्रेसी दिग्गज रामरतन कोचर के सामने प्रजा समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के रूप में खड़े होकर साहस दिखाने वाले सुराना के साथ भाजपा ने 2008 में भी गड़बड़ की और इस बार भी की है। उम्र का बहाना यदि पार्टी बनाती है तो इसी जिले में 77 पार के गोपाल जोशी और किसनाराम नाई को पार्टी ने उम्मीदवार बनाया है। जिस गैर जाटवाद के आधार पर वोट बटोरने की मंशा से भाजपा ने किसनाराम को उम्मीदवार बनाया है, पार्टी के पास ठीक वैसा ही आधार तमाम जीवन कांग्रेस विरोध की राजनीति करने वाले सुराना के रूप में लूणकरनसर में भी था।
लूणकरनसर में कांग्रेस की प्रतिष्ठा दांव पर इसलिए है कि प्रदेश सरकार में जाटों की नुमाइंदगी करने वाले और दिग्गज जाट कांग्रेसी होने की कोशिश में लगे वीरेन्द्र बेनीवाल का यह चुनाव क्षेत्र है और भाजपा ने यहां से अब तक अपने व्यापार को ज्यादा समय देने वाले सुमित गोदारा को शायद यह सोच कर उतारा है कि इस जाट बहुल क्षेत्र में गोदारा जाट ज्यादा हैं। संकीर्णता का वलय (घेरा) इसी प्रकार छोटा होता जाता है। मुकाबला रोचक हो गया है। मोदी फैक्टर गांवों तक पहुंचा तो मुकाबला तिकोना भी हो जायेगा। मंत्री नहीं बनने तक वीरेन्द्र बेनीवाल ने भी अपने प्रतिद्वंद्वी सुराना की तर्ज पर क्षेत्र से लगातार संपर्क बनाए रखा और मंत्री बनने के बाद क्षेत्र का यथासम्भव ध्यान भी रखा। लेकिन जिसे एंटी इंकम्बैंसी कहते हैं उससे वे प्रभावित कई तरह से होंगे। वे लगातार दूसरी बार प्रतिनिधि हैं, इस बार सरकार भी उनकी पार्टी की है और केन्द्र की इन्हीं की सरकार की बदनामियां भी अपना असर दिखाएंगी।
प्रतिद्वंद्वी होने के बावजूद सुराना ऐसे नेता हैं जिनका प्रभाव जाटों में है और सम्मानजनक संख्या में उनके जाटों में वोटर भी हैं। इसके अलावा भी सुराना ऐसे नेता रहे हैं जिनके वोटों की संख्या प्रत्येक बूथ और जाति-समुदाय में सम्मानजनक रही है। उम्मीद है उनकी संख्या उनके इस तथाकथित अन्तिम चुनाव में बजाय घटने के बढ़ेगी ही। फिर दारोमदार इन छह दिनों में इस पर भी रहेगा कि भाजपा, मोदी और सुमित गोदारा हासिल करने में कितने सफल होते हैं। गोदारा वैसे जो भी हासिल करेंगे उसका नुकसान लगभग समान रूप से सुराना और बेनीवाल दोनों को होना है।

25 नवम्बर, 2013

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