Tuesday, November 19, 2013

चुनावी सभाओं-रैलियों की कम होती साख

भारतीय जनता पार्टी की घोषित मुख्यमंत्री पद की प्रत्याशी वसुन्धरा राजे कल रात से बीकानेर में थीं, चूंकि पार्टी के घोषित प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का राजस्थान दौरा है सो वह राहुल गांधी के बीकानेरी परगा में प्रवेश से पहले उड़ गईं। इस बीच वसुन्धरा यहां के पार्टी नेताओं-उपनेताओं से मिलीं, बात कार्यकर्ताओं की होती है पर कार्यकर्ता अब किस पार्टी में बचे हैं। वसुन्धरा शोक प्रकट करने नन्दू महाराज के घर भी गईं।
राहुल की सभा से ऐन पहले वसुन्धरा का यह संक्षिप्त प्रवास योजनाबद्ध था या सायास कह नहीं सकते लेकिन रहा यह फलदायक ही। जिन तैंतीस पार्टी पदाधिकारियों ने शहर के दोनों विधायकों के प्रति अपनी नाराजगी को सार्वजनिक किया था, वसुन्धरा के इस प्रवास के चलते उनमें से आधे से ज्यादा असंतुष्ट बने रहने का दुस्साहस नहीं कर पाए और भाजपा से कांग्रेस में जाने वालों की संख्या सिकुड़ कर आधे से भी कम रहने की संभावना है
राहुल की आज सभा है और नरेन्द्र मोदी की इसी पचीस को संभावित है। इस बीच कांग्रेस को अपनी बढ़त बनाने में बहुत ताण आनी है। पश्चिम के डॉ. बीडी कल्ला अपने बहनोई और भाजपा प्रत्याशी गोपाल जोशी से लगभग बराबरी के चलते उन्हें जहां बढ़त ही बनानी है वहीं गोपाल गहलोत फिलहाल अपने प्रतिद्वंद्वी से काफी पीछे हैं, अभी तो उन्हें बराबरी के लिए ही बहुत पापड़ बेलने होंगे। राहुल की आज की सभा गोपाल गहलोत के लिए कुछ जोड़ने में सफल रहेगी, कहना मुश्किल है।
पिछले चुनावी बासठ सालों में चुनाव लड़ने-लड़ाने के तरीकों में काफी बदलाव आया है। मुख्य चुनाव आयुक्त रहे टीएन शेषन द्वारा आयोग कोबलयाद दिलाए जाने के बाद पेचीदगियां उम्मीदवारों के लिए बढ़ी और मतदाताओं के लिए घट रही हैं। हालांकि नागरिकों को वोट देने के असल आधारों की समझ आने में अभी भी समय लगेगा।
लगता है अगले कुछ चुनावों में बड़ी-बड़ी आमसभाओं और रैलियों का आकर्षण तथा जरूरत कम हो जाएगी। क्योंकि इन्हें आयोजित करना और प्रभावी बनाना लगातार चुनौतीपूर्ण और खर्चीला होता जा रहा है। जिस तरह से साध्ाु-संत और प्रवचनकार बिना श्रोताओं के कैमरों के सामने बैठकर प्रवचन पिलाने लगे हैं वैसा-सा ही इन राजनेताओं के भाषणों का होना है। पिछली सदी के नवें-दसवें दशक के बाद जिस तरह चुनावी सभाओं का आकर्षण कम होता गया वैसे ही बड़ी सभाओं और रैलियों के दौर की समाप्ति में अब समय नहीं लगेगा।
पाठकों के लिए 1967 के चुनावों में शहर में प्रतिदिन होने वाली आमसभाओं की रोचक जानकारी साझा करते हैं। बीकानेर सीट से कांग्रेस के गोकुलप्रसाद पुरोहित प्रत्याशी थे तो उनके विरोध में तब तक के शहर में सर्वाधिक लोकप्रिय और विधायक मुरलीधर व्यास प्रजा समाजवादी पार्टी से थे। शहर के विभिन्न चौकों में घंटों सभाएं चलतीं, ना केवल चलती बल्कि एक सभा में उठाए गए सवालों का जवाब दस-पन्द्रह मिनट में ही ना केवल दे दिया जाता बल्कि प्रतिप्रश् भी कर दिए जाते। पाठक अन्दाज लगाएं तब ना मोबाइल फोन थे और ना बहुतायत में लैंडलाइन। एक मोहल्ले या चौक में कोई एक फोन होता तो होता, पीसीओ का चलन तो आया ही नहीं था। स्कूटर-मोटरसाइकिलें लग्जरी में आती थीं तब। एक से दूसरे चौक में सूचनाएं पहुंचाने का काम साइकिल पर होता था। सवार होते थे पार्टियों के कर्मठ, तत्पर और समझदार कार्यकर्ता। समझदार होना इसलिए जरूरी था कि यदि वक्ता की बात ढंग से समझोगे ही नहीं तो पहुंचाओगे क्या? कार्यकर्ता तत्काल अपनी पार्टी की सभा में पहुंचता, पर्ची पर बात लिखता और थमा देता वक्ता के हाथ में। अंदाजा लगाएं यह सब कितना रोमांचक होता था। नेताओं और उपनेताओं के इस युग में मोबाइल होते हुए भी ऐसी हाजिर जवाबी अब कहां?

19 नवम्बर, 2013

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