‘बीकानेर में कांग्रेस के लिए अनुकूलता बनती दिखने लगी है’ यह वाक्य 23 अक्टूबर के ‘विनायक’ सम्पादकीय का पहला वाक्य था। हटा दिए गये शहर भाजपा अध्यक्ष शशि शर्मा और उनके गुट के भाजपाइयों में 22 अक्टूबर को उधड़ी पित्ती उन्हीं के द्वारा उघाड़ी गई थी। लोक में प्रचलित कठपुतली के खेल से इसे समझें तो इन सबकी डोरियां शहर के एक अन्य पूर्व भाजपा अध्यक्ष गोपाल गहलोत के हाथ में थी। कठपुतली को नचाने वाले के लिए यह भी जरूरी होता है कि उसके पांव जमीन पर मजबूती से टिके हों अन्यथा खुद उसके डगमगाने की पूरी आशंका होती है। पता नहीं गोपाल गहलोत के पांव कितनी मजबूती से टिके हैं?
हालांकि, प्रदेश भाजपा ने अभी तक कार्यकारिणी
भंग करने की ही सूचना दी है। अनुशासनात्मक
जैसी कार्यवाही की सूचना अभी तक नहीं आई है। हो सकता है इस चुनावी चकारिए के समय पार्टी इससे बचे भी।
चुनावों के परिणाम क्या होंगे नहीं कह सकते लेकिन हाल फिलहाल दोनों शहरी विधायकों ने सुकून जरूर महसूस किया होगा। पार्टी टिकट किसे मिल रही थी और किसकी कट रही थी? एक बार बिखरी यह चौसर फिर से बिछेगी तभी कुछ कयास लगाए जा सकेंगे, पर लगता यही है कि गोपाल जोशी के हाथ से निकलती टिकट इस घटना से ठिठक गई है। शहर की पश्चिम सीट से टिकट के भाजपाई दावेदारों में जीत की आश्वस्ति गोपाल जोशी ही देते लगते हैं।
गोपाल गहलोत अपने इन अनुगामियों के साथ पार्टी उम्मीदवारों
की कारसेवा कितनी कर पाएंगे यह समय बताएगा पर प्रति सीट दो-पांच हजार की कारसेवा में इस बार पासे बदल सकते हैं। जैसा ‘विनायक’ ने पहले भी लिखा है कि चुनावी मैदान से बाहर सिद्धी कुमारी अपनी इच्छा से ही होंगी अन्यथा बीकानेर (पूर्व) से भाजपा प्रत्याशी होना उनका निश्चित है। बीकानेर (पूर्व) से कांग्रेस तय प्रत्याशी निर्धारण प्रक्रिया से बाहर कुछ करती है तो भतीजी के सामने बूआ राज्यश्री कुमारी होंगी। अन्यथा सिद्धी को कांग्रेस से चुनौती यशपाल गहलोत ही देते लगते हैं। यशपाल के लिए दोहरी चुनौती में दूसरी यह है कि यदि वे तनवीर मालावत वाली गत को प्राप्त हुए तो इस सीट से अल्पसंख्यकों
की तरह अन्य पिछड़ों का दावा भी खत्म हो जायेगा।
बीकानेर (पश्चिम) की बात करें तो हाल ही की इस घटना से जहां गोपाल जोशी का दावा मजबूत होता दीख रहा है वहीं उनकी जीत की उम्मीदें डगमगाती लगती हैं। यह पूरा घटनाक्रम कम से कम इन दोनों सीटों पर भाजपा की स्थिति कमजोर ही करेगा। देखना यह है कि पार्टी शहर संगठन की कमान किसे सौंपती है और वे कितनी क्षतिपूर्ति (डैमेज कंट्रोल) कर सकेंगे। खबरें यह भी हैं कि सांसद अर्जुनराम मेघवाल जहां अपने लिए विधायकी की गुंजाइश बनाने में लगे हैं वहीं वे गोपाल जोशी को टिकट की दौड़ से बाहर करने की जुगत में भी हैं। अपनी रोटी के नीचे खीरे देने में लगे मेघवाल दूसरों की रोटी के नीचे से खीरे कितने खींच पाएंगे कहना मुश्किल है। गोपाल गहलोत से बट काढ़ने में देवीसिंह भाटी भी नहीं चूक रहे हैं, राजनीति कर रहे हैं तो चूकना नादानी कहलाती है।
‘माया मिली ना राम’ वाली स्थिति में गोपाल गहलोत आ जाते हैं तो वे अपनी लम्बी राजनीतिक कमाई को खो देंगे। इसके लिए जिम्मेदार वे चाहे पार्टी को ठहराते रहे हैं लेकिन खुद की गैर-जिम्मेदारियां
भी कम जिम्मेदार नहीं मानी जाएगी। हाल की घटनाओं से हुई क्षति की पूर्ति वे कर भी पाएंगे इसमें सन्देह है। शहर की दोनों सीटों के कयास एकबारगी तो धुंधला गये हैं, बिसात फिर सजेगी तो हम जैसे रसोई करने की स्थिति में फिर आ खड़े होंगे।
26 अक्टूबर, 2013
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