Wednesday, October 23, 2013

हिचकोले खाती शहर भाजपा

बीकानेर में कांग्रेस के लिए अनुकूलता बनती दिखने लगी है। शहर भारतीय जनता पार्टी का असंतोष कल तब मुखर हो गया जब शहर जिला भाजपा के अधिकृत लैटरहैड पर कल इस असन्तोष प्रेस के लिए जारी कर दिया गया। इस पत्र पर शहर अध्यक्ष शशिकान्त शर्मा अन्य शीर्ष पदाधिकारियों यथा मांगीलाल डूडी, गोविन्दसिंह, अशोक तिवाड़ी, राजेन्द्र पंवार, बाबूलाल गहलोत, ओम राजपुरोहित और युवा मोर्चा अध्यक्ष भूपेन्द्र शर्मा सहित विभिन्न संगठनों के तैंतीस पदाधिकारियों के हस्ताक्षर हैं। इस पत्र के साथ ही भाजपा प्रदेश कार्यसमिति के सदस्य; दलित, पिछड़ा और अल्पसंख्यक महासभा के अध्यक्ष और अन्य पिछड़ा वर्ग विकास मंच के सुप्रीमो गोपाल गहलोत की असल मंशा अधिकृत तौर पर जाहिर हो गई है। देखने वाली बात यह होगी कि वे अपने इस असन्तोष को सहेज कर कितना रख पाते हैं। इस पत्र के माध्यम से शहर भाजपा अध्यक्ष शशि शर्मा ने भी अपने पर लगे गोपाल गहलोत के ठप्पे की भी पुष्टि कर दी है। हालांकि शशि शर्मा इस प्रेसनोट पर मीडिया द्वारा मांगी प्रतिक्रिया पर संभल कर बोला है, पर उनके कहे के मानी समझे जा सकते हैं।
गोपाल गहलोत की यह कवायद पिछले एक-डेढ़ साल से जारी थी। सतत दृढ़ता के अभाव में उनकी यह कवायद लगातार हिचकोले भी खाती रही है। अपनी ताकत पर पूरा भरोसा ना होना भी इसकी एक वजह हो सकती है अन्यथा जिस नेता के लिए एक इकाई के तैतीस पदाधिकारीऑन पेपरमुखर हो सकते हैं, उसे हिचकिचाहट की जरूरत नहीं थी। गहलोत को अपनी नेता वसुन्धरा से कुछ सीखना चाहिए जो प्रदेश संगठन और संघ की तमाम शिकायतों के बावजूद छाती पर बैठी है। गोपाल गहलोत चाहते तो इन पचीस वर्षों में अपने को और अपनों को परोटते हुए वसुन्धरा जैसा आत्मविश्वास हासिल कर सकते थे।
प्रेस को जारी यह पत्र यदि सचमुच अधिकृत है और हस्ताक्षर करने वालों में से कोई भी इससे नहीं मुकरता तो पार्टी को समझदारी दिखाते हुए ठिठकना होगा। वर्तमान दोनों विधायकों से उनकी शिकायतों में तंत देखा जा सकता है। पश्चिम की विधायक सिद्धीकुमारी ने अपनी विधायकी को विरासती सौगात से ज्यादा नहीं माना है, लगातार अपनीरियायासे वह कटी रहीं, सिद्धी को लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीति करनी है तो उन्हें अपने मिजाज और करतूतों में उसी हिसाब से परिवर्तन लाना चाहिए। उनका ऐसा ना करना तो राजनीतिक अपरिपक्वता की गिनती में सकता है लेकिन मंझे-मंझाए गोपाल जोशी ऐसा नहीं कर पाए तो इसके मानी यही निकाले जा सकते हैं कि चुनाव जीतने पर उन्होंने यही मान कर सन्तोष कर लिया होगा किसालोंको पटखनी देने की उनकी बरसों पुरानी मुराद पूरी हो गई और ऐसा मान लिया होगा कि उनका तो यह अन्तिम चुनाव है और अपने चुनाव के एक साल बाद ही हुए महापौर के चुनाव में विधानसभा की दोनों शहरी सीटों पर भाजपा के चालीस हजार से ज्यादा वोटरों की मंशा पलट जाने पर उनकी कोई जवाबदेही नहीं बनेगी। महापौर के भाजपा उम्मीदवार रहे गोपाल गहलोत की इस आशंका में दम नजर रहा है कि इन दोनों विधायकों ने उनके खिलाफ काम किया था।
पार्टी के इस मुखर विरोध के बाद अंगद का पांव बनी सिद्धीकुमारी की पार्टी टिकट में जहां कंपकंपी सकती है वहीं पिछले कुछ दिनों से लगभग तय मानी जाने वाली गोपाल जोशी की टिकट तो खिसक भी सकती है। गोपाल गहलोत के इस ददिए में दम हुआ और पार्टी दबाव में आती है तो इन दोनों सीटों पर सभी के कयास धरे रह सकते हैं।
गहलोत की इस कवायद से बीकानेर (पश्चिम) में अपने को दौड़ में मान रहे और वसुन्धरा का भरोसा बने ओपी हर्ष की बांछे तो खिलेंगी पर भाजपा यदि हर्ष पर भरोसा करती है तो वह यह सीट बड़ी आसानी से कल्ला को सौंप देगी। हर्ष से तो बेहतर अविनाश जोशी और विजय आचार्य साबित हो सकते हैं। इन दोनों युवाओं के पास अपनी-अपनी राजनीतिक विरासत है और सुना है अविनाश के लिए तो नन्दू महाराज भी यह कह कर पैरवी कर रहे हैं कि वे अपनी इस अस्वस्थता में भी अविनाश की जीत के लिए प्रयास करेंगे।
बीकानेर (पूर्व) में भी पार्टी दबाव में जाए या सिद्धी अपनी जीत के प्रति आश्वस्त ना होकर बिदक जाए तो दशरथसिंह के चलते गोपाल गहलोत का प्रत्याशी बनना असंभव नहीं है क्योंकि वसुन्धरा को तो जैसे-तैसे सौ काफिचरचाहिए, जैसे भी हासिल हो। ऐसा होता है तो जिले के परिणाम पिछले विधानसभा चुनाव जैसे ही रह सकते हैं।

23 अक्टूबर, 2013

No comments: