Tuesday, October 22, 2013

चुनाव पूर्व के सर्वे और राजस्थान

सर्वे के अनुकूल-प्रतिकूल दोनों तरह के परिणामों से आशंकित-उत्साहित प्रदेश की दोनों मुख्य पार्टियां जहां सीटवार विश्लेषण में लगी हैं वहीं डॉ. किरोड़ी मीणा की संभावित चौधराहट के चलते तीसरे मोर्चे की कवायद ठिठकी हुई है। मतदान पूर्व के इन सर्वे को प्रामाणिक किस आधार पर माना जाता है क्योंकि नामांकन वापसी के बाद ही इस धुंधलके में कुछ दिखना संभव होता है। शायद यहां भी संभावना सिद्धांत ही काम करता है, और आधी-पड़दी बात सही निकल ही आती है।
सौ के आंकड़े को पार करने की मशक्कत जहां भाजपा को करनी है वहीं कांग्रेस को ना केवल अपने वर्तमान आंकड़े को बनाए रखना है बल्कि सौ से पार जाना उसकी जद्दोजेहद का मुख्य निशाना है। प्रदेश भाजपा की बात करें तो ऊपरा-ऊपरी यही लगता है कि वसुन्धरा को इस अभियान में जितनी अनुकूलता मिल रही है उतनी 2003 और 2008 के पिछले दोनों चुनावों में नहीं थी। यदि ऐसा सचमुच है तो पार्टी, संघ और भाजपा की केन्द्रीय कमान की उनसे उम्मीदें भी ज्यादा होंगी। फिलहाल दोनों ही पार्टियां बर्र के छत्ते के इर्द-गिर्द ही चक्कर लगा रही हैं। जैसे ही इसमें हाथ डाला यानी टिकटों का बंटवारा शुरू हुआ वैसे ही डंक मारने को आतुर असंतुष्ट अपनी-अपनी हैसियत अनुसार सक्रिय हो लेंगे। इस मामले में अशोक गहलोत के लिए इस बार अनुकूलताएं ज्यादा इसलिए है चूंकि उनके पास इस बार राहुल नाम का हाऊड़ा भी है जिसे दिखाकर असन्तुष्टों पर लगाम लगाई जा सकती है। उम्मीदवारों के चयन में राहुल ने जो प्रक्रिया तय की उसे अमल में ला रहे हैं। उसकी आड़ में गहलोत बहुत कुछ साध लेंगे ऐसा लगता है। ऐसी अनुकूलता भाजपा की प्रदेश सुप्रीमो वसुन्धरा राजे के साथ नहीं है। उन्हें अपनी ही चतुराई और विवेक से बर्र के छत्ते में हाथ डालना है असंतुष्टों के डंकों का मुकाबला भी करना है और उन्हें बर्दाश्त भी। वसुन्धरा के पास फिलहाल कोई हाऊड़ा नहीं और ना ही 2008 के पिछले चुनाव की तरह खुद उनमें हाऊड़े की कोई अदा दिखाई दे रही है यानी वे इस बार का चुनाव ज्यादा सावधानी से लड़ती दीखती हैं। यानीयूपी-बिहार लूटनेकी तर्ज पर राजस्थान लूटने की भाव-भंगिमाएं इस बार की सुराज-संकल्प यात्राओं में नहीं देखी गईं और इस सुराज संकल्प यात्रा के लिए जनता में उम्मीद से कम उत्साह के बाद तो वसुन्धरा कानखरालगभग भांगा हुआ ही लग रहा है। इसी चानणे में वसुन्धरा द्वारा पार्टी में समकक्षों की मिजाजपुर्सी को देखा जा सकता है।
चुनाव पूर्व सर्वे पर प्रश्नचिह्न विनायक ने ऐसे ही आधारों पर लगाया है। अभी तो बिसात खुलनी शुरू हुई है। वह बिछेगी, गोटियां रखी जाएंगी और चालें शुरू होंगी। तब कुछ कहें तो बात गले उतारने की कोशिश की जा सकेगी। तब तक क्या-क्या हो लेगा कोई नहीं कह सकता। यदि ऐसा नहीं होता तो गहलोत और वसुन्धरा के साथ-साथ सैकड़ों संभावित उम्मीदवारों और उनके हजारों शुभचिन्तकों के रैले जयपुर-दिल्ली के बीच चक्कर यूं ही नहीं लगाते।

22 अक्टूबर, 2013

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