Monday, September 9, 2013

सुर्खियों में सिद्धीकुमारी

लम्बे अर्से बाद बीकानेर (पूर्व) की विधायक सिद्धीकुमारी सुर्खियों में हैं, क्षेत्र से लम्बे समय तक उनकी नदारदगी से ऐसे कयास लगाए जाने लगे थे कि शायद अगला चुनाव सिद्धीकुमारी ना लड़ें। यह कयास मात्र ही था क्योंकि सिद्धी इस आत्म विश्वास में तो हैं ही कि कांग्रेस यदि चौंकाई-उम्मीदवार को मैदान में ना उतार पायी तो जीत भी लगभग पक्कम-पक्का है। सिद्धी के लिए फिलहाल कई प्रकार की अनुकूलता बनी हुई है। वोटरों में अब तक कायम खम्मा-घणी संस्कृति के साथ-साथ केन्द्र में कांग्रेस नेतृत्व की संप्रग सरकार की लगातार गिरती साख भी सिद्धी के लिए लाभकारी है। सूबे की गहलोत सरकार इसकी भरपाई करने की कितनी भी कोशिश कर ले पर बीकानेर पूर्व से जो कांग्रेसी दावेदारियां आयी हैं उनमें एक भी ऐसा नहीं है जो फिलहाल के चुनाव में सिद्धी कुमारी को टक्कर दे सके। सेंतीस हजार पार से हारे डॉ. तनवीर मालावत ने दावेदारी जरूर जताई है, ना जताए तो सक्रिय राजनीति से बाहर मान लिए जा सकते थे, पर बीकानेर पूर्व से चुनाव लड़ना वे शायद ना चाहें, उनकी इस दिखावटी दावेदारी के चलते कहीं यह ना हो कि आलाकमान एंटनी कमेटी की सिफारिशों को दरकिनार कर वापस उन्हें ही चुनाव में झोंक दें।
बीकानेर (पूर्व) के मतदाताओं को अपनी विधायक से पिछले चार साल का तलपट मांग लेना चाहिए कि विधानसभा की कितनी बैठकों में उपस्थित रहीं और क्षेत्र के किन-किन मुद्दों पर सक्रीयता दिखाई। उनकी निष्क्रियता का ताजा उदाहरण तो यही है कि बीकानेर के तकनीकी विश्वविद्यालय के विधेयक पर एतराज सदन में उन्हीं के दल के नेता ने जताया और सरकार को बहाना मिल गया। सिद्धीकुमारी अब इस मुद्दे पर सरकार पर बीकानेर के साथ सौतेला व्यवहार करने का आरोप लगा रही हैं। वह भूल रही हैं कि पिछले चार साल में अपने क्षेत्र के साथ उन्होंने किस तरह का व्यवहार किया है। जनता ने उन्हें चुना तो अपने हितों की रक्षा के लिए था।
9 सितम्बर, 2013


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