Saturday, September 7, 2013

रजनी राजपूत के बहाने सन्दीप आचार्य और राजा हसन की बात

खबरों सहित सभी तरह के टीवी शो और बाजार एक-दूसरे के सिद्ध और साधक की भूमिका में लगभग पाये जाने लगे हैं पर विडम्बना यह है कि अपने असल में ये नहीं देखे जाते। जिन कार्यक्रमों को जितने ज्यादा दर्शक मुग्ध होकर देखते हैं उसकी टी आर पी (टारगेट रेटिंग पॉइण्ट) उतनी ही ज्यादा मानी जाती है। इन कार्यक्रमों के विज्ञापनों की दरें और बारम्बारता तय होने का एक बड़ा आधार यह टीआरपी ही मानी जाती है।
आज इन टीवी कार्यक्रमों पर बात करने की इसलिए सूझी की अमिताभ बच्चन द्वारा होस्ट किए जाने वाले केबीसी-7 के पहले एपिसोड के दस प्रतियोगियों में एक बीकानेर की रजनी राजपूत भी हैं। उसे इस मुकाम पर देख कर सामान्य बीकानेरी मन हुलसित हुआ जो स्वाभाविक प्रतिक्रिया थी। खबरों से मालूम हुआ कि आज और कल उसे हॉट सीट पर भी बैठे देख सकेंगे। रजनी साढ़े बारह लाख रुपये जीत कर लौटी है। रजनी जिस परिवार से है उसके हिसाब से साढ़े बारह लाख की राशि कम नहीं मानी जा सकती। रजनी का मामला ज्यादा उल्लेखनीय इसलिए है कि बहुत सामान्य परिवार और कम सुविधाओं में पली-बढ़ी लड़की ने ना केवल अपनी इच्छा-शक्ति को बनाये रखा, बल्कि सीमित साधनों के बावजूद उस केबीसी की हॉट सीट पर पहुंची जिस तक पहुंचने की प्रक्रिया आसान नहीं है। अलावा इसके रजनी के माता-पिता और परिजनों को भी दाद देनी होगी कि उन्होंने उसको हतोत्साह नहीं किया।
इससे पूर्व भी बीकानेर के संदीप आचार्यइण्डियन आयडल-दोके विजेता तथा राजा हसनसा रे गा मा पा चैलेन्ज-2007’ के उपविजेता रहे हैं। इस तरह के आयोजनों की कई तरह से आलोचना होती रही है, जिनमें अधिकांश को जायज कहा जा सकता है। बावजूद इसके केबीसी जैसे कार्यक्रमों को इण्डियन आयडल और सा रे गा मा पा जैसे कार्यक्रमों से बेहतर कहा जाता है। वो इसलिए कि व्यावसायिक दबाव की कुछ कमियों के बावजूद केबीसी में कुछ नियमों और मूल्यों का ख्याल रखा ही जाता है जबकि इण्डियन आयडल और सारगामा जैसे कार्यक्रमों में सृजनात्मकता के आधारभूत मानदण्डों को ताक पर रख कर निर्णय होते रहे हैं। बीकानेर के संवेदनशील-वासियों ने उक्त दोनों कार्यक्रमों में इसे बहुत तकलीफ के साथ अनुभूत किया था। इण्डियन आयडल-दो के वे श्रोता जो स्थानीयता से कम मुग्ध थे और जिन्हें आज भी यह कहते सुना जा सकता है कि इस कार्यक्रम के दूसरे नम्बर पर रहे एनसी कारुण्य और चौथे नम्बर के अमय दाते  सन्दीप आचार्य से ज्यादा प्रतिभाशाली थे। चूंकि फैसला एसएमएस से होना था और बीकानेर के लोगों में स्थानीयता का जुनून पैदा कर और कार्यक्रम की आधारभूत खामियों का लाभ उठा कर अपने स्नेही को विजेता घोषित करवा दिया। गायकी में राजा हसन सन्दीप आचार्य से ज्यादा प्रतिभाशाली लगते हैं और उनकी आवाज में सन्दीप से ज्यादा विविधता है लेकिन उन्हें इस शहर का वह प्यार नहीं मिला जिसकी पात्रता वह सन्दीप आचार्य से ज्यादा रखते थे।
इस तरह की घड़ी हुई सफलताओं को ना सम्हाल पाने वाले विजेताओं में एक समय बाद कुण्ठित हो जाने की आशंकाएं अधिक रहती है, क्योंकि बाजार के हावी होने के बावजूद कला क्षेत्रों के रसिकों के अपने-अपने मानक काम करते हैं। ऐसे मानकों का छिद्रान्वेषण तो मुश्किल है पर परिणाम समय बता देता है। टीवी कार्यक्रमों का मकसद मूल्य और मानक नहीं रह कर सिर्फ और सिर्फ लाभ होता है, लाभ भी लालच की हद तक का। लालच सकारात्मक नहीं होता है इसलिए उसके उत्पाद और उपउत्पाद भी अन्ततः नकारात्मक परिणाम ही देते हैं।

7 सितम्बर, 2013

No comments: