संभाग के बड़े अस्पताल पीबीएम आए दिन नकारात्मक सुर्खियों में रहने लगी है। अस्पताल बड़ा है तो वहां कई तरह के गिरोह भी काम करने लगे हैं। पन्द्रह बीस साल पहले कुछ ऐसे डॉक्टरों-जिनकी निजी प्रेक्टिस अच्छी नहीं चलती थी, उन्होंने कुछेक को कमीशन पर रखा जो मरीजों को लपक कर उन तक पहुंचाते थे। ऐसे डॉक्टरों और उनके लपकों की चर्चा तब अकसर होती थी। उसके बाद यहां का माहौल और भी गर्त में जाता रहा है। कल की ही खबर है कि जीवन रक्षक मशीनों को किराए पर चढ़ाने वालों का गिरोह भी सक्रिय हो गया है। पहले कभी-कदास ऑक्सीजन सिलेण्डर की ही इस तरह की जरूरत होती थी। अब तो सारा सिस्टम अब गिरोह के रूप में काम करने लगा है। डॉक्टर-नर्सेज की मिली भगत से अस्पताल में उपकरण होते हुए भी मरीजों को किराये पर उठाने को मजबूर करना ना नैतिक है और ना ही मानवीय। यह लालच इन उपकरणों का उचित रख-रखाव भी नहीं करने देता। अस्पताल के उपकरण दुरुस्त मिलेंगे तो किराए पर कौन उठाएगा।
अस्पताल के विभिन्न तरह के कर्मियों द्वारा अपनी जिम्मेदारी से कोताही बरतने का प्रमाण था कि गड़बड़ इंजेक्शन लगा देने से बारह मरीजों की जान सांसत में आ गई, पीबीएम से सम्बन्धित यह खबर भी कल की है। जिला कलक्टर संवेदनशील हैं और इस पीबीएम अस्पताल पर हमेशा आंख-कान टिकाए रखती हैं। बावजूद इसके इस अस्पताल में बदमजगियां रुकने का नाम नहीं ले रही। अस्पताल प्रबन्धन के लिए प्रशासनिक अधिकारियों को लगाने का चिकित्सा सेवा के संगठन विरोध करते रहे हैं, तार्किक तौर पर उनकी बात वाजिब भी है। लेकिन बार-बार होने वाली इस तरह की बदमजगियां, एक तरह से स्थाई प्रशासनिक हस्तक्षेप को निमन्त्रण देना ही है। चिकित्सा सेवा की अक्षमताएं आखिर अवश्यंभावी हस्तक्षेप को कब तक रोके रख सकेंगी। कल की घटनाओं के बाद जिला कलक्टर द्वारा एक प्रशिक्षु आईएएस को अस्पताल से सम्बन्धित विशेष जिम्मेदारी देना किस बात के संकेत हैं। धारणा बनते देर नहीं लगेगी कि इन अस्पतालों का प्रशासन डॉक्टरों के बस का नहीं है, तब इस प्रशासनिक अमले को पग पसारने से रोकना सम्भव नहीं होगा। रोज-रोज की किच-किच से परेशान होकर शासन अस्पतालों के प्रशासन को इन भारतीय और राज्य प्रशासनिक अधिकारियों को सौंपने में देर नहीं लगाएगा।
No comments:
Post a Comment