Monday, September 23, 2013

जुझार अशोक गहलोत

दो महीने बाद प्रदेश के और चार महीने बाद देश के आम चुनाव होने हैं। सरकारें दोनों जगह कांग्रेस की है। सूबे में मुखिया गहलोत लगभग जुझार की मुद्रा में हैं, कई-मोर्चों पर उन्हें एक साथ मुस्तैद रहना पड़ रहा है। एंटी इनकम्बेंसी, जिसे शासन से नाराजगी भी कह सकते हैं, की भरपाई के लिए गहलोत विभिन्न लोक कल्याणकारी योजनाओं के साथ मुस्तैद हुवे ही थे कि प्रमुख विरोधी भाजपा ने वसुन्धरा को राजस्थान की सीएम इन वेटिंग घोषित कर दिया। वही वसुन्धरा जिन्होंने पिछले चार वर्षों में राजस्थान के लिए यह धारकर समय नहीं निकाला कि सूबेदारी ना मिले तो क्यों समय बरबाद किया जाय।
राजनाथ को पार्टी की बागडोर मिली, उन्होंने यह धार-विचार कर ही इसे हासिल किया कि येन-केन प्रकारेण परचम फहराना है। फिर तो तो राजनाथ ने अपने पिछले अध्यक्षीय कार्यकाल के वसुन्धरा के दुर्व्यवहार को आड़े आने दिया और ना ही नरेन्द्र मोदी की उपेक्षा को। अपने पहले दोनों दाव राजनाथ ने इन्हीं पर लगाए।
सीएम इन वेटिंग की घोषणा होते ही वसुन्धरा ने 2003 की परिवर्तन यात्रा की तर्ज परसुराज संकल्प यात्राशुरू कर दी, एक बारगी तो लगा भी कि वसुन्धरा परिवर्तन यात्रा की तर्ज पर फिर प्रदेश पर छा जायेंगी  पर यात्रा का नाम उलटा पड़ गया, सुराज संकल्प। गहलोत के इस कार्यकाल का शासन ना केवल वसुन्धरा के शासन काल से बेहतर था बल्कि खुद गहलोत के पिछले कार्यकाल से भी बहुत अच्छा रहा है। बावजूद इसके गहलोत ने सावचेती और तत्परता बरती और कोई जोखिम ना उठाते हुए मुकाबले मेंकांग्रेस सन्देश यात्राशुरू कर दी। यात्रा के नाम का काळ कांग्रेस में भी देखा गया। यात्रा के इस नाम में दम ना होते हुए भी कांग्रेस की यात्रा भाजपा से इक्कीस रही और जल्द ही वसुन्धरा को अहसास हो गया कि 2003 वाली बात नहीं है। वसुन्धरा का यह अहसास उनके हाव-भाव में भी दिखने लगा। जुझार गहलोत के आगे वसुन्धरा सुस्त दिखने लगीं।
इधर गहलोत बढ़त बनाते दिखे तो उधर उनकी केन्द्र सरकार कई-कई कारणों से साख खोने लगी। घोटालों की खबरों के साथ-साथ डॉलर के मुकाबले रुपयों की गिरावट और अन्य तमाम संकटों पर प्रधानमंत्री की चुप्पी गहलोत की बढ़त में स्पीड ब्रेकर के से धचके देती लगी। इन तमाम परिस्थितियों में भी गहलोत ने उद्घाटनों, शिलान्यासों और लोकार्पणों की झड़ी लगी दी। एक शातिर राजनीतिज्ञ की तरह गुलाम पर बैगम, बैगम पर बादशाह और बादशाह पर इक्का और इक्के पर चुनाव आचार संहिता से एन पहले रिफाइनरी, मेमू कोच फेक्ट्री और जयपुरियों को मेट्रो रेल देकर पपलू भी दे मारा।
विधान सभा में कमजोर बहुमत और मंत्रिमंडलीय टीम में कमजोर साथियों के बावजूद गहलोत ने कर दिखाया कि वे जुझार से कम नहीं हैं। बाबूलाल नागर, महिपाल मदेरणा, मलखानसिंह और रामलाल जाट के दिए झटकों से भी गहलोत को विचलित नहीं देखा गया और कामकाज के मामले में पिछले पैंसठ वर्षों में देश में किसी भी मुख्यमंत्री से गहलोत के कार्यकाल को उन्नीस नहीं ठहराया जा सकता। बावजूद इन सबके माहौल यह नहीं स्पष्ट करता कि गहलोत फिर बहुमत ले आएंगे।
यदि ऐसा होता है तो यह स्पष्ट हो जायेगा कि अकेला सेनापति कुछ नहीं कर सकता। अधिकांश मंत्रियों, विधायकों और स्थानीय निकायों के अधिकांश कांग्रेसी अध्यक्षों, महापौरों, सरपंचों, जिला प्रमुखों के काम से जनता नाखुश है। गहलोत सफल नहीं होते हैं तो दोष उनका नहीं उनकी टीम का होगा। तब यह सवाल भी बनता है कि टीम बनाई किसने। गेंद फिर गहलोत के पाळे में। लेकिन राजनीति में अनैतिक, भ्रष्ट और निकम्मे ही रहे हैं तो चुनना उन्हीं में से पड़ेगा। इसीलिए मोहनदास कर्मचन्द गांधी कह गये कि साधन शुद्ध ना हो तो साध्य शुद्ध हो ही नहीं सकता। पैंसठ वर्षों में राजनीति के जिस चरित्र का निर्माण हुआ है उसमें बारी पूरी होने पर भीखे को उतरना भी  पड़ सकता है। चाहे भीखा कितना ही अच्छा सवार क्यों ना है।

23 सितम्बर, 2013

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