Tuesday, September 10, 2013

निजी यात्रा पर गहलोत और शहर के उलाहने

हरिणों को लेकर लोक में दो कैबते प्रचलित हैं। कस्तूरी मृग के बारे में और दूसरी मृगतृष्णा के सन्दर्भ से। बीकानेर शहर के सन्दर्भ में बात करें तो मृगतृष्णा का उल्लेख किया जा सकता है। विकास के शहरी ढांचे में जन सुविधाओं के विकास में शहर की स्थिति उस मृग जैसी ही है जिसे दृष्टिभ्रम होता है कि दूर जमीन पर पानी पड़ा है, वह पहुंचता है तो भ्रम उसे और आगे बुलाने लगता है। इस तरह प्यास से बेहाल हरिण हांफने  लगता है। जरूरतों से सम्बन्धित शहरी तृष्णाएं भी इसी तरह हांफणी से जुगलीबन्दी करते दीखने लगी हैं।
केन्द्रीय विश्वविद्यालय की भरपाई में तकनीकी विश्वविद्यालय की घोषणा राज्य सरकार ने की। इस सम्बन्ध का विधेयक विधानसभा में अन्तिम दिन रखा गया, उसका जो हाश्र हुआ सबके सामने है। शहर में तब से ही इसे लेकर रोष है और इंजीनियरिंग के छात्र और इससे सम्बन्धित आजीविका में लगे लोग आन्दोलनरत हैं। उम्मीद की कोई सूरत नहीं दीख रही है। शहर में आम धारणा है कि राज शहर के साथ हमेशा ही सौतेला व्यवहार करता है। जबकि इसे हवा देने में शहर से चुने नुमाइन्दे भी कम जिम्मेदार नहीं हैं अन्यथा विधेयक रखे जाने वाले दिन दोनों विधायकचूनमें नहीं रहते तो शायद यह नौबत नहीं आती।
सूबे के मुखिया अशोक गहलोत डेढ़-दो घंटे की लगभग निजी यात्रा पर शहर में आए। निजी इसलिए कि इस यात्रा के दौरान उनका कोई सार्वजनिक कार्यक्रम नहीं बताया गया है। तकनीकी विश्वविद्यालय को लेकर गहलोत ने अभी तक कोई सफाई नहीं दी है, हो सकता है यह बात उनके ध्यान में नहीं लाई गई हो और हो यह भी सकता है कि उन्होंने जरूरत ही नहीं समझी।
विनायक ने गहलोत की प्रत्येक बीकानेर यात्रा पर सम्पादकीयों के माध्यम से बीकानेरी मिजाज और उनके बारे में शहर की सोच से अवगत करवाया और आगाह भी किया कि लोकतंत्र में न्याय होने के साथ-साथ न्याय होते दीखना भी जरूरी होता है, पर लगता है, न्याय दीखना तो दूर शहर के साथ न्याय हो भी नहीं रहा।
अखबारों में शाया सरकारी विज्ञापनों और मुख्यमंत्री के भाषणों पर गौर करें तो प्रतीत होता है कि मुख्यमंत्री की प्राथमिकता में प्रदेश के दो ही शहर हैं। एक जोधपुर जो खुद उनका शहर है और दूसरा जयपुर जिसे उन्होंने लगभग गोद ले लिया है, क्योंकि उनका सार्वजनिक जीवन का अधिकांश समय जयपुर में ही बीतता है। प्रदेश की राजधानी तो है ही।
मुख्यमंत्री ने इस कार्यकाल के अन्तिम और चुनावी बजट में अपने को जिन सान्ताक्लॉज की भूमिका में दिखाने की कोशिश की, उसमें झांकती दुभान्त अब चौड़े भी आने लगी है। वे सावचेती रखते और तकनीकी विश्वविद्यालय का विधेयक पारित करवा देते तो दुभांत ढकी रह जाती।
पांच सितम्बर के सजावटी सरकारी विज्ञापनों में जोधपुर के प्रति सर्वाधिक मोह झांकता है। निफ्ट, एम्स और आईआईटी जोधपुर में, आईआईएम उदयपुर में और केन्द्रीय विश्वविद्यालय अजमेर में, यह सब क्या दर्शाता है। माना कि आप एक अच्छे जनप्रतिनिधि की भूमिका में खरे हैं, बीकानेर को इसकी ईर्ष्या इसलिए भी है कि उसे इन छयासठ वर्षों में ऐसा जनप्रतिनिधि एक भी नहीं मिला। लेकिन अशोकजी यह क्यों भूलते हैं कि आप प्रदेश के मुख्यमंत्री भी हैं, लोकतन्त्र में मुख्यमंत्री से यह उम्मीद नहीं की जाती कि पंगत को पुरसते समय भतीजों को देख करभुआकी भूमिका में जाए।

10 सितम्बर, 2013

1 comment:

maitreyee said...

अति उत्तम