पढ़ाई की तीसरी-चौथी कक्षा के समय ‘कलम बड़ी तलवार’ विषय पर स्कूल में आयोजित वाद-विवाद प्रतियोगिता में ‘कलम’ के पक्षकार होकर हिस्सा लिया था। इन पैंतालिसेक वर्षों बाद अब यह तो याद नहीं रहता कि तब ‘कलम’ के पक्ष में उस बालमन ने बड़ों के बताए किन तर्कों को काम में लिया। लेकिन इन इतने वर्षों में जिस प्रकार थार के धोरों ने कई बार अपनी जगह बदली होगी, उसी तरह ‘कलम’ का स्थान अधिकांशतः की-बोर्ड ले ही रहा है।
पिछले कुछ दिनों से शहर के चौकस और सावचेत लोगों में एक अजीब-सा अमूजा व्याप्त है। उनमें से कई दबीजबान और कान के पीछे हथेली देकर कह-सुन कर रस लेने से भी नहीं चूक रहे हैं। एक पत्र की फोटो कॉपियां शहर में ‘पनडुब्बियों’ के माध्यम से प्रसारित हो रही हैं। यह पत्र राजस्थान के सर्वोच्च और देश के एक बड़े मीडिया समूह के ‘सुप्रीमो’ को संबोधित है। कम्प्यूटर टंकित इस पत्र में उनके लिखारों ने अपने हस्ताक्षर और नाम को गोपनीय रखा है, उस की जगह उन्होंने उस मीडिया समूह के स्थानीय संस्करण के सभी विभागों के साथियों का उल्लेख किया है।
आधुनिक ‘माया युग’ में इस पत्र का वैसे तो कोई महत्त्व इसलिए नहीं कि पैसों का जहां-जहां फसाव या पसराव है वहां-वहां भ्रष्टाचार को समाज मौन मान्यता देने लगा है। परेशानी इससे उन दो तरह के लोगों को होती है जिनमें एक तो वैसे जो इस भ्रष्टकाल में भी दूध से धुले रहना चाहते हैं और दूसरे वे जिनके कमीज पर छींटे लगते रहे हैं। दूध से धुले और इमानदारों को तो तकलीफ इस चिंता से होती है कि पैसों की खातिर लोग-बाग और कितने’क गिरेंगे और दूसरे वे जो ऐसी लिप्तता के चलते खुद बदनाम हैं उन्हें लगता है कि बाकी लोगों को हमारी इस जमात में शामिल कैसे किया जाय ताकि हमें ताकने वाला कोई रहे ही नहीं।
उक्त उल्लेखित पत्र में उस मीडिया समूह के स्थानीय मुखिया के नाम के साथ शहर के कई ‘नामी’ लोगों के नाम भी हैं। कई तरह के गम्भीर आरोपों से सने इस पत्र का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करें तो उसमें भ्रष्टाचार की फिक्र इसलिए की गई कि इस पत्र के मजमून के भागीदार अलग-अलग प्रकार के लोगों की इस भ्रष्टाचार से अपनी-अपनी तकलीफें हैं, ना कि इसलिए कि उस पत्र में उल्लेखित भ्रष्टाचार से वह मीडिया कलंकित हो रहा है, जिससे समाज के भले लोगों को अभी भी उम्मीदें हैं।
पत्र में उल्लेखित सन्दर्भों से यह भी लगता है कि उस मीडिया समूह के मालिकों की सहमति से यह सब हो रहा है। पत्र में उल्लेखित भ्रष्टाचार हो रहा है या नहीं इस पर दूसरी तरह से विचार करें तो यह ज्यादा महत्वपूर्ण अब इसलिए नहीं रह गया क्योंकि व्यापार-उद्योग-व्यवसायों में भ्रष्टाचार अब मूल्यों की तरह स्थापित होने को है, और जब पत्रकारिता को व्यवसाय मान लिया गया है तो ये दोष उसमें ना हो, कैसे संभव है, और हो सकता है समूह सुप्रीमो को अतिरिक्त ऊपरी धन की जरूरत पड़ने लगी हो, उसकी भरपाई वह शाखा कार्यालयों के मुखियाओं के माध्यम से ही करेगा। यह भी हो सकता है कि ये स्थानीय मुखिया इन करतूतों को सफाई और चतुराई से अंजाम देने में असफल रहे हैं। ऐसी स्थिति में इन्हें कहीं और भेजकर किसी ज्यादा चतुर को लगा दिया जाय।
समाज के बदलते ढर्रे में चिन्ता की बात ज्यादा यह है कि पत्र में उल्लेखित सारे आरोप सही नहीं भी हैं तो इस तरह के आरोप आमजन के भरोसे के इस अखबारी ‘व्यवसाय’ में और वह भी एक प्रतिष्ठित समूह पर लगने की गुंजाईश क्यों बनी। सावचेती कुछ कम हुई होगी तभी ए-4 आकार के कागज पर हिन्दी के 10-11 पॉइन्ट के फॉन्ट में पत्र का इतना बड़ा मजमून बन गया। पत्र की प्रतिलिपियों को देश के राष्ट्रपति से लेकर स्थानीय पार्षदों तक और प्रशासनिक-पुलिस अधिकारियों तक को भेजने का उल्लेख है। इस पत्र की गत क्या होगी, यह सभी सावचेतों को पता है। आरोपित मीडिया समूह के सुप्रीमो कोई एहतियातन कदम उठाएं तो उठाएं बाकी राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री,
राज्यपाल, मुख्यमंत्री के यहां यह पत्र दफ्तर दाखिल होना है। हां स्थानीय लोग अपने-अपने हिसाब से जरूर कौतुहल कुछ दिन पैदा करते रहेंगे। थोड़े समय बाद भुलाकर सभी अपनी-अपनी रेलमपेल में लग जाएंगे।
25 जुलाई, 2013
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