Friday, July 19, 2013

बीकानेर पश्चिम, कांग्रेस और डॉ. कल्ला

बीकानेर शहर की दोनों सीटें बीकानेर पूर्व और बीकानेर पश्चिम फिलहाल भारतीय जनता पार्टी के पास हैं। खुद की सरकार के रहते कांग्रेसियों में यह आत्मबल तो दिखाई देना ही चाहिए कि साल के अन्त में होने वाले विधानसभा चुनावों में शहर की इन दोनों सीटों पर उन्हें काबिज होना है। लेकिन हो यह रहा है कि बीकानेर पूर्व की सीट को लेकर किसी कांग्रेसी दावेदार में आश्वस्ति नहीं दीख रही तो बीकानेर पश्चिम में फिलहाल रस्साकशी इस पर है कि डॉ. बीडी कल्ला को सीट-बदर कैसे किया जाए।
बीकानेर पूर्व को लेकर विनायक एकाधिक बार आकलन बता चुका है कि वर्तमान विधायक सिद्धीकुमारी की भाजपाई उम्मीदवारी की पक्कमपक्का संभावना से जहां पूर्व से संभावित कांग्रेस उम्मीदवारी की उम्मीद बनाए हुओं के चेहरों और प्रयासों पर आशंकाएं साफ देखी जा सकती है वहीं बीकानेर पश्चिम सीट का कांग्रेसी सन्दर्भ से आकलन पूर्व से भिन्न है भिन्न होने के एकाधिक कारण हैं और उनमें दम भी है। सबसे बड़ा कारण तो प्रदेश के कांग्रेसी दिग्गजों में से एक डॉ. बीडी कल्ला का पिछला चुनाव हारना है, हार भी छोटी नहीं उन्नीस हजार की थी। फिर कांग्रेसी उम्मीदवारों के चयन को लेकर एके एन्टनी कमेटी की वह रिपोर्ट जिसमें एक सिफारिश यह भी है कि पन्द्रह हजार से ज्यादा मतों से हारे कांग्रेसी उम्मीदवार की जगह किसी अन्य को मौका दिया जाए। राहुल गॉंधी के चुनाव प्रबन्धन के कॉरपोरेट स्टाइल के और अन्य कई तरह की स्क्रिनिंगों के चलते इस बार धुप्पल या सिटपिट की सम्भावनाओं का कम होना भी एक कारण हो सकता है। यह सब कारण तो ऊपरी तल्ले के मान सकते हैं। ऊपरी तल्ले तक पहुँच की सामान्यत: दो विधियां होती हैं, लिफ्ट और सीढि़यां। डॉ. कल्ला ने ऊपरी तल्ले तक पहुँच की अपनी एक लिफ्ट मोतीलाल बोहरा की स्नेह पात्रता से अपने को पता नहीं क्यों मुक्त कर लिया। सीढ़ियों से पहुँचने के उनके बल में कमी पिछला चुनाव हार जाने से गई। डॉ. कल्ला ने अपनी शंकालु प्रवृत्ति के चलते अपने पुराने सहयोगियों-शुभचिंतकों को मजबूर कर दिया कि वे सीढ़ियां चढ़ते कल्ला की टांग खिंचाई करें। इसी सप्ताह उनके छह-सात पुराने सहयोगी-शुभचिंतक यह बताने को जयपुर-दिल्ली मिशनरी यात्रा पर थे कि बीकानेर पश्चिम से डॉ. कल्ला को टिकट दिया जाना कांग्रेस के हित में इसलिए नहीं है कि वे सीट निकाल नहीं पाएंगे। ये सभी बीकानेर पश्चिम से कांग्रेसी टिकट के दावेदार भी हैं। सोनिया-राहुल के अलावा राजस्थान के टिकट बंटवारे में निर्णायक भूमिका निभाने वाले उन सभी तक पहुँचने में और अपनी यह बात रखने में वे सफल हो गये कि उनमें से किसी को भी टिकट दे दो-पश्चिम की सीट निकलवाने को पुरजोर प्रयास करेंगे और डॉ. कल्ला को टिकट दिया गया तो यह सीट फिर बचनी मुश्किल है।
डॉ. कल्ला चाहें तो हाल ही के इस अभियान से आत्म मंथन कर सकते हैं कि उनके डूंगर कॉलेज से राजनीति शुरू करने से लेकर अब तक रहे सहयोगियों-शुभचिंतकों के साथ वे सम्मानजनक निर्वाह क्यों नहीं कर पाए हैं, जबकि व्यावहारिक राजनीति में इस गुण की पहली जरूरत होती है।
जनार्दन कल्ला को तो छोड़ दें क्योंकि उन्होंने तो अपने को कुंभकरण की भूमिका में मान लिया और भाई जैसा ही हो और जो भी करे उन्हें उसके साथ रहना है। लेकिन शेष सक्रिय राजनीतिकों और राजनीतिक सहयोगियों की लम्बी फेहरिस्त है जिन्हें डॉ. कल्ला अपने साथ बनाये नहीं रख सकें। इनमें कर्णपालसिंह से लेकर हरनारायण महाराज, गुलाम मुस्तफा, श्याम तंवर, बाबू जयशंकर, डॉ. तनवीर मालावत, चतुर्भुज व्यास, राजकुमार किराड़ू, चन्द्रप्रकाश गहलोत, संजय आचार्य, गजेन्द्रसिंह सांखला और गुलाब गहलोत जैसों के नाम गिनाए जा सकते हैं जो कभी डॉ. कल्ला के आंख-मीचे सहयोगी रह चुके हैं।
                                                           

19 जुलाई,  2013

2 comments:

Unknown said...

वाह भाईसाहब ! बहुत ही सटीक और सापेक्ष द्रष्टि रखते हुए आपने उम्दा विशलेषण किया है .

Unknown said...

वाह भाईसाहब ! बहुत ही सटीक और सापेक्ष द्रष्टि रखते हुए आपने उम्दा विशलेषण किया है .