Tuesday, July 16, 2013

शहर कांग्रेस की गत

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी की राजस्थान को लेकर सक्रियता के बाद प्रदेश कांग्रेस कमेटी कुछ अधिक तत्पर दिखी और जिलाध्यक्षों को आनन-फानन में निर्देश भेज कर तत्काल बैठकें करवाईं। निर्देश पालन हेतु शहर कांग्रेस की बैठक भी हुई और बैठक की खबरें भी छपीं। पर स्थानीय राजस्थान पत्रिका ने इस खबर को अलग कोण से लिख कर बताया कि इस जरूरी बैठक में किन-किन महत्त्वपूर्ण नेताओं ने आना जरूरी नहीं समझा। इस खबर से साफ लगता है कि शहर कांग्रेस अध्यक्ष यशपाल गहलोत की स्थिति अच्छी नहीं है। उन्हें कल्ला गुट का माना जाता है और जो कल्ला विरोधी खेमा है, वह उन पर भरोसा नहीं करता। हाल ही की कांग्रेस संदेश यात्रा में यशपाल द्वारा दिखाए आत्मविश्वास के चलते हो सकता है कल्ला खेमा भी आशंकित हो। यह सब हो-जाना राजनीति में होता आया है, गोकुलजी को गोपाल जोशी ने पटखनी दी तो गोपाल जोशी को कल्ला-बन्धुओं ने अब कल्ला बन्धु इस आशंका से बाहर कैसे निकलें कि यशपाल उन्हें पटखनी नहीं देगा। पर जो विकल्पहीनता की स्थिति गोपाल जोशी और कल्ला बन्धुओं के सामने थी वैसी यशपाल के सामने नहीं है, पिछले परिसीमन से बीकानेर (पूर्व) की दावेदारी का विकल्प है। लेकिन इस दावेदारी के लिए उन्हें कल्ला खेमे की छाप से इस भरोसे के साथ उबरना होगा कि वे कल्ला बन्धुओं के लिए कभी प्रतिकूलता के भागीदार नहीं बनेंगे। अन्यथा डॉ. कल्ला इतने आत्मविश्वासहीन हैं कि वे हर समय आशंकाओं से ही घिरे रहते हैं। रही बात जनार्दन कल्ला कि तो वे हर समय किसी भी स्थिति में दो-दो हाथ करने को तैयार रहते हैं, बिना परिणाम की परवाह किए। इसलिए ऊपर दोनों भाइयों का उल्लेख संयुक्त रूप से किया है, डॉ. कल्ला बिना जनार्दन कल्ला के शहर में कुछ खास हासिल करने में सफल नहीं हो सकते। कई प्रकार की आशंकाओं से घिरे रहने वाले डॉ. कल्ला असलियत देख-समझ ही कहां पाते हैं?
बात शहर कांग्रेस की कर रहे थे और बताना यह था कि यशपाल को शहर कांग्रेसियों की तरफ से वह भाव नहीं मिल रहा है जो उन्हें मिलना चाहिए था, इसका कारणविनायकने एक बार पहले भी बताया था, कल्ला बन्धु यशपाल के मनोनयन से ही उन्हें अपने प्यादे से ज्यादा ना तो प्रचारित करते हैं और ना ही कोई हैसियत बनने देते हैं। राहुल गांधी जो यह स्थापित करने में लगे हैं कि सत्ता से संगठन ऊपर होता है, उसकी अनदेखी बीकानेर शहर कांग्रेस के मामले में बराबर देख सकते हैं। कल ही की बैठक की बात करें तो शहर कांग्रेस के कई तुर्रमखान बैठक में नहीं आए। ना आने के अन्दर-बाहर के कारण सभी के अलग-अलग बताए गये और हो भी सकते हैं। लेकिन इन उपस्थितियों-अनुपस्थितियों के अपने-अपने मानी और अपने-अपने कयास तो हो ही सकते हैं, और यह मानी और कयास शत-प्रतिशत ना सहीसंभावना सिद्धांतके आधार पर आधे भी सच निकलें तो फिर सिरे से तो खारिज किया ही नहीं जा सकता।
अनायास मिले इस अवसर को सहेजने की जरूरत यशपाल को है, जितना सहेज पाएंगे, हासिल उतना ही कर पाएंगे। अन्यथा वे कांग्रेस, जनसंघ, भाजपा, जनता पार्टी अध्यक्षों की उस फेहरिस्त में शामिल हो कर रह जाएंगे जिन्हें उन्हीं की पार्टी के कार्यकर्ता आज जानते तक नहीं है।
16 जुलाई,  2013


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