Wednesday, July 10, 2013

सुरक्षा व्यवस्था की यह चाक-चौबन्दी!

बीकानेर रेलवे स्टेशन पर सीसीटीवी कैमरे लगाएं गये हैं। इससे पूर्व द्वितीय-द्वार पर जांच की वह मशीन लगाई गई जिसमें से सामान गुजारने पर अन्दर की वस्तुओं का पता चलता है। द्वितीय-द्वार पर ही चार चक्का वाहनों के नीचे से जांच के उपकरण भी लगे हैं। यह उपकरण लगे तब भी टीवी-अखबारों में खबरें शाया हुईं। कल सीसीटीवी कैमरे लगे तो भी ऐसा हुआ। बीकानेर रेलवे स्टेशन पर जाने के चार रास्ते तो अधिकृत हैं और अनधिकृत रूप से तो स्टेशन पर कहीं से भी घुस सकते हैं। ऐसी व्यवस्था में सामान के अन्दर की जांच मशीन का कोई औचित्य समझ में नहीं आता है। किसी वारदात को अंजाम देना हो तो क्यों कोई उन्हीं रास्तों से सरंजाम लेकर जायेगा जहां जांच के ऐसे उपकरण लगे हों। देखा यह भी गया है कि जिस रास्ते पर यह उपकरण लगे हों, कई मनमौजी उनको बाइपास करके गुजर जाते हैं, ड्यूटी पर तैनात संतरी अकसर उनको नहीं टोकते। सवाल यह भी बनता है कि सभी तरह के ये उपकरण सुचारु कितने दिन रह पाएंगे, क्योंकि हमारे यहां सार्वजनिक चीजों की सार-सम्हाल की व्यवस्था लगभग खत्म ही हो चुकी है। हाल ही का सबसे बड़ा उदाहरण 108 एंबुलेंस है जो सुचारु साल भर भी नहीं चल पाती है। बात कहने का कुल जमा मकसद इतना ही है कि योजनाएं बनाने और उनके क्रियान्वयन में हमारे देश में इतनी फांक है कि अधिकांशतः सार्वजनिक धन की बर्बादी के सिवाय कुछ नहीं होता। वारदात हो जाने के बाद ऐसी खामियां उजागर होती हैं, पर इन खामियों के लिए सामान्यतः किसी को उत्तरदायी ठहरा कर दण्डित करते नहीं देखा गया। जांच की प्रक्रिया लम्बी और ऊब भरी होती है, इस बीच साटा-बाटा, दाबाचींथी चलती है, और जांच दफ्तर दाखिल हो जाती है। जिसने भुगता और जिनको भुगतना होता है, वे भाग्य को कोसने के अलावा कुछ नहीं कर पाते।
9 जुलाई,  2013


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