पाकिस्तान की जेलों में भारतीय की और भारत की जेलों में पाकिस्तानियों की गत बड़ी खराब होती है। आजादी बाद से मानवाधिकार हनन की इस तरह की घटनाएं आएं दिन सुनने को मिलती रही हैं। सरबजीत की हत्या के बदले में जम्मू-कश्मीर की एक जेल में पाकिस्तानी कैदी की हत्या गैर-इन्सानी कृत्य था। सरबजीत का मुद्दा तो सुर्खियों में उनकी बहिन की सक्रियता के चलते रहा और उससे कई दिनों तक राजनीति की रोटियां भी सेकी जाती रही। लाहौर की जिस कोट लखपत जेल में सरबजीत की हत्या हुई थी उसी जेल में इसी गुरुवार को एक और भारतीय कैदी जाकिर की भी हत्या कर दी गई है। यह जाकिर भारतीय नागरिक है पर अफसोस की बात यही है कि घटना के चौबीस घंटे बाद भी इक्के-दुक्के अखबारों को छोड़ दें तो जाकिर की हत्या को स्पेस न खबरिया चैनलों में मिला और ना ही अखबारों में। अपने को तथाकथित राष्ट्रवादी कहने वालें दलों की चुप्पी भी कम हैरान करने वाली नहीं है। प्रश्न खड़ा होता है कि जान की अहमियत क्या अलग-अलग व्यक्ति की अलग होती है?
28 जून,
2013
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