Wednesday, June 5, 2013

सूचना का अधिकार कानून को पंगु बनाने की तैयारी

देश को काल्पनिक संकट में बताया जा रहा है। वजह बना है केन्द्रीय सूचना आयोग का सोमवार का वह आदेश जिसे सूचना के अधिकार (आरटीआई) से सम्बन्धित दो कार्यकर्ताओं की अर्जियों पर दिया गया है। इस आदेश में आयोग ने छह राजनीतिक दलों को सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत सार्वजनिक  प्राधिकार के मानदण्डों को पूरा करने वाला माना है और कांग्रेस, भाजपा, माकपा, भाकपा, राकांपा और बसपा इन छह दलों के अध्यक्ष, महासचिवों को आयोग की पीठ ने निर्देश दिया है कि छह हफ्ते के भीतर अपने मुख्यालयों में इस कानून से सम्बन्धित औपचारिकताएं पूरी करें।
जिस तरह सभी दलों के सांसद अपने वेतन-भत्ते और सुविधाओं को बढ़ाने के लिए एक होते रहे हैं, इसी तर्ज पर ये सभी दल केन्द्रीय सूचना आयोग द्वारा दी गई इस व्यवस्था के खिलाफ एक हो गये हैं। कांग्रेस ने इसे लोकतंत्र को कमजोर करने वाला बताया तो भाजपा को इसमें संवैधानिक संकट दीखने लगा है। संप्रग की सरकार के वरिष्ठ मन्त्रियों ने इनसे भी दो कदम आगे जाकर इसे अपने तईं खारिज भी कर दिया है। हो सकता है जल्दी ही सरकार उक्त आदेश के खिलाफ व्यवस्था देगी और संसद सूचना के अधिकार कानून में संशोधन भी पारित कर दे।
हम लोकतान्त्रिक देश के नागरिक हैं और इस लोकतान्त्रिक व्यवस्था में शासन चलाने का जिम्मा मान्यता प्राप्त जिन राजनीतिक दलों को सौंपा गया है वे सभी भ्रष्ट गिरोह के रूप में काम करने लगे हैं। ये दल चुनावों में वोटों के लिए अच्छे-बुरे सभी तरह के हथकंडे अपनाते हैं। विभिन्न रूपों में कानूनी-गैर कानूनी प्रलोभन देते हैं, जिनकी गोटी ज्यादा फिट हो जाती है वह चुनाव जीत कर सरकार बना लेता है। सरकार बनने के बाद प्रमुख काम यही होता है कि पिछले चुनाव में लगे खर्चे की भरपाई हो और अगले चुनाव के लिए व्यवस्था की जाय। इसके अलावा भी इन नेताओं के अपने व्यक्तिगत और सांगठनिक खर्चे भी अनाप-शनाप होते हैं जिनकी व्यवस्था भी करनी होती है। इस तरह की व्यवस्थाएं दो स्तरों पर होती हैं नेताओं की अपनी व्यक्तिगत स्तर की जरूरतों के लिए और पार्टी संगठन को चलाने के लिए। ये जरूरतें जरूरतों तक ही सीमित रहती तो आटे में नमक सा ही रहता लेकिन धीरे-धीरे जरूरतें ऐयाशी में तबदील हो गईं और नमक ने आटे की जगह ले ली है। जो हाल देश में गंगा का हो गया है उससे भी बदतर स्थिति में ये राजनीतिक दल हैं।
कहने को तो कांग्रेस ने सूचना का अधिकार कानून लागू करके वाही-वाही लूट ली। लेकिन उसका क्रियान्वयन किस पुख्तगी से हो रहा है, यह किसी से छुपा नहीं है। जो भी इस अधिकार का उपयोग करता है उसे नाकों चने चबाने पड़ते हैं। कांग्रेस ने शिव की तरह शायद ही सोचा होगा कि सूचना के अधिकार का यह भस्मासुर अपना हाथ उसी पर और उसके हमजादों पर आजमाएगा? खैर जल्द ही रास्ता निकाल कर इस कानून को लकवाग्रस्त कर दिया जाएगा।
समझ में बात यह नहीं रही है कि इस कानून के अन्तर्गत इन दलों को वह दस्तावेजी सूचनाएं ही देनी होगी जिन्हें मांगने पर चुनाव आयोग, न्यायालय और आयकर विभाग को देनी पड़ती है तो फिर जिन मतदाताओं को जरूरत होने पर माई-बाप कहने से भी नहीं चूकते उन्हें यह सूचनाएं मुहैया कराने पर इतना हाय हल्ला क्यों? शेष ऊपर-नीचे की गप्पड़ चौथ ये दल करते हैं वह तो यूं भी जारी रहेगी ही।

5 जून, 2013

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