Saturday, June 22, 2013

बीकानेर (पूर्व) से राजश्री कुमारी!!!

शहर में चुनावी बिसात बिछनी तो कई महीने पहले शुरू हो गई थी, अब शातिरों की दावेदारियां भी शुरू हो गई हैं। एआईसीसी के पर्यवेक्षक कल से शहर में हैं। दावेदारों की भरमार है, दिलचस्प यह कि इस कतार में पार्षदों से लेकर पूर्व प्रदेश अध्यक्ष एवं राज्य वित्त आयोग अध्यक्ष तक शामिल हैं। कहने को यह औपचारिक कवायद है, लेकिन इतनी जरूरी भी नहीं कि इस औपचारिकता के बिना पार्टी टिकट नहीं मिल सकता। इसकी नजरंदाजी के अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं। क्या डॉ कल्ला अपनी हैसियत को इन औपचारिकताओं से ऊपर नहीं मानने लगे हैं। कल्ला चाहे इस आत्मविश्वास में भले ना हों लेकिन विनायक का मानना है कि बीकानेर (पश्चिम) से डॉ कल्ला की दावेदारी लगभग चुनौतीविहीन है, चाहे एंटनी कमेटी रिपोर्ट की दुहाई देकर फाचक लगाने की कितनी भी कोशिशें हों। (पश्चिम) सीट पर दावेदारों की फेहरिस्त का छोटी होना भी कल्ला की मजबूत दावेदारी का एक प्रमाण मान सकते हैं।
फिर भी शहर की दोनों सीटों के लिए दावेदारों में से किसी एक को भी कमजोर नहीं समझा जाना चाहिए। किसकी कब क्या अनुकूलता बन जाय और वह टिकट लेकर धमके। बीकानेर (पूर्व) की सीट पर दावेदार ज्यादा भले ही हों लेकिन अगले चुनाव में भाजपा की उम्मीदवार सिद्धीकुमारी ही अगर होती हैं तो उन्हें हराने की कूव्वत वाला कोई दावेदार इनमें लगता नहीं है। डॉ तनवीर ने अपने संसाधनों के चलते पिछले चुनाव में जरूर जी-तोड़ मेहनत की। डॉ तनवीर अगले चुनावों में बीकानेर (पूर्व) सीट के परिणामों से आशंकित ना हों ऐसा लगता नहीं है। कांग्रेस को जिले की सात में से एक सीट अल्पसंख्यक को देनी ही है तो बीकानेर (पूर्व) और पश्चिम की दो सीटें ऐसी हैं जिन पर अल्पसंख्यक उम्मीदवार खड़ा किया जा सकता है। क्योंकि अल्पसंख्यक दावेदारी की एक और सीट खाजूवाला आरक्षित है। ऐसी स्थिति में यह भी हो सकता है कि डॉ तनवीर बीकानेर पश्चिम से अपनी दावेदारी जताएं। लेकिन इन दोनों ही सीटों पर जीत के लिए अल्पसंख्यक उम्मीदवार होना ही पर्याप्त नहीं होगा, साथ-साथ सभी समुदायों में उसका लोकप्रिय होना भी उतना ही जरूरी है। फिलहाल इस स्थिति में जिले का कोई अल्पसंख्यक नेता नहीं दीखता। फिर भी बीकानेर पूर्व से किसी अल्पसंख्यक को ही टिकट देना कांग्रेस के लिए जरूरी हुआ तो एक नाम नगर विकास न्यास अध्यक्ष हाजी मकसूद अहमद का भी हो सकता है।
मुख्यमंत्री गहलोत को अगले चुनावों में जिले में कांग्रेस की होने वाली दुर्गति का आभास है और वे खुद सचेष्ट हों तो संभव है कि वे फिजां बदलने को कोई ऐसा उम्मीदवार लाएं जो ना केवल खुद जीत सकता हो बल्कि आस-पड़ोस की सीटों पर भी असर डाल सके। ऐसी संभावना और प्रयासों का पता चला है कि बीकानेर (पूर्व) से वर्तमान विधायक सिद्धीकुमारी की भूवा और अर्जुन पुरस्कार विजेता राजश्री कुमारी को सिद्धीकुमारी के सामने कांग्रेस का उम्मीदवार बनाया जा सकता है। अपने पिता और बीकानेर लोकसभा क्षेत्र की 25 साल तक निर्दलीय नुमाइन्दी करने वाले डॉ करणीसिंह की तरह राजश्री कुमारी को शायद कांग्रेस से परहेज ना हो। 1971 से पहले के चुनावों में डॉ करणीसिंह के सामने कांग्रेसी उम्मीदवार का ना होना इसका एक प्रमाण है। और यह भी कि राजश्री कुमारी अपने पिता की बेहद लाडली थी। वह इसी से जाहिर है कि डॉ करणीसिंह की दूसरी बेटी मधुलिका कुमारी को शहर में बहुत कम लोग जानते हैं।
रही बात गांधीवादी अशोक गहलोत की तो पिछले लोकसभा चुनाव में जोधपुर से पूर्व राजघराने की चन्द्रेश कुमारी को कांग्रेस का उम्मीदवार बना कर संकेत दे दिया था कि उनके लिए सीट निकालना ज्यादा महत्वपूर्ण है। पिछले विधानसभा चुनावों में प्रदेश के राजाखेड़ा विधानसभा क्षेत्र में भी यह खेल हो चुका है। आगरा के 25 साल तक सांसद रहे सेठ अचलसिंह के परम्परागत कांग्रेसी परिवार के और प्रदेश के पूर्व वित्तमंत्री प्रद्युम्नसिंह के सामने वसुन्धरा राजे ने उन्हीं के चचेरे भाई रवीन्द्रसिंह की महत्वाकांक्षा को जगा कर भाजपा का टिकट दे दिया और वे जीत भी गये। प्रद्युम्नसिंह के चुनाव की कमान हमेशा ही रवीन्द्रसिंह ही सम्हालते रहे थे।
राजश्री कुमारी अपनी भतीजी सिद्धीकुमारी के सामने कांग्रेसी उम्मीदवार होती हैं तो उनके लिए यह निर्णय लेना रवीन्द्रसिंह जितना मुश्किल नहीं होगा और यह भी कि यदि वे मन बना लेती है तो चुनाव जीतना भी मुश्किल नहीं होगा!

22 जून, 2013

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