Monday, May 27, 2013

कृषि विश्वविद्यालय

बीकानेर के कृषि विश्वविद्यालय के सिकुड़ जाने तथा उसे केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय के दर्जे की सुगबुगाहट के साथ ही शहर में इससे सम्बन्धित सक्रियता देखी गई है। यद्यपि कल इस पर आयोजित संगोष्ठी में आगन्तुकों की संख्या हालांकि तीन अंकों तक भी नहीं पहुंची। बात यह भी है कि संख्याबल के आधार पर जनप्रतिनिधियों के अलावा कुछ भी तय करना ना तार्किक कहलाएगा और ना ही जायज।
बीकानेर का कृषि विश्वविद्यालय अपनी स्थापना के समय से ही जिस तरह से चल रहा है, उसके कार्यों में या प्रतिष्ठा में कोई बड़ा अन्तर केन्द्रीय दर्जा मिलने पर जायेगा उम्मीद कम ही है। इन विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की राजनीतिक नियुक्तियों ने बंटाधार तो किया ही है, स्थानीय नेताओं ने हस्तक्षेप कर-करके भी इनका सत्यानाश करने में कोई कमी नहीं रखी।
रही बात इसके क्षेत्र के चार जिलों में सिकुड़ने की तो यदि प्रदेश के प्रत्येक क्षेत्रवासी अपने-अपने यहां सभी तरह के विश्वविद्यालय चाहेगा तो यही होना है। वैसे जरा बताएं कि भारत का ऐसा कौन सा विश्वविद्यालय है जहां अमेरिकी और अग्रणी यूरोपीय देशों के छात्र प्रवेश के लिए लालायित रहते हैं? उम्मीद की जानी चाहिए कि सुर्खियों के लिए इस तरह की गोष्ठियां करने वाले इन विश्वविद्यालयों की अकादमिक प्रतिष्ठा के लिए भी अतिरिक्त गम्भीरता के साथ प्रयासरत होंगे।



27 मई, 2013

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