Wednesday, May 29, 2013

पानी रे पानी....

पूरे यौवन की इस गर्मी से आकळ-बाकळ और परेशान शहरियों ग्रामीणों को खीज निकालने का मौका बीकानेर में जलदाय विभाग दे रहा है। पिछले कई दिनों से शहर के कुछ हिस्सों और कई गांवों में पानी की आपूर्ति ठीक-ठाक ना होने के चलते लोग-बाग जलदाय विभाग के अधिकारियों को चूड़ियांं भेंट करने और गिरेबां पकड़ने लगे हैं। सरकारी मुलाजिमों को लेकर यह आमधारणा बनती जा रही है कि यदि ऊपर-नीचे से कुछ ना देना हो और काम करवाना हो तो बदमजगी के अलावा कोई चारा नहीं है। यह धारणा दिन--दिन जोर पकड़ती जा रही है जो अच्छा संकेत नहीं है। बदमजगी चाहे वह सरकारी मुलाजिम अपनी ड्यूटी मुस्तैदी से ना करके न्योतते हों या कुण्ठित आमजन दुर्व्यवहार पर उतर आते हों, दोनों ही करतूतें कानून व्यवस्था और लोकतान्त्रिक मूल्यों को चुनौती है।
किसी के मुंह पर चूड़ियांं फेंकना या किसी को चूड़ियांं भेंट करना प्रकारान्तर सेस्त्रीका ही अपमान है जिसे स्त्रियां गर्व के साथ अंजाम देती हैं। पता नहीं विरोध का यह तरीका कब और किस तरह शुरू हुआ या करवाया गया। चूड़ियांं भेंट करने का भाव ही यह होता है कि चूड़ियां पहनना हेय है और चूंकि आप अपने कर्तव्य पर खरे नहीं उतर पा रहे हैं इसलिए चूड़ियांं पहनकर बैठे जाओ। यानी स्त्री कर्म और स्त्री का पहनावा हेय हैं।
उक्त विषयान्तर की जरूरत इसलिए पड़ी कि पानी की आपूर्ति में कमी से व्याकुल कुछ स्त्रियों ने कल जलदाय विभाग के एक अधिकारी को चूड़ियांं पहनाने की कोशिश की। माना जा रहा है कि जल आपूर्ति के लिए जिम्मेदार अधिकारियों की प्रबन्धकीय अक्षमता के चलते ही यह संकट खड़ा हुआ है। इसमें दो राय नहीं कि गर्मी के इस चरम मौसम में पानी की खपत बढ़ती है लेकिन प्रबन्धकीय कुशलता से विभाग आपूर्ति के सन्तुलन को बनाए रख सकता है। धुर रेगिस्तान की जैसलमेर-बीकानेर की दो रियासतों के बारे में कभी कहा जाता था कि यहां घी-दूध चाहे जितना मांग लो सहर्ष उपलब्ध करवा देते थे, पानी मांगने पर यहां के बाशिन्दे ठिठक जाते। सही भी है कि वे लोग पानी को संजोना और बरतना बखूबी जानते थे।
आजादी मिलने से कुछ पहले जब पानी की आपूर्ति पाइपों के माध्यम से शहर के गली-मुहल्लों तक होने लगी तभी से पानी की आबरू कम से कमतर होती गई। घर-घर में कनेक्शन होने के बाद तो नालियों में बेकार पानी बहने का प्रतिशत कई गुना बढ़ गया। कम कीमत में मिलने वाले पानी का मौल क्या हम तब समझेंगे जब सरकार प्रति परिवार रियायती मूल्य पर दिए जाने वाले पानी की मात्रा एलपीजी सिलेण्डर की तर्ज पर सीमित कर देगी। पाठकों की सूचनार्थ यह बताना जरूरी है कि जलदाय विभाग में पिछले कई वर्षों से इस तरह के प्रस्तावों पर गम्भीरता से विचार भी हो रहा है।
यह तो हुई आम-आदमी की बात, अब थोड़ा जलदाय विभाग के अधिकारियों की बात कर लेते हैं। राजस्थान के बड़े शहरों में जल उत्पादन के मामले में बीकानेर की स्थिति बहुत अच्छी कभी नहीं रही। आंकड़े बताते हैं कि जल उत्पादन के मामले में केवल अजमेर ही बीकानेर से पिछड़ा रहा है। बाकी सभी शहरों यथा जयपुर, जोधपुर, कोटा का प्रतिव्यक्ति जल उत्पादन हमेशा बीकानेर से ज्यादा रहा है। बावजूद इसके आमजन में जल आपूर्ति को लेकर बीकानेर में असन्तोष सबसे कम देखा गया। देखने वाली बात यही है कि यह असन्तोष इन्हीं वर्षों में ही क्यों सुर्खियां पाने लगा है। बाईस-पचीस कुओं और सौ के लगभग नलकूपों को सुचारु रखकर ऐसे समय में नहरी पानी की मौसमी कमी की भरपाई की जाती रही है। क्या विभाग साल के इन दो महीनों में लीकेजों को समय रहते ठीक करके और नलकूपों कुओं को दुरुस्त रख कर कमी पूर्ति नहीं कर सकता? अलावा इसके शहर के कई इलाकों में कई-कई घंटों की दिन में दो-बारी जलापूर्ति और कई इलाकों में बिलकुल नहीं को समयसारिणी तय करके सुचारू नहीं कर सकता? कांग्रेस के नेताओं को आगामी विधानसभा चुनाव जीतने के लिए ही सही, खुद की सरकार रहते उनकी जिम्मेदारी बनती है कि जलदाय विभाग को मुस्तैद कर अपने मतदाताओं को इस त्राहिमाम् से निजात दिलाए।


29 मई, 2013

1 comment:

maitreyee said...

बहुत अच्छी तरह से लिखा है!
मुहावरे के प्रयोग शानदार रहा है!!