Saturday, May 25, 2013

क्रिकेट : खेल से सर्कस और कैसिनो

दुनिया का सबसे लोकप्रिय खेल आज भी फुटबाल माना जाता है। दर्शकों का फुटबाली जुनून दुनिया के बड़े  हिस्से की खबरों में छाया रहता है। अपने देश में भी कभी फुटबाल और हॉकी के खेल बहुत लोकप्रिय थे, लेकिन धीरे-धीरे हमारे यहां खेलों के प्रति आकर्षण में क्रिकेट बाजी मार ले गया। यूरोप या कहें इंग्लैंड से शुरू इस खेल को अफ्रीकी, एशियाई और आस्ट्रेलियाई होते देर नहीं लगी। तीन से पांच दिन के धीमी गति के इस खेल को देखना-सुनना पसन्द करने वाले कभी बड़े धैर्यशाली कहलाते थे। जबसे पचास-पचास ओवरों के एकदिवसीय मैच शुरू हुए तब से इसमें अपार बहुआयामी संभावनाएं देखी जाने लगी, दर्शकों की ओर पैसों की भी। केवल क्रिकेट संघ बल्कि खिलाड़ी भी मालामाल होने लगे। जहां माल होता है वहां प्रभावी और दबंगों का हस्तक्षेप भी बढ़ जाता है। आजकल के प्रभावी और दबंगों में उद्योगपतियों और राजनीतिज्ञों का प्रमुख स्थान है। गोटियां फिट करने वाले कुछ चतुर पत्रकार भी क्रिकेट का माल काटने वालों में शामिल हो जाते हैं।
जब से इण्डियन प्रीमियर लीग के टी-20 मैच शुरू हुए, तब से क्रिकेट खेल तो रहा नहीं, कुछ लोग इसे सर्कस कहने लगे हैं। वैसे कैरी पेकर ने जब इस खेल का निजीकरण किया तब उन्होंने इसे सर्कस ही नाम दिया था। लेकिन अब इसे सर्कस कहना सदियों से चले रहे इस उद्देश्यपूर्ण मनोरंजक धन्धे का अपमान होगा। इसलिए इसे सर्कस कह करक्रिकेट कैसिनोकहा जाए तो ज्यादा सार्थक होगा। इण्डियन प्रीमियर लीग के पहले सुप्रीमो ललित मोदी से इतने घपले हो गये कि उनसे उनकी अपनी मातृभूमि ही छूट गई! उन्हें अन्देशा है कि उनके अपने ही देश में जमानत के लाले पड़ जाएंगे। उनकी कारगुजारियों और देश ना लौटने के सवालों से उनकी मित्र और प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे को अक्सर दो-चार होना पड़ता है। आपने ऊपर एक वाक्य पर गौर किया होगा किआईपीएल में मोदी से इतने घपले हो गयेयानीप्यारकी तर्ज पर ही आईपीएल में घपले किए नहीं जाते, हो जाते हैं।
अब बीसीसीआई (बोर्ड ऑफ कन्ट्रोल फॉर क्रिकेट इन इण्डिया) के अध्यक्ष श्रीनिवासन भी बिना कुछ किए हीहो जानेके चकरीये में गये हैं। श्रीनिवासन के अपने दामाद को तरजीह देने से जला-भुना उनका बेटा ही विभीषण की भूमिका में गया। देखना यह है ललित मोदी की जगह आईपीएल कमिश्नर बने पत्रकार राजीव शुक्ल कब तक खैर मनाते हैं। उनसे अगर कुछ हो गया है तो बड़ी मुश्किल होगी। शुक्ल केन्द्र में मंत्री भी हैं।
क्रिकेट सट्टा और सट्टेबाजों की खबरों के बीच उद्योग और वाणिज्य के देश के बड़े संगठन फिक्की ने भी बहती गंगा में आचमन की इच्छा जाहिर कर दी है। फिक्की ने कहा है कि सभी तरह की सट्टेबाजी को वैधानिक कर दिया जाना चाहिए। उनका तर्क है कि इन पर प्रभावी रोक तो लग नहीं पा रही है और हो यह रहा है कि बेईमानी के इन धन्धों का एक बड़ा उसूल कि बेईमानी के यह धन्धे ईमानदारी से होते थे जो अब उस तरह नहीं होते हैं। कितनी मजेदार बात है। इसी तर्क पर माना जाने लगेगा कि धीरे-धीरे उन सभी अवैधानिक कामों को वैधानिकता का दर्जा दे दिया जाना चाहिए जिन्हें देश का कानून और व्यवस्था रोकने में असफल है या प्रभावी नहीं है। पाठकों को स्मरण हो तो बीच-बीच में इस तरह की भी खबरें आती रही हैं कि क्यों रिश्वत को कानूनन् वैध घोषित कर दिया जाए। ऐसा कहने वालों का एक तर्क भी है कि कई अधिकारी-कर्मचारी रिश्वत लेकर भी समय पर काम करके नहीं देते हैं। कई बार ना तो काम करते हैं और ना ही रिश्वत का दिया पैसा लौटाते हैं, क्या आपका यह कहने का मन नहीं हो रहा कि बात में तो दम है।

25 मई, 2013

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