Thursday, May 16, 2013

बाका-डाकियों के शिकार कल्ला-तनवीर


हर शहर-कस्बे के बाशिन्दों की अपनी अफवाही फितरतें होती हैं, बीकानेरियों की भी हैं। बळद ब्यावणो सेर हैइस फितरत को यहां के आत्ममूल्यांकनी इसी कैबत से अभिव्यक्त करते हैं। यानी यहां यह अफवाह भी धड़ल्ले से फैल सकती है कि बैल के प्रसव हो गया।कल दोपहर बाद से कुछ ऐसी सी बाका-डाक गर्म थीं। कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी प्रदेश के पन्द्रह जिलों के चुनिन्दा कांग्रेसियों से आगामी विधानसभा चुनाव के सम्बन्ध में फीडबैक लेने जो आए हुए थे जिस भवन में यह सब चल रहा था वहां पत्रकार तो क्या गैर पासधारी कोई कांग्रेसी भी पर नहीं मार सकता था। अफवाह का एक कारण यह चाक-चौबन्दी भी हो सकती है। यदि कोई अधिकृत जानकारी ना आए तो सभी अपने-अपने हिसाब से स्क्रिप्ट में रद्दोबदल करने को स्वतंत्र होते हैं।
सुरसुरी से शुरू हुई इन अफवाहों ने डॉ तनवीर मालावत और डॉ बीडी में तू-तू, मैं-मैं से लेकर गुत्थमगुत्था और थापा-मुक्की तक करवा दी, जबकि ऐसा हुआ नहीं। यह सब करने के लिए या तो बेवकूफी की जरूरत होती है या फिर काळजै की। शहर में एक कैबत औरहै किसब बैठ कर सोते हैं यानी सोने के लिए कोई खड़े-खड़े ही धड़ाम से आडा नहीं हो जाता है। इतनी और ऐसी सामान्य समझ तो लगभग सभी में होती है। सो इस तरह की बेवकूफी की उम्मीद करना तनवीर और कल्ला दोनों ही के साथ ज्यादती हो जाएगी, वह भी लगभग माई-बाप राहुल के सामने! रही बात काळजै की तो उसका उपयोग कब और कितना करना है, तनवीर और कल्ला बखूबी जानते-समझते हैं।
राहुल के पास फीडबैक था तभी शहर जिला कांग्रेसियों से जब वे मुखातिब हुए तो पूछ बैठे कि यहां कांग्रेस क्यों हारी। राहुल की चिन्ता वाजिब ही थी, चूंकि पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और मौका देखते ही मुख्यमंत्री पद की दावेदारी करने वाले डॉ बीडी कल्ला ने पिछले चुनावों में ना केवल अपनी सीट ही खोई बल्कि जिले की सात विधानसभाई सीटों में से पांच और लोकसभा की सीट भी नहीं बचवा सके। इस जवाबदेही की जिम्मेदारी शहर उपाध्यक्ष हीरालाल हर्ष को मिली थी लेकिन उन्होंने तो राजस्थान सरकार की लोककल्याणकारी योजनाओं का आमजन में सकारात्मक प्रभाव का जिक्र करके तथा कांग्रेस की महत्त्वाकांक्षी मनरेगा योजना के शहरी संस्करण की जरूरत बता कर इतीश्री कर ली। लेकिन तब राहुल के इस अनुत्तरित प्रश् के जवाब की जिम्मेदारी बीकानेर (पूर्व) सीट से हारे डॉ तनवीर मालावत ने खुद ही लेकर अपने राजनीतिक जीवन के इस बेहतरीन अवसर का भरपूर उपयोग किया। उन्होंने जिले में कांग्रेस की हार के लिए कई कारण देकर डॉ बीडी कल्ला को जिम्मेदार भी ठहराया और खुद अपनी हार का ठीकरा भी कल्ला के सिर पर फोड़ दिया।
ऐसा कुछ हो सकता है, इससे आशंकित तो डॉ कल्ला थे ही। तभी पिछले कुछ दिनों से वे उन-उन कइयों से सम्बन्ध सामान्य कर क्षतिपूर्ति की जुगत में लगे थे जिनसे खेल बिगड़ने की आशंका थी। कल्ला के इस तरह के प्रयासों के बावजूद तनवीर माठे निकले और पूरे गुबार निकालकर उन्होंने अपनी कर दिखाई। उक्त घटनाक्रम इस तरह झटपट हो गया कि यह सब सुनकर ना केवल राहुल गांधी विचलित हो गये बल्कि स्वयं कल्ला भी स्तब्ध रह गये। डॉ. कल्ला ने और शहर कांग्रेस अध्यक्ष यशपाल गहलोत ने सफाई में कुछ कहना भी चाहा, लेकिन उखड़े राहुल गांधी ने उन दोनों को ही अवसर नहीं दिया और वहां से चल दिए।
घटनाक्रम तो यह था और हमारे शहर केबाका-डाकियोंने क्या-क्या नहीं करवा दिया? है ना हमारे शहर की भी फितरत अजब-गजब!
16 मई, 2013

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