Wednesday, April 24, 2013

सब-कुछ आसान गहलोत के लिए भी नहीं


कल के संपादकीयवसुन्धरा का रास्ता आसान नहीं हैमें यह संकेत दे दिया था कि आसान यदि वसुन्धरा के लिए नहीं है तो अशोक गहलोत भी इस निश्चिंतता में नहीं हो सकते कि वे तीसरी बार और लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्रित्व हासिल कर लेंगे। पार्टी के भीतर तो गहलोत लगभग चुनौतीहीन हो गये हैं, खासकर 2008 के नाथद्वारा विधानसभा चुनाव की मतगणना पर आए उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद। न्यायालय अपने फैसले में यदि सीपी जोशी को विजयी घोषित कर देता तो मुख्यमंत्री बनने की उनकी महत्त्वाकांक्षा मुंह निकाल सकती थी। यह भी कि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी तक लगातार पहुंचने वाले गहलोत विरोधी फीडबैक का असर भी दो कारणों से कम हुआ है। एक तो यह कि खुद राहुल के पांव जहां-जहां पड़े वहां-वहां बंटाधार तो नहीं कह सकते पर उनके द्वारा पार्टी को कुछ हासिल करवा पाना भी रहा है। दूसरा, गहलोत ने राहुल गांधी को लेकर अपने रुख को आत्मविश्वासपूर्ण बना लिया है। इन दोनों बातों ने जहां गहलोत के प्रति राहुल के व्यवहार को सामान्य बना देने में भूमिका अदा की वहीं गहलोत ने अपने को राहुल केउचकेसे मुक्त कर लिया।
इस प्रकार गहलोत को सूबे की पार्टी इकाई में कोई चुनौती नहीं है। राजनीति के वर्तमान दौर में यह निश्चिंतता किसी क्षत्रप के लिए कम नहीं होती है। रही बात वोटों को और वोटों को प्रभावित करने वालों को साधने की तो गहलोत पिछले चार वर्षों के हाशिए पर और पिछले लगभग छः महीनों से मुख्य रूप से यही तो कर रहे हैं। इस किए के परिणामों को प्राप्त करना जरूर आसान नहीं है। यह सब निर्भर जिन पर करेगा उनमें एक तो यह भी है कि भारतीय जनता पार्टी की नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष वसुन्धरा राजे की सुराज यात्रा और ऐसी ही उनकी अन्य युक्तियां जनता पर कितना प्रभाव छोड़ती हैं, और यदि प्रभाव छोड़ती है तो गहलोत और उसकी टीम उसे कितना निष्प्रभावी कर पाती हैं। निष्प्रभावी करने की क्षमता और इच्छा-शक्ति खुद गहलोत में तो पुरजोर देखी जा रही है। जहां तक टीम की बात है तो गहलोत के पास सत्ता और संगठन की दो टीमें हैं। संगठन में प्रदेश अध्यक्ष के रूप में भरोसे के डॉ. चन्द्रभान गहलोत को मिले हुए हैं तो लगभग ब्लॉक स्तर तक के पद लिए बैठों की फौज भी खड़ी है। युवा कांग्रेस और पार्टी के छात्र संगठन में भी चुनाव और नियुक्तियां लगभग हो चुकी हैं। बात इन सबको प्रेरित करके सरकारी योजनाओं और मंशाओं की हवा बनवाने की करें तो लगता नहीं है कि यह सब अकेले डॉ. चन्द्रभान के बूते की बात हो। खुद गहलोत को लग कर योजनाबद्ध तरीके से इसे अंजाम तक पहुंचवाना होगा।
दूसरी टीम सत्तापक्ष की है जिसमें मंत्रिमंडल, मंत्रिमंडलीय सचिव और स्थानीय निकायों में जीते और नियुक्त किये गये पार्टीजन हैं। इनमें से अधिकांश या तो दृष्टि सम्पन्न तरीके से प्रभावी कुछ करने की क्षमता में नहीं हैं या फिर वे केवल अपने भविष्य को सुरक्षित या उसके लिए बहुत कुछ हासिल करने में ही लगे हुए हैं। स्थानीय निकाय चाहें तो हवा का रुख पार्टी के अनुकूल करने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।
मंत्रिमंडल की बात करें तो गहलोत को इस मंत्रिमंडल में प्रभावशाली और काम करके दिखाने वाले सहयोगी कम ही मिले हैं। ऐसा होना मुखिया के लिए दूसरे प्रकार की अनुकूलताएं तो देता है लेकिन ऐसी स्थितियों में सबकुछ हांकना अकेले मुख्यमंत्री को ही पड़ रहा है।
गहलोत के लिए एक बड़े सुकून की बात यह भी है कि 2003 के चुनावों की एक बड़ी प्रतिकूलता, राज्य कर्मचारियों की नाराजगी तब जैसी नहीं है। गहलोत ने उन्हें खुश रखने के केवल काफी प्रयास किये हैं बल्कि उन्हें यह भरोसा भी दिया है कि अन्यों की कीमत पर ही सही उन्हें आगे भी पोखते रहेंगे। जातीय समीकरणों को गहलोत द्वारा साधने की बात कल कर ही चुके हैं!
24 अप्रैल, 2013

No comments: