Friday, April 26, 2013

चीनी घुसपैठ


भारतीय जनता पार्टी की प्रवक्ता मीनाक्षी लेखी कल एक खबरिया चैनल पर भारतीय सेना को यह कह कर हड़का रहीं थी कि हमारी सेना क्या इतनी बुजदिल है कि वह चीनी सेना को खदेड़ नहीं सकती। चैनल पर लद्दाख के दौलत बेग ओल्डी क्षेत्र में दो सप्ताह पहले की चीनी घुसपैठ पर चर्चा हो रही थी। उच्चतम न्यायालय में वकालात करने वाली मीनाक्षी लेखी के बारे में यह तो कहा नहीं जा सकता कि वह भारत-चीन सीमा की वस्तुस्थिति और राजनय की सामान्य जानकारी भी नहीं रखती होंगी। आमजन को बरगलाने के लिए ऐसे तेवरों और भाषा का प्रयोग भाजपाई अकसर करते रहते हैं, खासतौर से पाकिस्तान से सम्बन्धित मामलों में। भाजपाइयों को यह भी बताना चाहिए कि जब उनकी पार्टी के नेतृत्व में छः साल सरकार थी, भारत-पाकिस्तान और भारत-चीन के बीच के यह विवाद तब भी थे। उन्होंने तब इन मुद्दों को धोंसपट्टी से क्यों नहीं निबटाया। तब राजग सरकार की राजनयिक और कूटनीतिक चतुराइयां करगिल में केवल धरी रह गई बल्कि सीमाओं को लेकर सामान्य सावचेती भी नहीं देखी गई। जबकि भारत और पाकिस्तान के बीच चीन की तरह बहुत पेचीदा सीमा विवाद नहीं है। जम्मू कश्मीर को छोड़ दें तो शेष सम्पूर्ण सीमाएं जमीन पर चिह्नित हैं और तारबन्दी भी जम्मू-कश्मीर में जहां विवादित है वहां भी नियन्त्रण रेखा (एलओसी) तय है।
भारत और चीन की चार हजार किलोमीटर की सीमा पर आज भी कुछ तय नहीं है। हो सकता है यह लम्बे समय तक तय भी हो। क्योंकि चीन जिस सीमाई भूमि को अपनी बताता रहा है उसे भारत भी अपनी बताता रहा है। इसलिए आजादी बाद से कई-कई दौर की और भिन्न-भिन्न स्तरों की बातचीत के बाद भी कहीं कोई सहमति नहीं बन पायी है। भारत-पाक के बंटवारे के समय तो बाकायदा आयोग बना कर सीमा रेखा अंकित कर दी गई थी।
चीन के साथ ऐसा किए जाने की नौबत इसलिए भी नहीं आई कि सदियों से हिमालय पर्वत शृंखला सीमा का काम करती रही। हिमालय के दक्षिण में भारत और उत्तर में चीन। भारत चीन ही क्यों पहले के काल में जब राष्ट्र-राज्य जैसी कोई कल्पना नहीं थी तब राजा-महाराजाओं, सामन्तों के अपने-अपने राज्य होते थे और दो राज्यों के बीच सैकड़ों मील की दूरी होती थी। कोई निश्चित सीमांकन नहीं था, जहां तक के बाशिंदे जिस राजा को लगान चुकाते थे, वहीं तक उसका राज्य माना जाता था। किसी शासन व्यवस्था का नहीं वरन् भू-भाग विशेष का नाम ही भारत चीन आदि-आदि होता था। इन्हीं स्थितियों के चलते अधिकांशतः निश्चित निशानदेही की सीमाएं होती ही नहीं थी।
यह तो पिछली तीन-चार सदियों से जब से उपनिवेश बनाने की मानसिकता बनी तब से जिस मीलों जमीन की परवाह नहीं की जाती थी वहां एक-एक मीटर का हिसाब किताब देखा जाने लगा है।
मीनाक्षी लेखी को यह तो पता होगा कि चीन की सामरिक शक्ति भारत से कितनी गुणा है और यह भी वह जानती ही होंगी कि युद्धों ने कभी कोई स्थाई समाधान नहीं दिए हैं। ऐसे मसलों पर लगातार बातचीत करते रहने के अलावा कोई हल नहीं है। भाजपा अध्यक्ष राजनाथसिंह ने जरूर परिपक्व बयान दिया है जिसमें उन्होंने सरकार को भरोसा दिलाया है कि इस घुसपैठ के मुद्दे पर वह पूरी तरह सरकार के साथ है। लेकिन ऐसी बातों को मीडिया भी सुर्खियां इसलिए नहीं देता क्योंकि ऐसी खबरें सनसनी जो पैदा नहीं करती।
पाठकों को यह जानकारी देना उचित होगा कि भारत और चीन की सीमा चौकियों के बीच कहीं-कहीं सैकड़ों किलोमीटर का भी फासला है जिन्हें दोनों देश निर्जन और निष्क्रिय छोड़े हुए हैं। क्योंकि कोई सीमा रेखा है ही नहीं। इन स्थानों पर दोनों में से कोई भी सक्रिय होता है तो दूसरा देश उसे घुसपैठ करार देता है, ऐसे आरोप चीन भी अकसर भारत पर लगाता रहा है। बातचीत के बाद उन क्षेत्रों में गतिविधियां रोक कर जवान लौट जाते हैं। उम्मीद करनी चाहिए कि इस बार भी हमेशा की तरह ही होगा। इसलिए इस दौरान सावचेती की तो जरूरत है, भड़काऊ बातों की नहीं।
26 अप्रैल, 2013

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