Thursday, April 11, 2013

किशोर-किशोरियों की आंखों में आत्मविश्वास की चमक


बीकानेर प्रौढ़ शिक्षण समिति द्वारा सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट के सहयोग से देशनोक में चार महीने का किशोरी आवासीय शिविर चलाया जा रहा है। शिविर में दस से लेकर बीस साल तक की शिक्षा से वंचित उन किशोरियों को चार महीने कक्षा पांच स्तर तक शिक्षा और जीवन कौशल की जानकारियां दी जाती हैं जो परिस्थिति-विशेष के चलते या तो स्कूल जा ही नहीं पायीं या जिन्हें बीच में पढ़ाई छोड़ देनी पड़ी। शिविर के समापन पर शिक्षा विभाग द्वारा ही मूल्यांकन किया जाएगा और उत्तीर्ण होने पर कक्षा छः में इन्हें दाखिला मिल सकता है।
बीकानेर की जिला कलक्टर आरती डोगरा संवेदनशील हैं। कल ये किशोरियां जब नगर भ्रमण के लिए आई हुईं थी तो उन्हें अपने दफ्तर में बुलाया, बातचीत की। इस हथाई के दौरान एक किशोरी ने जब राजस्थानी लोकगीतछोटी सी उमर में परणाई बाबोसासुनाया तो उसके साथ की एक लड़की इसलिए फफक पड़ी क्योंकि उसकी शादी घरवालों ने बालपन में ही कर दी थी। यह देख-सुन कर जिला कलक्टर महोदया की भी आंखें भर आईं थी। एक दूसरी बालिका ने अपने पिता के दुर्घटनाग्रस्त होने से बेरोजगार होने की बात बताई तो जिला कलक्टर ने उसके पिता की पेंशन तत्काल शुरू करने का आदेश दे दिया।
उक्त सब बातें विस्तार से कल के विनायक और आज सुबह के अखबारों में छपी हैं। पुनः इसका उल्लेख इसलिए किया कि इन शिविरों की कल्पना और उसके कल्पनाकार के बारे में बताया जा सके।
भारतीय प्रशासनिक सेवा में राजस्थान काडर के अधिकारी थे अनिल बोर्दिया, जो केवल भारत के शिक्षा सचिव के रूप में सेवानिवृत्त हुए बल्कि एक से अधिक देशों के शिक्षा और मानव संसाधन सलाहकार भी रहे। पिछली सदी के अन्त में बोर्दिया जब सरकारी नौकरी से मुक्त हुए तो उन्होंने लोक जुम्बिश जैसी योजना की कल्पना की। तब के मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत ने उन्हें काम करने की पूरी छूट के साथ संसाधन उपलब्ध करवाये। इस योजना को और जमीनी बनाने के लिए अनिल बोर्दिया ने लोक जुम्बिश के कार्यकर्ता मुरारी थानवी के नेतृत्व में एक दल आन्ध्रप्रदेश भेजा जहां तब ऐसे ही आवासीय शिविरों के माध्यम से किशोर-किशोरियों को पढ़ाया जाता था। उन्हीं से प्रेरित होकर लोक जुम्बिश द्वारा आवासीय शिविरों के माध्यम से शिक्षा से वंचित प्रदेश के किशोर-किशोरियों और बालक-बालिकाओं को शिक्षित किया जाने लगा। गांवों के सरकारी स्कूलों में अध्यापकों केफरलोसे बिगड़ी शिक्षा व्यवस्था के विकल्प के रूप में लोक जुम्बिश को तब देखा जाने लगा था, क्योंकि इसका क्रियान्वयन लालफीताशाही से मुक्त था। उन शिविरों में पढ़े किशोर-किशोरियों में से कइर् ने बाद में स्नातक और स्नातकोत्तर तक की डिग्रियां हासिल कीं। सरकार बदली और सीपी जोशी राजस्थान के शिक्षामंत्री हो गये। जोशी की हेकड़ी हमेशा नाक पर रहती है। सो निहायत व्यक्तिगत कारणों से वे अनिल बोर्दिया से उखड़ गये और इतनी शानदार योजना का सरकारीकरण कर जोशी ने भट्टा बिठा दिया। जोशी की हेकड़ी का तो कुछ नहीं हुआ वह आज भी जस-की-तस है पर शिक्षा से वंचित राजस्थान के लाखों किशोर-किशोरियों की उम्मीदों पर जरूर पानी फिर गया।
लेकिन बोर्दिया शान्त कहां बैठने वाले थे! उन्होंने सीमित संसाधनों के साथदूसरा दशकनाम से योजना पुनः बनाई और तय किया कि इसे वे बिना सरकारी मदद और हस्तक्षेप के चलाएंगे। सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट सहयोग के लिए आगे आया। सात जिलों के नो ब्लॉक्स में ही सही पिछले कई वर्षों से इन आवासीय शिविरों के माध्यम सेदूसरा दशकशिक्षा की अलख जगाए हुए है। परिणामस्वरूप शिक्षा से वंचित किशोर-किशोरियों में आत्मविश्वास के साथ सपना देखने की ललक भी देखी जा सकती है। बीकानेर प्रौढ़ शिक्षण समिति ने अनिल बोर्दिया की प्रेरणा से लगभगदूसरा दशकजैसी ही योजना बना कर टाटा ट्रस्ट को दी जो स्वीकार हुई और पिछले लगभग तीन सालों में समिति द्वारा बीकानेर के ग्रामीण क्षेत्रों में चार-चार माह के ऐसे कई शिविर अब तक लगाए जा चुके हैं। जागरूक नागरिकों को समिति से सम्पर्क कर इन शिविरों का अवलोकन करना चाहिए।
11 अप्रैल, 2013

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