Monday, April 1, 2013

राजनाथ की नई टीम राजग के प्रतिकूल


भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथसिंह ने तमाम आशंकाओं, आलोचनाओं और चेतावनियों को दरकिनार कर अपनी कार्यकारिणी की घोषणा कर दी है। 2014 के चुनावों के मद्देनजर बनी इस टीम की घोषणा ने भाजपा का एजेन्डा भी घोषित कर दिया है| घोषित टीम के माध्यम से भाजपा और संघ ने कई सन्देश एक साथ दिये हैं और यह भी, कि भाजपा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की असली मंशा साम्प्रदायिक राजनीति को एक बार पुनः आजमाएगी। यह सब उन अटलबिहारी वाजपेयी के जीवन में हो रहा है जिन्हें कभी पार्टी का मुखौटा बताया गया और और उन लालकृष्ण आडवाणी की राजनीतिक सक्रियता के चलते हो रहा है जिन्हें अपने राजनीतिक जीवन के उत्तरार्द्ध में यह भली-भांति समझ गया है कि बिना उदार राजनीतिक दृष्टि के इस देश में राज स्थाई रूप से हासिल नहीं किया जा सकता।
नरेन्द्र मोदी, उमा भारती, अमित शाह, वरुण गांधी, जैसे कट्टरता की राजनीति करने वाले लोगों को महत्त्व देकर भाजपा ने अगले आम चुनाव को लड़ने की नीति की घोषणा भी कर दी है। राजनाथसिंह को उनके पिछले कार्यकाल से ठीक उलट मनःस्थिति में देखा जा रहा है| हो सकता है या तो उनकी धारणाएं बदल गई हैं या फिर वे दूसरों की भरी चाबी से चल रहे हैं। दरअसल भाजपामरता क्या नहीं करताकी स्थिति में है। केन्द्र में संप्रग की छवि लगातार खराब होती जा रही है लेकिन इसके बरअक्स भाजपा भी कमोबेश ऐसी स्थिति में ही है। जबकि होना तो यह चाहिए था कि ताकड़ी का संप्रग पलड़ा ज्यों-ज्यों ऊपर जा रहा है त्यों-त्यों भाजपा का पलड़ा भारी होकर नीचे को आने चाहिए था। ऐसा नहीं हो रहा है, स्वयं लालकृष्ण आडवाणी इसे सार्वजनिक रूप से स्वीकार भी कर चुके हैं।
इस सबके बाद लगता है अगले कुछ महीनों में पार्टी नरेन्द्र मोदी का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए घोषित भी कर दे। भाजपा ने यह भी मन बना लिया हो कि इसके चलते राजग बिखरे तो भले ही बिखरे| सबसे पहले जद यू ही छिटक सकता है क्योंकि भाजपा की इस नई कार्यकारिणी के बाद राजग में जद यू असहज महसूस करने लगेगा।
फिलहाल जद यू का आधार केवल बिहार में है। लेकिन बिहार में भी वह इस स्थिति में नहीं है कि अकेले कुछ कर के दिखा सके। नये समीकरण यदि बनते हैं तो हो सकता है लालू की राजद और पासवान की लोजपा के दिन फिरने की उम्मीदें धुंधला जाये। जद यू खुद साम्प्रदायिकता की विरोधी है और वह राजनीतिक मजबूरियों के चलते राजग के साथ है। ज्योंही कुछ अनुकूलता बनती दिखी तो वह संप्रग की गाड़ी में सवार हो सकती है। आन्ध्र में तेदेपा के चन्द्रबाबू नायडू राजग के साथ होने का खमियाजा अभी तक भुगत रहे हैं तो तृणमूल की ममता को भी समझ में गया है कि राजग का साथ उसके लिए घाटे का सौदा है! पंजाब और हरियाणा में अकाली दल और हविपा जरूर राजग के साथ रह सकती हैं लेकिन पहले तो इन दोनों राज्यों की सीटें ही इतनी कम हैं दूसरा उनमें से कितनी सीटों पर राजग सफल होगी? नवीन पटनायक को भी ऐसा ही समझ में आया हुआ है। दक्षिण की बाकी पार्टियों का गणित उत्तर की पार्टियों के गणित से भिन्न तरह से काम करता है।
इस सब के मानी यह कतई नहीं है कि देश का मतदाता केन्द्र की सत्ता पुनः संप्रग को सौंप देगा? लेकिन इतना तय जरूर है कि नये ध्रुवीकरण में भाजपा खुद भले ही कुछ सीटों को कम ज्यादा करवा ले लेकिन उसका गठबंधन कमजोर होगा और सरकार गैर साम्प्रदायिक दलों का गठबंधन ही बनायेगा। हो यह भी सकता है संप्रग अपना रूप या नाम बदल कर सत्ता में जाये और यह भी कि कांग्रेस चाहे सुप्रीमों की भूमिका में हो, प्रभावी जरूर रहेगी। संभावना यह बनती है कि आडवाणी और उन जैसे उदार नेताओं को नजरंदाज करना राजग को चाहे भारी पड़े लेकिन भाजपा कुछ सीटों का फायदा कर सकती है।
1 अप्रैल, 2013

1 comment:

Www.nadeemahmed.blogspot.com said...

aapka sampadkie hamesa vichar karne pe majboor karta h