Saturday, March 2, 2013

अंगुली फिर पुलिस पर


पुलिस के बारे में यह आम धारणा है कि उनके इलाकों में होने वाली वारदातों के आरोपियों की भनक उन्हें घटना के कुछ देर में या कुछ ही घंटों-दिनों में हो जाती है। कोई धारणा हवा में नहीं बनती, उसके पीछे कुछ कुछ या आधी-पड़दी सचाई होती ही है। और यह भी कहा जाता है कि कुछ विशेष प्रकार के अपराध जैसे अवैध शराब की बिक्री, जुआ-सट्टा, जेबतराशी और देह व्यापार आदि-आदि तो इनकी जानकारी में ही फलते-फूलते हैं। कहते हैं मंथली उगाही के लिए यह सब करना-करवाना होता है!
चोरियां भी जब-तब होती है तो इसी प्रकार की कई बातें शहरी हथाई में होने लगती हैं। शहर में एक उदाहरण भी दिया जाता है किबीस-पचीस साल पहले एक एसपी आया तो उस समय शहर में चोरियां अचानक बढ़ गई थी। जनता की हैरानगी बढ़ी तो जो बात चौड़े आई वह यह थी कि फलां एसपी अपने इलाके से चोरों के गिरोहों को साथ लेकर चलते हैं।हालांकि यह गप लगती है| लेकिन ऐसी गप को घड़े जाने की गुंजाइश भी तभी बनती है जब पुलिस अपनी मुस्तैदी कम कर चोरों को अपनी कर गुजरने की गुंजाइश छोड़ती है।
परसों रात शहर की उस सड़क गंगाशहर रोड पर एक साथ छः दुकानें के शटर टूटे, जिस पर रात में शायद ही कोई समय ऐसा होता होगा कि जब कोई कोई वहां से गुजर रहा हो। ऐसा ही रात-भर चलने वाले महात्मा गांधी रोड पर एक से अधिक बार हो चुका है| यह वारदातें इस बात की पुष्टि करती हैं कि चोरों के हौसले बुलंद हैं या उन्हें कोई शह है। अन्यथा परसों रात को गंगाशहर रोड पर जो घटित हुआ वैसा तो हरगिज नहीं होता| एक-आध दुकान का शटर टूट कर रह जाता। पुलिस कहती है पूरी रात हम गश्त पर होते हैं, होमगार्ड के जवान अलग अपनी ड्यूटी बजाते हैं| सीओ सिटी खुद सप्ताह में एक पूरी रात घूमती हैं या तो चोरों को सीओ के घूमने की तय रात की सूचना हो गयी सो वह उस रात का साप्ताहिक अवकाश रख लेते होंगे! इतना सब होते हुए भी चोरियां बेधड़क हो रही हैं तो बात तो बनेगी ही।

                                                                                                                     02 मार्च, 2013

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