हमारे शहर के साहित्यकार-रंगकर्मी बड़े संतोषी जीव हैं। उन्हें कुछ न कुछ हासिल होते रहना चाहिए, फिर हासिल आभासी ही क्यों न हों। गद्गद हो जाते हैं। गद्गद भी इतने कि अपने सभी सहयोगियों के साथ-साथ हाथोंहाथ प्रेस फोटोग्राफरों
को भी सूचना देने से नहीं चूकते। तत्पर इतने रहते हैं कि वे कितने ही जरूरी काम में क्यों न व्यस्त हों या अपने कार्यालय में ड्यूटी पर, गद्गद भाव के प्रकटीकरण के धर्म को नहीं भूलते। नजाकत अनुसार पटाखे या गुलाल आदि लेकर पहुंच जाते हैं। यह पड़ताल भी नहीं करते कि हासिल का हश्र क्या है। कल नगर विकास न्यास अध्यक्ष ने टाउनहॉल के आधुनिकीकरण के लिए साठ लाख देने की घोषणा क्या की ये सभी रवीन्द्र रंगमंच के जख्मों को भूल गये। वे यह भी भूल गये कि सरकारी तरीके से होने वाले काम में साठ लाख कोई बहुत बड़ी रकम नहीं है। अगर इसे वातानुकूलित न करके एयरकूल्ड किया जाता है तो मच्छरों की आमदरफ्त और बढ़ेगी और समय पर कूलिंग प्लांट की सफाई न हुई तो (जिसकी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।) दर्शकों को मच्छरों के साथ महक से भी दो-चार होना होगा| वैसे विनायक ने 13 अगस्त, 2012 के अपने अंक में ‘चन्द्र स्मृति’ कार्यक्रम के हवाले से ‘हाजी मकसूद चाहें तो टाउन हॉल को बना सकते हैं सधवा’ शीर्षक से इसके आधुनिकीकरण की जरूरत और रूपरेखा दे दी थी।
02 मार्च, 2013
02 मार्च, 2013
3 comments:
sahi kaha
sahi kaha sir
aap lagatar logo ko jagruk karne ka kam kar rahe h aap ko sadhuvad
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