Saturday, March 2, 2013

सन्तोषी साहित्यकार-रंगकर्मी


हमारे शहर के साहित्यकार-रंगकर्मी बड़े संतोषी जीव हैं। उन्हें कुछ कुछ हासिल होते रहना चाहिए, फिर हासिल आभासी ही क्यों हों। गद्गद हो जाते हैं। गद्गद भी इतने कि अपने सभी सहयोगियों के साथ-साथ हाथोंहाथ प्रेस फोटोग्राफरों को भी सूचना देने से नहीं चूकते। तत्पर इतने रहते हैं कि वे कितने ही जरूरी काम में क्यों व्यस्त हों या अपने कार्यालय में ड्यूटी पर, गद्गद भाव के प्रकटीकरण के धर्म को नहीं भूलते। नजाकत अनुसार पटाखे या गुलाल आदि लेकर पहुंच जाते हैं। यह पड़ताल भी नहीं करते कि हासिल का हश्र क्या है। कल नगर विकास न्यास अध्यक्ष ने टाउनहॉल के आधुनिकीकरण के लिए साठ लाख देने की घोषणा क्या की ये सभी रवीन्द्र रंगमंच के जख्मों को भूल गये। वे यह भी भूल गये कि सरकारी तरीके से होने वाले काम में साठ लाख कोई बहुत बड़ी रकम नहीं है। अगर इसे वातानुकूलित करके एयरकूल्ड किया जाता है तो मच्छरों की आमदरफ्त और बढ़ेगी और समय पर कूलिंग प्लांट की सफाई हुई तो (जिसकी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।) दर्शकों को मच्छरों के साथ महक से भी दो-चार होना होगा| वैसे विनायक ने 13 अगस्त, 2012 के अपने अंक मेंचन्द्र स्मृतिकार्यक्रम के हवाले सेहाजी मकसूद चाहें तो टाउन हॉल को बना सकते हैं सधवाशीर्षक से इसके आधुनिकीकरण की जरूरत और रूपरेखा दे दी थी।
02 मार्च, 2013