Friday, March 1, 2013

फड़ बाजार की गत और जनप्रतिनिधि


कल बीकानेर शहर को लेकर जनप्रतिनिधियों की दृष्टि की बात की थी। आज फड़ बाजार के बहाने उसकी बानगी से भी अवगत करवा देते हैं। फड़ बाजार जैसा कि नाम से ही विदित है यहां धान का फड़ लगता था| किसान गांवों से ऊंटों पर धान लाते थे, खुले में लगा कर बेचते और शाम को घर लौट जाते थे। इसीलिए इसके रास्ते की चौड़ाई तब भी और आज भी शहर में सबसे ज्यादा है। कहते हैं कोई पचासे साल पहले गजनेर अभयारण्य से दीया-बाती के समय रवाना हुए जंगली सूअरों के झुंड रात तक यहां पहुंचते, बिखरे खाद्य-अखाद्य को अपना भोजन बना कर तड़का होने से पहले अपने ठिकाने लौट जाते थे। इन जंगली सूअरों से डर से रात को इस फड़ बाजार में कोई निकलता तक नहीं था।
लगभग उन्हीं बरसों में फड़ बाजार के महात्मा गांधी रोड मुहाने पर कब्जा हुआ और गुपचुप उसका नियमन भी करवा लिया गया। करीब साठ-सत्तर फुट के इस मुहाने को आठे फुट का बना दिया गया। बल्कि इस कब्जे के दूसरी ओर की गली जो आज भी सार्वजनिक रूप से काम नहीं आती है, की चौड़ाई इससे ज्यादा थी। पिछली सदी के अन्त में इस नियमित हुए कब्जे को हटाने की जरूरत महसूस की जाने लगी और मांग उठने लगी। राज्यादेश की संभावना बनी तो कब्जेधारी को भी लगा होगा कि किराया भी कुछ खास नहीं रहा है, सरकार किरायेदारों से खुद निबटेगी और मुझे एकमुश्त बड़ी राशि मिल जायेगी। मामला सिरे चढ़ गया। लेकिन किरायेदारों से पूरा खाली करवा कर टूटने लगा तो एक हिस्सा छोड़ दिया गया| तब यह चर्चा आम थी कि शहर के एक प्रभावशाली नेता ने, उस हिस्से को कायम रखवाने के दस लाख लिए हैं। यदि वह हिस्सा भी हटा दिया जाता तो उसके बाद की नौ-दस फुट की गली भी आम हो जाती और इन नेताओं में कोई दृष्टि होती तो फड़ बाजार के चौड़े मुहाने के बीच एक फव्वारा या अन्य कुछ लगा कर इसका सौन्दर्यकरण किया जा सकता था। जोधपुर जायें तो इस तरह के सौन्दर्यकरण की बानगियां जगह-जगह देखी जा सकती हैं।
फिर भी, तब लगने लगा था कि फड़ बाजार के दिन अब फिरेंेगे, लेकिन किसी भी जनप्रतिनिधि की इसमें रुचि नहीं थी और आज भी नहीं है। फड़ बाजार का दूसरा छोर जो कुचीलपुरा की ओर खुलता है, करीब दो सौ फुट से ज्यादा चौड़ा है, और धीरे-धीरे पिछले बीसे सालों में दोनों तरफ के मकान वाले बीस-बीस, तीस-तीस फुट तक दो-दो, तीन-तीन बार में रास्ते को कब्जाते आगे बढ़ रहे हैं, नगर निगम इस ओर की अपनी नजर पर हथेली किये हुए है। इसके ठीक उलट बीच फड़ बाजार में बरसों से एक चौकी थी जिस पर बैठ कर महिलाएं थड़ी-ओडा लगाकर अपना घर चलाती थीं, कुछेक बरस पहले निगम ने उस चौकी को हटा दिया। लेकिन लगातार दोनों तरफ हो रहे कब्जे उन्हें आज भी नजर नहीं रहे हैं। होना तो यह चाहिए था कि कुचीलपुरा के इस मुहाने पर बीच रास्ते पर बीस से सौ फुट का प्लेटफार्म बना कर फड़बाजार के सभी थड़ी गाड़ेवालों को वहां धन्धा करने की इजाजत मय राजस्व दे दी जाती। इच्छाशक्ति हो तो आज भी ऐसा हो सकता है। केवल इतना ही नहीं इससे सट कर छोटी-मोटी पार्किंग भी बन सकती है। इससे फड़ बाजार भी महात्मा गांधी रोड, स्टेशन रोड की तरह सुचारु हो सकता है, पर इसके लिए दृष्टि चाहिए और साफ नीयत भी।
चौखूंटी रेल फाटक पर पुलिया बनने के बाद शायद एक बार फिर फड़ बाजार के सुधार की आवश्यकता महसूस की जाने लगे, लेकिन शायद तब तक कब्जेधारी इसकी गुंजाइश नहीं छोड़ेंगे। होगा यही कि तब इन थड़ी, गाड़ेवालों को ही खदेड़ा जायेगा। अन्यथा दोनों तरफ के कब्जे हटाकर उन्हें जैसा ऊपर सुझाया गया है, फड़ बाजार के कुचीलपुरा मुहाने के बीच सड़क पर थड़ी बाजार लगवा इन्हें बसाया जा सकता है।
01 मार्च, 2013

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