Friday, February 8, 2013

फिर-फिर पीबीएम


विनायक के सम्पादकीय पर कई बार यह टिप्पणी की जाती है कि बार-बार किसी एक ही व्यक्ति, संस्थान या विषय को क्यों टारगेट करते हो? इसका जवाब तो यही होता है कि वह इसके लिए डिजर्व (पात्रता रखते हैं) करते हैं। इसी तरह बीकानेर के पीबीएम अस्पताल पर विनायकनेअपनी बातमें कई बार टिप्पणी की है। आज फिर करनी पड़ रही है या कहें इसकी नौबत फिर गई। कल अस्पताल के मेडिसिन आईसीयू में मरीजों को दी जाने वाली ऑक्सीजन खत्म हो गई और एक महिला मरीज की मौत हो गई। मरीज के परिजनों का आरोप है कि मरीज वेन्टीलेटर पर थीं और ऑक्सीजन खत्म हो जाने के चलते ही उसकी मौत हुई। इसे लेकर कुछ देर माहौल तनावपूर्ण भी रहा। थोड़ी देर में सबकुछ सामान्य हो गया क्योंकि लम्बी लड़त का मादा धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है। लड़त कोई चाहे भी तो कई प्रकार की दाबाचींथी, समझाइश और प्रलोभनों से शान्त कर दी जाती है। अस्पताल की कार्यप्रणाली फिर अपने ढर्रे पर लौट आती है।
ऑक्सीजन क्यों खत्म हुई? कहते हैं पांच मरीजों पर 20 सिलेण्डर एक रात में खाली हो गये, तो क्या कोई लीकेज था या कोई और बात थी या सप्लायर से सिलेण्डर आये ही खाली थे। खाली आये तो जिसने प्राप्ति की उसकी क्या जिम्मेदारी तय की गई? भरे आए और लीकेज से खाली हो गये तो मेन्टीनेंस की जिम्मेदारी किस की थी? इस सब पर किसी ने दबाब बनाया तो जांच भी होगी और रिपोर्ट ऐसी बनेगी कि कार्यवाही किसी पर भी नहीं हो। नहीं तो पीबीएम प्रशासन बताये कि अस्पताल में आए दिन घटनाएं होती हैं, आए दिन जांचें बैठती हैं, जांच की रिपोर्ट भी बनती होगी। ज्यादा लम्बे समय की बात नहीं करते हैं, पिछले पांच साल की ही बता दें कि कितनी बदमजगियां हुई, कितनी पर जांचें बैठी और कितनी रिपोर्टों में कितनों को दोषी पाया गया? यदि कोई दोषी पाया भी गया तो किसे क्या सजा दी गई? सूचना के अधिकार के तहत कोई सब जानकारी मांग ले तो एक विचित्र सत्य यह सामने आयेगा कि पीबीएम में पिछले पांच साल की रिकार्डेड बदमजगियों के कारणप्राकृतिकही थे। क्योंकि यदि मानवीय लापरवाहियों के चलते ये बदमजगियां होतीं तो किसी को तो सजा मिलती!

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