Friday, January 4, 2013

करुणानिधि के बहाने बीकानेर की विरासती राजनीति की पड़ताल


नब्बे-नजदीकी उम्र के तमिल नेता एम. करुणानिधि ने भी बाल ठाकरे की तरह अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित कर दिया है। लगता है ठाकरे कुटुम्ब की तर्ज पर इस परिवार में भी सिर-फुटौअल होनी है। राज ठाकरे ने बाल ठाकरे के जीते-जी बगावत कर दी तो करुणा के बड़े बेटे अलागिरि भी उसी रास्ते पर हैं। ठीक ही है, सदियों की सामन्ती मानसिकता आजादी के पैंसठ सालों में कैसे चली जायेगी, जनता को एक चमत्कारी-सामन्ती व्यक्तित्व चाहिए? भारतीय मतदाता लगातार अपनी इस मानसिकता का प्रमाण देता रहा है।
करुणानिधि की इस घोषणा के बहाने अपने शहर बीकानेर के लोकतान्त्रिक सामन्ती परिवारों की पड़ताल की सूझ हुई। आजादी बाद के जिस राजनेता को बीकानेर में सर्वाधिक याद किया जाता है, उनमें मुरलीधर व्यास मुख्य हैं। वे दो बार नगर विधायक चुने गये, उनके बेटे-बेटियों में से किसी ने भी राजनीति में रुचि नहीं दिखाई। शायद व्यास उस राजनीतिक स्कूल से आए थे जो राजनीति को धन्धा मानने को हेय मानती थी, या मानने से सकुचाती थी। यद्यपि उनके मानसपुत्र बने नारायणदास रंगा ने जरूर जोर आजमाने की कोशिश की, लेकिन वे सफल नहीं हो पाये। व्यास को चुनौती बने गोकुलप्रसाद पुरोहित ने विधायक का चुनाव एक बार जीता। चूंकि वे कुंआरे थे सो उनके युवा सहयोगियों में मक्खन जोशी, गोपाल जोशी और जनार्दन कल्ला में से ही एक गोपाल जोशी ने ही उन्हें अखाड़े से बाहर कर दिया। गोकुलप्रसाद के भानजे ने जरूर जोर आजमाने की कोशिश की लेकिन मामा ने शायद सभी दावं नहीं सिखलाए सो पार नहीं पड़ी। लगभग पचहत्तर पार के गोपाल जोशी ने अपनी राजनीतिक आकांक्षा को अभी तक हरा बनाये रखा है और उनकी कोशिश रहेगी कि इस वर्ष होने वाले चुनावों में पार्टी उन्हें ही टिकट दे। उम्र यदि बाधा बनी, जो पार्टी की वर्तमान दुर्गति में शायद बनेगी नहीं, फिर भी ऐसा हुआ तो वे अपने मझले पुत्र गोकुल को आगे कर सकते हैं। लम्बे समय से राजनीति में टांग फंसाये गोकुल यद्यपि अपनी कोई हैसियत नहीं बना पाए। लेकिन हो सकता है वे चुनाव यदि जीत जाते हैं तो चौधरी भीमसेन के पुत्र वीरेन्द्र बेनीवाल की तरह वे भी ठाठा बिठा लें? इस तरह की उम्मीद वैसे कम ही लगती है।
पहलवानी करते राजनीति में आए मक्खन जोशी का कोई दावं अनुकूल नहीं पड़ा पर उनके पुत्र कन्हैयालाल जो पिता का राजकाज देखते थे, बीच में कुछ समय जरूर उन्होंने कुछ आकांक्षाएं पालीं थीं। लेकिन अब अपने पुत्र और मक्खन जोशी के पौत्र अविनाश जोशी की गति से चुंधियाए कन्हैयालाल ने अपनी उम्मीदों की दिशा उस ओर कर ली है। अनुकूलताएं बनी तो हो सकता है अविनाश पैराशूट के सहारे छलांग लगा लें! पर जमीन पर सुरक्षित उतर जाएं, बात तभी बनेगी।
जनार्दन कल्ला भी पहलवानी करते ही राजनीति में आए हैं। कहते हैं अखाड़े में उन्होंने रिश्ते के भाई मक्खन जोशी को कई बार जोर करवाया था, वो तो देखा नहीं पर राजनीति में उन्होंने मक्खन जोशी का कोई दावं नहीं चलने दिया। जनार्दन कल्ला ने राजनीति के अखाड़ेबाज और रिश्ते में बहनोई गोपाल जोशी का भी कोई दावं नहीं चलने दिया। उन गोपाल जोशी का जो गुरु को पटकनी देकर आए हैं। पिछले चुनाव में जरूर जनार्दन पटकनी खा गये थे, पर इस पटकनी का दोष जनार्दन का कम और लम्बे समय से अखा़ड़े में रहे (उनके अनुज) डॉ. बी.डी. कल्ला का ज्यादा माना जाता है। कल्ला बन्धुओं की बात गई तो इनके उत्तराधिकारियों की ही पड़ताल कर लें। डॉ. कल्ला के दोनों पुत्रों ने कभी राजनीति में रुचि नहीं दिखाई है और ही कोई गुंजाइश उनमें देखी गई। पर जनार्दन कल्ला के पुत्र ऐसी महत्त्वाकांक्षाएं पालते और उन्हें जाहिर करते रहे हैं। जरूरत पड़ी तो हो सकता है, कोई दावेदारी कर ले। पर कुछ हासिल भी कर लेंगे, इसकी गुंजाइश कम लगती है। पापा-चाचा के सहारे व्यापारिक बगीचा हरा-भरा कर लिया है। सो उसे ही, सम्हालते रहें, ज्यादा ठीक बात है।
भारतीय जनतापार्टी में ओम आचार्य के भतीजे विजयकुमार राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा रखते हैं, पर बड़ा दावं उनमें नहीं देखा गया। नन्दलाल व्यास उर्फ नन्दू महाराज के सिर्फ एक पुत्री है वह अपना घर-परिवार सम्हाल रही हैं। वैसे भी नन्दू महाराज राजनीति जिस तरह करने में विश्वास रखते हैं, उस तरह की राजनीति करना हर किसी के बस की बात नहीं है!
आजादी बाद से बीकानेर की राजनीति में सक्रिय मानिकचन्द सुराना कई बार चुनाव जीते हैं और मंत्री भी रहे हैं, सत्ता में महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारियां भी सम्हाल चुके हैं। अस्सी पार के सुराना में ऊर्जा अब भी सांगोपांग देखी जाती है। इस वर्ष होने वाले चुनाव को लूणकरणसर जैसे मुश्किल चुनाव क्षेत्र में फिर से लड़ने को तैयार हैं। कई दशकों से उनके पुत्र जीतेन्द्र सुराना उनका काम-काज देखते हैं, नजदीक से जानने वाले यह भी बताते हैं कि मानिक सुराना के चुनावों में अब जीतेन्द्र की लगभग वही भूमिका होती है जो बी.डी. कल्ला के चुनावों में शुरू से जनार्दन कल्ला की रही है। कहा जाता है कि जीतेन्द्र काफी सुलझे हुए राजनीतिक हैं।
4 जनवरी, 2013

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