सुर्खियों में रही आज की बड़ी खबर यह है कि अजमेर के एसपी (सुपरिटेण्डेण्ट ऑफ पुलिस) या कहें जिला पुलिस अधीक्षक उर्फ टाइगर, भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) द्वारा धरे गये। आरोप है कि जिस समय यह कार्यवाही हुई, उस समय एसपी राजेश मीणा अपने सरकारी आवास के ड्राइंगरूम में थे, उनके साथ कथित दलाल रामदेव भी थे और टेबल पर दो लाख पांच हजार रुपये पड़े थे। इस रकम के बारे में कहा जा रहा है कि यह स्थानीय थानों से मासिक वसूली या बंधी की है जिसे इकट्ठा करके रामदेव एसपी को सौंपने आया था।
इस खबर का उल्लेखनीय हिस्सा इतना भर है कि एसीबी ने यह कार्यवाही की है। यह एसीबी भी उसी राजस्थान पुलिस का हिस्सा है जिसके राजेश मीणा बड़े अधिकारी हैं। अखबारों ने इस खबर को सनसनीखेज लीड की तरह लगाया है। लेकिन इस प्रकरण का पटाक्षेप जब यह कह कर किया जायेगा कि यह सब फेब्रीकेटेड था तो यही मीडिया जरूरी समझेगा तो छोटी-सी सूचना खबर के रूप में लगा देगा। क्योंकि जिस तरह से यह अधकचरी कार्यवाही हुई, उसी में इसका हश्र भी देखा जा सकता है। हो सकता है इसके पीछे आपसी ईगो की कोई टकराहट हो या व्यक्तिगत द्वेष या दुर्भावना, जिसका ततैयापन समय धीरे-धीरे कम कर देगा।
अन्यथा यह जो कुछ हो रहा है यानी मासिक वसूली या बंधी आदि-आदि, इसका एक हिस्सा उन करतूतों और कुकृत्यों को होने देने की फीस का हिस्सा है जिन्हें सामाजिक बुराइयां कहा जाता है या कानून और व्यवस्था की अव्यवस्था भी कह सकते हैं। जैसे जुआ, सट्टा, चोरी-चकारी, होटलों में काले धंधे, बुकी, मिलावट, रंगदारी आदि-आदि। जिस थाना क्षेत्र में भी यह होते हैं उनकी बंधी उस प्रत्येक थाने में तय है और कहा यही जाता है कि इस सबका लेन-देन बड़ी जिम्मेदारी से होता है। एसपी तक पहुँचने वाली इस प्रकार की राशि भी थानानुसार उसमें होने वाले अनियमित कामों के हिसाब से कम या ज्यादा तय होती है। ‘कुजोग’ से कोई एसपी ‘डेढ़ ईमानदार’ आ भी जाये तो इस जिम्मेदारी का वहन ‘बेचारे’ अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक को करना होता है। अब आप इसका मतलब यह नहीं लगा लेना कि प्रत्येक एसपी को खुद को ही प्रतिमाह इस तरह की लगभग दो लाख की आय होती है। ये एसपी भी अपने हिसाब का हिस्सा रख मोटी रकम ऊपर पहुंचा देते हैं। अब आप ऊपर का मतलब ईश्वर या अल्लातालाह से न लगा लें, कहते हैं ईश्वर और अल्लातालाह सिर्फ भाव के भूखे हैं, आप उनके निमित्त कहीं कुछ देते भी हैं तो उससे पुजारी-फकीर का ही घर पलता है। ऊपर का मतलब सत्तासीन राजनेताओं से है जिनका चरित्र शाश्वत समान होता है चाहे सरकार किसी भी पार्टी की हो!
यह सब बातें जो यहां कही हैं यह हर उस नागरिक को पता है जो हल्लर-फल्लर या फदर-पंचाई का शोक रखता है या जो थोड़ा-बहुत सजग है। इस तरह की बातें जब एक खास तरह के आम को पता है तो सभी मीडिया वालों को या प्रशासन को या पुलिस महकमे को या पुलिस के ही भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो को पता नहीं हो, बात गले नहीं उतरती है। यह सब करतूतें आजादी बाद से उत्तरोत्तर बढ़ोतरी पर हैं। और इसी के चलते इस तरह की पकड़म-पकड़ाई और ट्रैप की कार्यवाहियां सन्देह पैदा करती हैं! यह सब उस खेल का हिस्सा है जो इस समय धड़ल्ले से खेला जा रहा है। यानी सबलों, समर्थों और दबंगों, उच्च धर्म, उच्च वर्ग या उच्च जातियों के ‘ईगो के हर्ट’ होना जैसी मानसिकता इस तरह की कार्यवाहियों
में महत्त्वपूर्ण
भूमिका अदा करती हैं। इस तरह से कारणों की पड़ताल करते हुए विनायक अपनी यह सफाई देना जरूरी समझता है कि विनायक किसी भी भ्रष्ट चेष्टा को किसी भी स्तर पर और किसी भी कारण से न सन्देह का लाभ देना चाहता है और न ही क्षम्य मानता है।
3 जनवरी, 2013
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