Wednesday, January 30, 2013

गंगाशहर में कब्जा


पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) नागरिक अधिकारों के लिए सतत प्रयासरत देश का बड़ा संगठन है। पीयूसीएल की बीकानेर इकाई ने कल मुख्य सचिव, राजस्थान और विधायक देवीसिंह भाटी के नाम दो अलग-अलग पत्रों की प्रतियां अखबारों को भिजवाई हैं। पत्र में बताया गया है कि गंगाशहर के वार्ड नं. 22 में स्थित चांदमलजी के बाग के पास की सार्वजनिक भूमि पर 18-19-20 जनवरी को सरकारी और कोर्ट की छुट्टियों का मौका देख कर किन्हीं ने चारदीवारी बना कब्जा कर लिया है। यह भूमि सन् 1935 के रिकार्ड के अनुसार 11312 बीकानेरी गज है और पट्टे पर साफ लिखा है कियह जमीन खुली रहेगी, सिर्फ पेड़ लगाएं जा सकते हैं, गायें अन्य जानवर बैठ सकते हैं।इसके बावजूद छुट्टियों का मौका देखकर इस पर चारदीवारी कर दी गई। गांववासियों ने पुलिस को सूचित भी किया। पुलिस ने एक बार काम रुकवा भी दिया लेकिन गांववासी छुट्टियों के चलते कागजात पेश नहीं कर पाए और कब्जाधारी ने अपना मकसद पूरा कर लिया। यह तो पुलिस ही बता सकती है कि विवाद के चलते किस आधार पर चारदीवारी का काम उन्होंने चलने दिया। क्या चारदीवारी का निर्माण करवाने वालों ने अपने पक्ष में कुछ कागजात पेश किये ?
पीयूसीएल वालों ने पत्र में लिखा है कि इस कब्जे को अंजाम देने वाले अपने को गंगाशहर गोचर समिति का कोषाध्यक्ष बताते हैं। पहली बात तो यह कि शहर की सभी समितियां, संघ और न्यास क्या सरकारी नियम कायदों के अनुसार पंजीकृत हैं। अन्वेषण करेंगे तो पाएंगे कि अधिकांशलैटर हेडतक ही सीमित हैं और कम्प्यूटर आने के बाद लैटर हेड का यह गोरखधंधा और भी आसान हो गया है। दूसरा अगर पंजीकृत भी हैं तो क्या इन समितियों के चुनाव और कार्यकलाप पंजीकरण के नियमों के अनुसार चल रहे हैं? इनसे सम्बन्धित सरकारी महकमे यदि इसकी जांच करवाएं तो अधिकांश संघ, समिति और न्यास इस पर खरे नहीं उतरेंगे। पता नहीं सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार और देवस्थान विभाग इस व्यवस्था पर अकर्मण्य क्यों बने हुए हैं।
इसके अलावा सरकार को यह व्यवस्था भी करनी चाहिए कि छुट्टियों के दिन ऐसी सुनवाइयों के लिए एक कोर्ट भी खुला रहे और स्थानीय निकायों का एक सैल इन दिनों में मुस्तैद रहे। छुट्टियों के दिनों में कार्यरत कोर्ट और सैल के जजों अधिकारियों-कर्मचारियों को अन्य दिन छुट्टी दी जा सकती है।
वापस मुद्दे पर लौटते हैं, पीयूसीएल के उक्त उल्लेखित पत्रों में मुख्य सचिव को वस्तुस्थिति से अवगत करवाया है। यह पत्र जैसे-तैसे उन तक पहुँच भी गया तो यह उसी गति को प्राप्त होगा जो सरकारी चाल-चलन का हिस्सा बन गयी है। दूसरा पत्र उन देवीसिंह भाटी के नाम है जो उम्र के इस पड़ाव पर आकर अपने बल पड़ते हिसाब से गोभक्त हो गये हैं। भाटी की गोभक्ति भी उन अधिकांश गो भक्तों जैसी ही है जो गाय को गरुड पुराण कीकपिलामानते हैं, कपिला मोक्ष के द्वार तक ले जाती है और यह गो-भक्ति भक्तों का कोई कोई सिट्टा सिंकवा देती है।
इसलिए जो भी न्याय पाने की या न्याय दिलाने की बळत रखते हैं उन्हें चौकस होकर सतत लगे रहना होगा। जो मुश्किल जरूर है पर ऐसा नहीं है कि परिणाम मिले।भगवान के घर देर है अंधेर नहींकी तर्ज पर यह तो कई बार साबित हो चुका है कि जो पीछे लगा रहता है वह इस सरकारी अव्यवस्था में भी सफल होता है!
30 जनवरी, 2013

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