पीबीएम समूह के बच्चा अस्पताल के नर्सरी खण्ड हादसे के बाद मीडिया, जिला प्रशासन और अस्पताल प्रशासन समेत, सभी यूं सक्रिय देखे जा रहे हैं जैसे अब सभी तरह की व्यवस्थाएं चाक-चौबन्द कर दी जायेंगी। इस तरह की सक्रियता इसी अस्पताल को लेकर पहले भी कई बार देखी गई है। दो-तीन दिन मीडिया कमियों की सुर्खियां देगा, प्रशासन उन्हें दुरुस्त करने का भरोसा दिलाएगा कुछ ओनी-पौनी व्यवस्थाएं और कामों को डेढ़े-दुगुने दामों में करवाने की योजनाएं बनेंगी। कुछ शुरू होंगे कुछ बीच में रुक जायेंगे। इस तरह की सक्रियता को बीकानेरी बोली में मसाणिया बैराग कहा जाता है। यह अस्पताल फिर उसी ढलानीय ढर्रे पर आ जायेगा जिसे गर्त कह सकते हैं। यदि यह अस्पताल इस ढर्रे पर नहीं होता तो इसके हालात लगातार बद-बदतर नहीं हुए होते। चाहे सरदार पटेल मेडिकल कालेज के प्राचार्य हों या पीबीएम का अधीक्षक हो इनमें से अधिकांश गोटियां बिठा कर अपने-अपने मकसद से इन पदों पर काबिज होते हैं और मकसद पूरा होने न होने और जैसे-तैसे समय गुजार कर चल भी देते हैं। शहर के जनप्रतिनिधियों, समाजसेवकों और मीडिया समेत सभी क्षेत्रों के दबंगों को यह अस्पताल वाले कीलना अच्छी तरह जानते हैं। उनकी अधिकांश उम्मीदें यह पूरी कर देते हैं। आम आदमी! जाए भाड़ में, वह दुख पाना लिखा कर लाया है तो चुपचाप उन दुखों को झेल ले, बस, और क्या?
15 जनवरी, 2013
No comments:
Post a Comment